हाल ही में शुरू हुआ ‘किसान आंदोलन’ अब एक नए मोड़ पर पहुँच चुका है। आंदोलनकारियों से बात करने के लिए केंद्र सरकार पूरी तरह तैयार है, लेकिन आंदोलनकारियों ने किसी भी बात को मानने से इनकार किया है, और जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं, वैसे-वैसे इनकी असलियत भी जगजाहिर होती जा रही है, जिसके कारण किसानों की छवि को काफी नुकसान पहुँच रहा है।
‘किसान आंदोलन’ वास्तव में कितना किसानों के अधिकारों से जुड़ा हुआ है, इसके लक्षण तभी दिखने शुरू हो गए जब दिल्ली जा रहे जत्थों ने खालिस्तानी नारे लगाने शुरू कर दिए और पीएम मोदी की हत्या के नारे तक लगाने लग गए। लेकिन इस आंदोलन की पोल तभी खुल गई, जब इस आंदोलन के कुछ प्रतिनिधियों ने अपनी मंशा मीडिया को जगजाहिर की।
एनडीटीवी द्वारा ट्वीट किए गए वीडियो में ये किसान भारतीय किसान यूनियन से कथित तौर पर संबंध रखते हैं। उनके बयान अनुसार, “ये सरकार कॉर्पोरेट जगत की मदद करने के लिए इस बिल को लाई है। वे कहती है कि हम किसान और ग्राहक के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करने के लिए इस बिल को लाए हैं, और दलालों को हटाने के लिए इस बिल की आवश्यकता है। हम पूछते हैं कि यह दलाल क्या है, और क्या सरकार इस को परिभाषित करेगी? जो सिस्टम पंजाब और हरियाणा में है, वो दुनिया की सर्वोच्च प्रणाली है। लोग हमारे फसलों को पैक करते हैं और उन्हे ट्रैक्टर से उतारने में हमारी मदद करते हैं और उसे बाजार भी लेते हैं। वे दलाल नहीं है, वे सेवा करते हैं, और अपनी सेवा के लिए अगर वे कमीशन लेते है तो क्या बुरा है?”
#FarmersProtest | "The government is saying that they have introduced the new farm laws to eliminate the middlemen. We are asking them to define 'middlemen'": Farmers address the media pic.twitter.com/bDfaRauVTm
— NDTV (@ndtv) November 29, 2020
इस वीडियो ने पूरे ‘किसान आंदोलन’ की पोल खोल दी है। इस वीडियो से स्पष्ट पता चलता है कि लड़ाई किसानों के अधिकार या उनके लिए न्याय के बारे में थी ही नहीं, बल्कि ये लड़ाई किसान के नाम पर अराजकता फैलाने और उनकी मेहनत की कमाई हड़पने वाले दलालों को बचाए रखने की है। जिस प्रकार से दलालों का महिममंडन इस वीडियो में किया गया है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि ये पूरा आंदोलन असल में किसके हित के लिए लड़ा जा रहा है।
लेकिन इस आंदोलन का सबसे बाद साइड इफेक्ट है – किसान की छवि पर नकारात्मक असर पड़ना। जिस प्रकार से किसान के नाम पर अराजकता फैलाई जा रही है, और दिल्ली को घेरने की धमकियाँ दी जा रही हैं, उससे अब किसानों की एक नकारात्मक छवि देश में प्रचारित हो रही है, मानो वह कोई अकर्मण्य व्यक्तियों की एक टोली हो, जिसे कोई काम नहीं करना, पर सुविधाएँ सारी चाहिए, और यही ये आंदोलनकारी भी चाहते हैं।
ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जा सकता है क्योंकि ‘किसान आंदोलन’ के साथ वही लोग जुड़ रहे हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष CAA के विरोध में शाहीन बाग में देशद्रोही तत्वों को बढ़ावा दिया था और पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों को भी भड़काने में एक अहम भूमिका निभाई थी। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि असल किसान इस समय फसलों की बुआई में लगा हुआ है, और उसे इस अराजकता से कोई मतलब नहीं है। लेकिन जिस प्रकार से वास्तविक किसान इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं, उससे इन अराजकतावादियों को उनकी छवि खराब करने का एक सुनहरा अवसर मिल रहा है।