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सर्वोच्च नेता Khamenei की ‘बीमारी’ के कारण ईरान में पूर्ण रूप से सैन्य शासन देखने को मिल सकता है

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
7 December 2020
in विश्व
ईरान
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विश्व के बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई के बीमार होने की खबर आई है। रिपोर्ट के अनुसार मामला गंभीर है और उन्होंने स्वास्थ्य की चिंता के कारण हो सकता है कि अपने बेटे को सत्ता हस्तांतरित की है। अब ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई के बीमार होने की स्थिति या उनके सत्ता से हटने की स्थिति के बाद ईरान में एक बड़े बदलाव से इंकार नहीं किया जा सकता है और जिस तरह से इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स का प्रभाव ईरान के सभी स्तरों पर बढ़ा है उससे ईरान में मिलिटरी शासन का आना कुछ ही दिनों की बात है।

ईरान के पत्रकार Momahad Ahwaze ने ट्विटर पर बताया कि  सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई का बिगड़ता स्वास्थ्य चिंता की बात है और हो सकता है कि उन्होंने अपनी शक्तियों को अपने बेटे को हस्तांतरित की हो। खामनेई की बिगड़ती सेहत के कारण कुछ महत्वपूर्ण बैठकों को रद्द करते हुए देखा है, जैसे कि हाल ही में राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ बैठक भी थी। बता दें कि खामेनेई 1989 से सत्ता में हैं, जब उन्होंने इस्लामिक रिपब्लिक के संस्थापक Ruhollah Khomeini की मौत के बाद सत्ता संभाली थी।

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الآن : مصادر إيرانية تتحدث تدهور صحة المرشد الإيراني خامنئي منذ ليلة البارحة ، وتؤكد بأن المقربين من خامنئي خائفون جداً على وضع خامنئي الصحي هذه المرة . pic.twitter.com/aiMDuEigDM

— محمد مجيد الأحوازي (@MohamadAhwaze) December 5, 2020

उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद ईरान में उनकी सत्ता के उत्तराधिकारी पर बहस शुरू हो चुकी है। कई विशेषज्ञों ने उनके बेटे को दावेदार बताया है तो कई ने यह दावा किया है कि ईरान के संविधान में सर्वोच्च नेता को चुनने की प्रक्रिया अलग है और वह पद स्थायी नहीं है। हालांकि, ईरान की स्थिति को देखते हुए इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की ताकत को कम नहीं आँका जा सकता है। पिछले कुछ समय से जिस तरह रिवोल्यूशनरी गार्ड ने अपना प्रभाव जमाया है उससे ऐसा लगता है कि सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई के बाद ईरान की सत्ता उनके हाथों में ही जाएगी।

वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी थिंक टैंक के लेखों के अनुसार, बाहर के दबाव के साथ इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स भी सर्वोच्च नेता के चुनाव प्रक्रिया में भूमिका चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो वे किसी ऐसे व्यक्ति का समर्थन करेंगे जो उनके हिसाब से चले। अगर ऐसा नहीं होता है तो IRGC इससे भी आक्रामक कदम उठाते हुए सत्ता की बागडोर ही अपने हाथ में ले सकती है।

पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से ईरान की राजनीति में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के पूर्व अधिकारियों की संख्या बढ़ी है। ईरान की चुनी गयी नई संसद इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती है। ईरान के संसद के स्पीकर Mohammad Bagher Ghalibaf इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के पूर्व ब्रिगेडियर जनरल हैं। अगर रिकॉर्ड देखा जाए तो एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान संसद के पीठासीन बोर्ड के दो-तिहाई सदस्य या तो रेवोल्यूशनरी गार्ड्सके पूर्व सदस्य हैं या अभी भी IRGC और उसके सहायक संगठनों से जुड़े हुए हैं।

ईरान और अमेरिका के कई विशेषज्ञों ने कई वर्ष पूर्व ही यह अनुमान लगाया था कि IRGC ईरान की सरकार पर कब्जा जमा लेगा। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के सदस्य ईरान की संसद पर इस प्रकार से पकड़ बना चुके हैं कि इस बार की 11 वीं Islamic Consultative Assembly में कम से कम 24 कमांडर IRGC के वरिष्ठ अधिकारी है जो संसद में मौजूद हैं और उनमे से अधिकतर ब्रिगेडियर जनरल और कर्नल रैंक के हैं।

बता दें कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प का गठन वर्ष 1979 के इस्लामी क्रांति के बाद किया गया था। सामान्यतः ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड्स देश में इस्लामी गणतंत्र प्रणाली की रक्षा करता है तो वहीं पारंपरिक सैन्य इकाइयां ईरान की सीमाओं की रक्षा करती हैं। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) मूल रूप से इस्लामी शासन द्वारा उनके विचारों को जीवित रखने और लोगों से पालन करवाने वाली एक हथियार बंद मिलिशिया है। एक तरह से देखा जाए तो ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स चीन के PLA और पाकिस्तान की आर्मी का समन्वय कहा जा सकता है।

परंतु अब जिस दौर से ईरान गुजर रहा है और वहाँ के नेताओं के कारण अंतराष्ट्रीय स्तर पर ईरानं हंसी का पात्र बना हुआ है, उसकी वजह से ईरान के सरकारी स्तर पर बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।

राष्ट्रपति हसन रूहानी अपने किसी भी घरेलू या विदेश नीति के वादों को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कोरोना का मामला लिया जाए तो उनके द्वारा किया गया प्रबंधन निम्न स्तर का था। यही नहीं अब तो सुप्रीम लीडर Ayatollah Ruhollah Khomeini की भी आलोचना होने लगी है। अगर सरकार की तुलना इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स से करें तो सरकार के मुक़ाबले IRGC अधिक नियंत्रण में दिखाई दे रहा है।

वर्तमान समय में IRGC खुद को ईरान का एक मात्र रक्षक के रूप में प्रस्तुत करता है जिसने इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन या ISIS को हराया, और विदेशियों और उनके “एजेंटों” को देश में घुस कर तबाही मचाने से रोका।

सिर्फ रक्षक ही नहीं, बल्कि IRGC अपनी इस तकनीकी विशेषज्ञता में सरकार से भी आगे होने का दावा करता है। उदाहरण के लिए रूहानी सरकार ने एक छोटे पृथ्वी-इमेजिंग उपग्रह को लॉन्च करने के लिए चार बार कोशिश की और विफल रही, जबकि IRGC ने अपने पहले प्रयास में एक सैन्य उपग्रह को कक्षा में भेजा।

रूहानी सरकार की अक्षमता और सर्वोच्च नेता की तबीयत अधिक बिगड़ने की स्थिति में अगर IRGC सरकार का तख़्तापलट कर शासन अपने हाथ में लेती है, तो सरकार के पास IRGC के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए जनसमर्थन या शक्ति नहीं होगी। यानि अगर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कोई एक्शन लिया तो शायद ईरान में एक नए राजनीतिक या यूं कहें मिलिटरी चैप्टर की शुरुआत देखने को मिल सकती है।

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पाकिस्तान को डंसेगा उसका अपना ही पाल हुआ सांप, जानें आखिर क्यों नहीं टिक पाएगा पाकिस्तान-अफगानिस्तान की शांति समझौता

22 October 2025

कतर की मध्यस्थता से जन्मा पाकिस्तान-अफगानिस्तान शांति समझौता इस वक्त एशियाई कूटनीति का सबसे नाजुक धागा बन चुका है। दस्तावेज़ों में लिखी बातें, प्रेस विज्ञप्तियों...

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