2021 का वर्ष भारत के लिए काफी अनोखा है। इसी वर्ष 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्म को 124 वर्ष पूरे हो जाएंगे, और इसीलिए उनके 125वीं जन्मदिवस को केंद्र सरकार एक भव्य उत्सव की तरह मनाना चाहती है।
इस परिप्रेक्ष्य में अभी हाल ही में संस्कृति मंत्रालय संभालने वाले प्रह्लाद सिंह पटेल ने घोषणा की कि 23 जनवरी को नेताजी का जन्मदिन देश में ‘पराक्रम दिवस’ के नाम से मनाया जाएगा। प्रह्लाद सिंह पटेल ने ये भी कहा है कि केंद्र सरकार स्वतंत्रता की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए 26000 से भी अधिक इंडियन नेशनल आर्मी / आजाद हिन्द फौज के वीरों के लिए एक विशेष स्मारक निर्मित करवाएगी
23 जनवरी नेताजी सुभाषजयन्ती “पराक्रमदिवस” के रूप में मनाई जायेगी ।मा प्रधानमंत्री जी एवं गृहमंत्री जी की उच्च अधिकार समिति की सहमति के बाद आज अधिसूचना जारी की गई,जिसे @MinOfCultureGoI ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के माध्यम से सार्वजनिक किया।जय हिन्द ।।@PMOIndia @JPNadda @incredibleindia pic.twitter.com/Nk2kwPNqmL
— Prahlad Singh Patel (मोदी का परिवार) (@prahladspatel) January 19, 2021
लेकिन केवल प्रह्लाद सिंह पटेल ही इस अभियान में शामिल नहीं है। रेल एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया है कि नेताजी के जन्म के 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर रेल मंत्रालय की ओर से हावड़ा कालका मेल को अब नेताजी एक्सप्रेस के नाम से जाना जाएगा। यह इसलिए भी एक ऐतिहासिक निर्णय है, क्योंकि स्वतंत्रता से पहले यह मेल हावड़ा पेशावर मेल एक्सप्रेस के नाम से जानी जाती थी, और झारखंड में स्थित गोमोह स्टेशन से 1941 में इसी ट्रेन के जरिए नेताजी पेशावर के लिए निकल पड़े थे –
Netaji’s prakram had put India on the express route of freedom and development. I am thrilled to celebrate his anniversary with the introduction of “Netaji Express” pic.twitter.com/EXaPMyYCxR
— Piyush Goyal (मोदी का परिवार) (@PiyushGoyal) January 19, 2021
इन गतिविधियों से एक स्पष्ट संदेश जाता है – सरदार पटेल के बाद अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत को सहेजने के लिए केंद्र सरकार ने जिम्मेदारी संभाली है। जिस प्रकार से मोदी सरकार ने वर्षों से दरकिनार गए सरदार पटेल के गौरव को पुनर्स्थापित किया है, उसी प्रकार से अब वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत को भी पुनर्स्थापित करना चाहते हैं।
नेताजी सुभास चंद्र बोस किसी परिचय के मोहताज नहीं है। एक सम्पन्न परिवार में जन्मे सुभाष ने ICS यानि भारत की शाही सिविल सेवा में चौथा स्थान प्राप्त करने के बावजूद उस नौकरी को नहीं अपनाया। वहाँ से अपनी अलग पहचान स्थापित करते हुए सुभाष काँग्रेस के गरम दल का हिस्सा बने, और उनका उद्देश्य था अंग्रेजों से पूर्ण स्वराज प्राप्त करना।
वे 1938 में हरीपुर अधिवेशन में काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। लेकिन जब त्रिपुरी में 1939 के अधिवेशन में दोबारा से काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे, तो काँग्रेस को उनके आक्रामक स्वभाव से खतरा महसूस होने लगा। स्वयं गांधीजी ने कह दिया कि सुभाष की जीत में मेरी हार है, जिसके कारण सुभाष चंद्र बोस को जल्द ही काँग्रेस छोड़ने पर विवश होना पड़ा।
तद्पश्चात अंग्रेजों द्वारा नजरबंद होने पर भी सुभाष का हौसला कम नहीं हुआ, और 1941 में वे रातोंरात अंग्रेजों की नाक के नीचे से पहले पेशावर, और फिर काबुल के रास्ते जर्मनी को खिसक लिए। प्रारंभ में उन्होंने हिटलर के साथ साझेदारी करने की सोची, परंतु स्थिति प्रतिकूल होते हुए देख उन्होंने जापान का रुख किया।
उन्होंने सिंगापुर में हिरासत में लिए ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लगभग 45000 भारतीय सैनिकों और दक्षिण पूर्वी एशिया के कई देशों में काम कर रहे भारतीय नागरिकों की सहायता से इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की, और उन्होंने जापानी सेना की सहायता से पहले अंडमान एवं निकोबार और पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश करने में सफलता पाई।
हालांकि इम्फाल की लड़ाई में नेताजी की फौज को हार का सामना करना पड़ा, और 1945 में फॉर्मोसा के प्लेन क्रैश में उनकी कथित तौर पर मृत्यु हो गई, लेकिन अंग्रेजों में उनका खौफ तनिक भी कम नहीं हुआ, और पहले लाल किले में INA के सैनिकों का ट्रायल, और उसके पश्चात रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल इंडियन एयरफोर्स के भारतीय सैनिकों द्वारा किया गया विद्रोह ब्रिटिश राज की ताबूत में निर्णायक कील सिद्ध हुआ।
स्वयं ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेन्ट एटली ने अपने भारत दौरे में स्वीकार किया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज के कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा। लेकिन जीते जी तो छोड़िए, सुभाष चंद्र बोस के गायब होने के कई वर्षों बाद भी काँग्रेस ने कभी भी उनको वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे।
लेकिन मोदी सरकार ने अब स्थिति को बदलने का निर्णय किया है। ये काम 2016 में ही शुरू हो गया था, जब पीएम मोदी ने पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी सरकारी फाइल्स के एक समूह को सार्वजनिक करने का निर्णय किया।
इसके अलावा चाहे 2019 के गणतंत्र दिवस के परेड में पहली बार आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों को शामिल कराना हो, या फिर अंडमान एवं निकोबार के तीन मुख्य द्वीपों को शहीद, स्वराज और सुभाष के नाम देना हो, मोदी सरकार ने अपनी ओर से नेताजी की विरासत को पुनर्स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। अब नेताजी के जन्मदिवस की 125 वीं वर्षगांठ को एक भव्य उत्सव के तौर पर मनाए जाने के संकेत देकर केंद्र सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है – देश के नायकों को उनके सम्मान से वंचित नहीं रखा जा सकता।