साल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय खबरों में अनेकों विषयों ने चर्चाएं बटोरीं, जिसमें मुख्य बिंदु कोरोनावायरस का संक्रमण ही रहा है। चीन से उपजे कोरोनावायरस को लेकर पूरी दुनिया ने उसे लताड़ लगाई है, जिसके कारण वैश्विक स्तर पर चीन अलग-थलग पड़ गया है। यही नहीं उसकी विस्तारवाद की नीतियों के कारण उसे छोटे-छोटे देश भी आंखें दिखाने लगे हैं। इसके साथ ही भारत का रसूख भी दुनिया ने देखा है जो कि हैरान करने वाला है क्योंकि भारत ने चीन के बाद आई वैश्विक व्यापारिक रिक्तता को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुनिया भारत को वैश्विक स्तर पर भविष्य के एक समृद्ध राष्ट्र के रूप में देख रही है।
‘जांच तो होकर रहेगी, चाहे जितना रो लो’, ऑस्ट्रेलिया ने ड्रैगन को उसी की भाषा में मजा चखा दिया
कोरोनावायरस को लेकर पूरी दुनिया में चीन और उसके वुहान शहर की थू-थू हो रही है, जिसके चलते कोरोना की उपज को लेकर चीन के वुहान शहर में जांच की मांग हो रही थी जिसमें सबसे मुखर आस्ट्रेलिया था। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन के खिलाफ कहा था कि कोरोनावायरस के कारण लाखों लोगों की जान जा चुकी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है।
इसलिए इस वायरस की जांच की मांग पूरी दुनिया कर रही है जिससे इस स्थिति को समझा जाए और ये कभी दोबारा न आए। चीन के खिलाफ ऐसा आक्रमक रुख आस्ट्रेलिया ने पहली बार दिखाया था जिसके बाद से क्वाड में उसका महत्व और आस्ट्रेलिया के प्रति चीन की नफरत बढ़ गई थी, और ये तनाव आज भी जारी है।
दुनिया के 7 बड़े देश एक बात पर हुए सहमत – हम सब चीन के खिलाफ हैं
साल 2020 पूर्णतः चीन की खिलाफत पर ही केंद्रित रहा है, क्योंकि चीन के कारण उपजे कोरोनावायरस के कारण जान-माल की हानि हुई है। इस खिलाफत में सबसे मुखर विश्व के सात देशों का समूह G-7 भी रहा है। इन G-7 देशों मेँ अमेरिका, इटली, UK, जापान, जर्मनी, फ्रांस और कनाडा आते हैं। दुनिया के इन 7 सबसे बड़े देशों का यह ग्रुप इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन से कई कड़े सवाल पूछता रहा और साथ ही इस वायरस और वुहान की लैब के बीच के संबंध को लेकर भी जांच करने की बात कहता रहा है जिससे चीन परेशान हो गया है।
खास बात ये है कि इसमें सबसे ऊपर अमेरिका का नाम आता है क्योंकि यहां मौतों और संक्रमण दोनों का आंकड़ा सबसे ज्यादा रहा है, जिसके चलते इन सभी देशों ने चीन के लिए पहले से ही मुश्किल साल 2020 को और मुश्किल बना दिया।
“चोर के घर में चोरी!”, चीन ने 10 सालों में अपना कर्ज़ जाल बुना, अफ्रीका ने उसमे चीन को ही फंसा दिया
चीन की हमेशा एक नीति रही है कि वो किसी भी देश को कर्ज देकर उस पर दबाव बनाता है, लेकिन कोरोनावायरस वाले इस साल में उसके साथ सब उल्टा-पुल्टा ही हुआ है। अफ्रीकी देशों ने इस साल उसे उसी के जाल में फंसा लिया है। अफ्रीका पर अकेले चीन का लगभग 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है।
हालांकि, कोरोना के बाद यह कर्ज़ गरीब अफ्रीकी देशों की बजाय खुद चीन के ही गले की फांस बन सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अफ्रीकी देश अब चीन पर उनके कर्ज़ को माफ करने का दबाव बना रहे हैं। दबाव में झुककर अगर चीन को यह कर्ज़ माफ करना पड़ता है, तो इससे बैठे-बिठाए चीन का 150 बिलियन डॉलर का “निवेश” पानी में बह जाएगा, जिसकी संभावनाएं अब ज्यादा हैं क्योंकि कोरोनावायरस चीन का काल बनकर आया है,और अफ्रीकी देश जब दुनियाभर से 50 बिलियन का कर्ज मांग रहे हैं तो वो चीन को भी छोड़ेंगे नहीं।
चीन और जापान की दक्षिण चीन सागर को लेकर होने वाली लड़ाई का खुल्ला-खेल चलता है, 2020 में ये भी यथावत जारी था। मई की शुरुआत में चीनी कोस्ट गार्ड के जहाज पूर्वी चीन सागर में जापान के अधिकार वाले दियाओयू द्वीप के पास देखे गए थे जिस पर चीन अपना अधिकार जमाता है, लेकिन जापानी नौसेना ने इनको अपने इलाके से खदेड़ दिया।
जापान ने साफ कर दिया कि चीनी नौसेना अगर साउथ चाइना सी के उसके इलाक़े में जाएगी तो उसे बुरे अंजाम भुगतने ही होंगे। चीन को ये लताड़ केवल जापान से ही नहीं बल्कि ताईवान फिलिपींस, वियतनाम जैसे छोटे देशों ने भी लगाई है, और चीन की बेबसी देखिए वो इसको लेकल कुछ भी नहीं कर सका।
आख़िरी और रोमांचक चर्चित खबर भारत से जुड़ी थी, जो मई में दुनियाभर में फंसे अपने नागरिकों और प्रवासियों को कोरोनावायरस के बीच सुरक्षित भारत लाने की मुहिम चला रहा था। यूके और यूएस की यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाले छात्र भी फंसे हुए थे। भारत सरकार ने उन्हें वापस लाने की तैयारी कर ली, जबकि वो यूनिवर्सिटीज नहीं चाहतीं थी कि भारतीय छात्र वापस जाएं, क्योंकि भारतीय छात्र ही इन यूनिवर्सिटीज की शान समझे जाते हैं।
इन देशों के विदेश विभाग तक ने छात्रों को बने रहने का आश्वासन भी दिया। जबकि ये वहीं देश हैं जो अपने वीज़ा से जुड़े नियमों के कारण छात्रों की परेशानी का सबब रहते हैं, लेकिन इन छात्रों के दम पर ही अमेरिका ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों को बड़ा आर्थिक लाभ होता है। कोरोनावायरस के दौर में जब यह सभी देश आर्थिक मंदी झेल रहे थे, और उसमें भारतीय छात्रों का जाना किसी भी देश को रास नहीं आया था और इसीलिए यह विश्व प्रसिद्ध देशों की यूनिवर्सिटीज़ भारतीय छात्रों के सामने गिड़गिड़ा कर न जाने की मांग कर रही थी। उन्हें सभी सुविधाएं देने का आश्वासन भी दे रहे थे, जो कि आश्चर्यचकित करने वाला था।
कुल मिलाकर अगर अंतरराष्ट्रीय चर्चित खबरों पर नजर डालें तो सभी में चीन और उसकी ख़िलाफत के किस्से केंद्र बिंदु रहे हैं , जिससे चीन वैश्विक स्तर पर अकेला पड़ गया है, तो दूसरी ओर जिस तरह से भारत को वैश्विक सम्मान मिला है वो इस बात की ओर संकेत देता है कि 2021 भारत के लिए सकारात्मक रहने वाला होगा।