लोहड़ी जिसे एक जश्न का त्योहार माना जाता है, पंजाब समेत पूरे देश में ये त्योहार खुशियों के पर्याय के रूप में मनाया जाता है, लेकिन किसान आंदोलन की आड़ में ये जश्न का त्योहार मनहूसियत में बदल गया है क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री का पुतला जलाए जाने के साथ ही संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों की कॉपियों को जलाया जा रहा है। ये सारे प्रकरण इस बात का पर्याय हैं कि कांग्रेस समर्थित ये किसान आंदोलन अब त्योहारों को भी राजनीति से जोड़ रहा है जो कि आपत्तिजनक है।
पिछले लगभग सवा महीने से दिल्ली की सीमाओं पर जो किसानों का अराजक आंदोलन चल रहा है, उसका प्रतिदिन एक नया ही रंग सामने आ रहा है। इन किसानों ने लोहड़ी का त्योहार यहीं सीमाओं पर ठंड में मनाया है, और कृषि कानूनों की प्रतियां तक जलाईं हैं। ये बेहद ही आपत्तिजनक बात है कि जिस कानून पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो चुके हैं, ये किसान उन कानूनों का ही अपमान कर रहे हैं। यही नहीं ये लोग लोहड़ी जैसे जश्न के त्योहारों को मनहूसियत का पर्याय बना रहे हैं।
देश में वसंत ऋतु की शुरुआत में पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियां इकट्ठी करके जलाते हैं और सुख एवं समृद्धि की कामना करते हैं। इसे एक सकारात्मक त्योहार और उम्मीदों के जश्न के रूप में मनाया जाता है जिससे खुशियों में इजाफा हो, लेकिन किसानों के आंदोलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कॉरपोरेट लेवल की कंपनियों के मालिकों और अभिनेत्री कंगना रनौत तक के पुतलों को जलाया गया है, जो कि इनकी नकारात्मक सोच को जाहिर कर रहा है।
इन किसानों में से एक हरियाणा के करनाल जिले से आए 65 वर्षीय गुरप्रीत सिंह संधू ने कहा, “उत्सव इंतजार कर सकते हैं। केंद्र की ओर से जिस दिन इन काले कानूनों को वापस लेने की हमारी मांग को मान लिया जाएगा, हम उसी दिन सभी त्योहारों को मनाएंगे।”
कृषि कानूनों को लेकर सारा गुस्सा केवल पंजाब और हरियाणा में ही क्यों है ये सभी को पता है। एक तो खालिस्तानी समर्थकों ने इस किसान के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। दूसरी ओर कैप्टन सरकार और कांग्रेस की शह पर ही ये आंदोलन इतना बड़ा हो सका है। कुछ इसी तर्ज कांग्रेसियों ने सितंबर में दशहरे के वक्त भी रावण की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला जलाया था, और अब ठीक उसी तरह लोहड़ी मना रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीतिक दांव खेल रही है तो दूसरी ओर किसान को लगातार आंदोलन को उग्र बनाने के लिए अंदरखाने भड़का रही है।
किसानों के भ्रमित होने का उदाहरण एक बार फिर सामने आया है कि जो किसान सकारात्मकता के साथ लोहड़ी का जश्न मनाते थे वो पिछले दो महत्वपूर्ण त्योहारों से अपने ही प्रधानमंत्री का पुतला जला कर न केवल उनका अपमान कर रहे हैं बल्कि अपनी खुशियों के त्योहारों को भी मनहूसियत में बदल रहे हैं।