एक बेहद ही अहम निर्णय में ट्रम्प प्रशासन ने अपने इंडो पेसिफिक रणनीति को declassify किया है। इन दस्तावेज़ों में अमेरिका द्वारा इंडो पेसिफिक क्षेत्र में किये जा रहे कामों का लेखा जोखा है, विशेषकर चीन के विरुद्ध होने वाली गतिविधियों का। आम तौर पर ये काम बहुत वर्षों बाद होता है, लेकिन जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से पहले इस निर्णय को लागू करना ट्रम्प प्रशासन द्वारा चीन मुक्त इंडो पेसिफिक क्षेत्र की ओर एक अहम कदम समझा जा सकता है –
2017 में इस नीति की रचना की गई थी, जब डोनाल्ड ट्रम्प ने सत्ता ग्रहण की थी, और 2018 तक इसे अमल में लाया गया। तबसे चीन द्वारा इंडो पेसिफिक क्षेत्र में वर्चस्व को जमाने की हर नीति को ध्वस्त करने में ये रणनीति अमेरिका के बहुत काम आई है। इसके declassification के बारे में बोलते हुए राष्ट्रीय सेक्युरिटी कॉलेज के अध्यक्ष रोरी मेडकाफ ने बताया था कि, “ये रणनीति अमेरिका के अनुयाइयों की छवि है, न कि अमेरिकी नेतृत्व की”
ये डॉक्यूमेंट इंडो पेसिफिक क्षेत्र में भारत की अहम भूमिका के बारे में भी बात करता है, जो चीन के प्रभुत्व से निपटने में सक्षम है। इस डॉक्यूमेंट के अनुसार अमेरिका का मूल उद्देश्य है सुरक्षा के लिहाज से भारत की क्षमता और प्रतिबद्धता को बढ़ाना, अपने रक्षा व्यापार को बढ़ाना और डिफेंस तकनीक एक दूसरे से साझा करना इत्यादि”
ऐसे में इंडो पेसिफिक फ्रेमवर्क को declassify करने के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट है – किसी भी स्थिति में जो बाइडन चीन के गुलाम न बनने पाए। इस डॉक्यूमेंट में स्पष्ट लिखा है कि अमेरिका को अपनी इंडो पेसिफिक रणनीति ऐसी बनानी पड़ेगी जिससे वह ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ अपने संबंध मजबूत कर सके, और चीन का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत गठबंधन तैयार हो सके। इसीलिए इंडो-पेसिफिक रणनीति को declassify कर ट्रम्प प्रशासन ने जाते-जाते एक स्पष्ट संदेश दिया है – चीन कुछ भी कर ले, पर अमेरिका के हितों को नष्ट करने में कभी सफल नहीं हो पाएगा।