फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के प्रमुख सलाहकार इमैनुएल बॉन की बृहस्पतिवार को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात हुई। बॉन भारत फ्रांस के बीच सामरिक मुद्दों पर होने वाले वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने आये हैं। इस मौके पर उन्होंने साफ किया है कि एशिया में भारत फ्रांस का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी है।
उन्होंने साफ किया कि फ्रांस, चीन द्वारा वैश्विक व्यवस्था के नियम-भंग करने को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा “जब चीन नियमों को तोड़ता है, तो हमें बहुत मजबूत और बहुत स्पष्ट होना होगा और हिंद महासागर में हमारी नौसेना की उपस्थिति की यही मंशा है।”
अपने वक्तव्य से उन्होंने स्पष्ट किया कि फ्रांस हर मुसीबत और मोर्चे में भारत के साथ है। चाहे हिन्द प्रशान्त क्षेत्र की सुरक्षा हो या कश्मीर का मामला। उन्होंने कहा ” मेरा तात्पर्य भारत को होने वाले सभी प्रत्यक्ष खतरों से है। कश्मीर हो या सुरक्षा परिषद में भारत को स्थान, हमारा व्यवहार भारत के लिए हमेशा बहुत सहयोगपूर्ण रहा है। हमने चीन को किसी भी प्रकार का प्रक्रियात्मक खेल नहीं खेलने दिया है।”
इसके बाद उन्होंने कहा “भारत 2 वर्षों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य होगा, जो कि हमारे लिए पहल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है । हिन्द प्रशांत क्षेत्र, (में सहयोग हो) या आतंकी खतरों से निपटने की बात करें, हम आपके (भारत के) साथ सुरक्षा परिषद में काम करने के लिए तैयार होंगे।” उनके बयान से स्पष्ट है कि फ्रांस आने वाले दो सालों में चीन तथा पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का हर मोर्चे पर सहयोग करेगा।
बॉन का वक्तव्य चीन के मंसूबों पर सीधे सीधे पानी फेरता है, जो फ्रांस का सहयोग पाने के लिए भरसक कोशिश कर रहा है। फ्रांस ही यूरोप की एकमात्र शक्ति है, जो EU और चीन के बीच रोड़ा बना हुआ है। फ्रांस के प्रतिरोध के चलते ही चीन EU के साथ लंबे समय तक निवेश समझौता नहीं कर पा रहा था।
अब फ्रांस चीन को हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भी घेरने की योजना पर तेजी से काम करेगा। इसीलिए फ्रांस ने हाल ही में भारत के सहयोग हेतु IORA की सदस्यता ली है। पिछले कुछ समय में फ्रांस ने जिस प्रकार इस क्षेत्र की सामरिक स्थिरता के लिए तत्परता दिखाई है एवं भारत का खुलकर सहयोग किया है, वह चीन के लिए खतरे की घंटी है।
फ्रांस भारत के साथ कई कारणों से सहयोग कर रहा है। फ्रांस और भारत दोनों विश्व को पुनः द्विध्रुवीय व्यवस्था में नहीं जाने देना चाहते जिसमें एक ओर अमेरिका हो और दूसरी ओर चीन। ऐसे में बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि दोनों शक्तियां साथ आएं। दूसरा कारण यह है कि फ्रांस लोकतंत्र की नर्सरी है, अतः वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत का स्वाभाविक मित्र भी है।
भारत और फ्रांस स्पेस से लेकर न्यूक्लियर एनर्जी तक कई क्षेत्रों में सहयोग करते हैं। फ्रांस की 1000 से अधिक छोटी बड़ी कंपनियां भारत में व्यापार करती हैं जिनका सालाना टर्नओवर 20 बिलियन डॉलर से अधिक है। भारत फ्रांस के सैन्य उपकरणों के लिए बड़ा बाजार है एवं दोनों देश साथ मिलकर रक्षा तकनीक का विकास करते हैं एवं भविष्य में इस सहयोग के बढ़ने की असीम संभावना है।
आतंक के मुद्दे पर भी दोनों देश एक समान दृष्टिकोण रखते है। दोनों ही कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद से परेशान हैं। यही कारण है कि दोनों देशों का सहयोग लगातार बढ़ रहा है। इसी वजह से बॉन ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया कि “हम सार्वजनिक रूप से जो कहते हैं, चीनियों से निजी तौर पर भी हम वही कहते हैं।” उनका बयान यह बताता है कि भारत, फ्रांस के लिए किसी भी स्थिति में चीन से ज्यादा महत्वपूर्ण है और वह इसे खुले रूप से स्वीकार भी करता हैं। यही कारण है कि चीन की नाराजगी की परवाह किये बिना फ्रांस, खुलकर हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत का समर्थन कर रहा है।