White House में बाइडन की एंट्री के साथ ही Quad के भविष्य को लेकर चिंताएँ बढ़ गयी हैं। बाइडन प्रशासन द्वारा चीन को लेकर नर्म रुख अपनाए जाने की आशंका है, जो कि Indo-Pacific में भारत के हितों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। ऐसे में अब भारत “Free and Open Indo-Pacific” के सिद्धान्त को कायम रखने और चीन के खतरे से निपटने के लिए जल्द ही हिन्द महासागर क्षेत्र से सटे सभी देशों के रक्षा मंत्रियों की मेज़बानी करने वाला है। 4 फरवरी को बंगलुरु शहर में Aero India 2021 के साथ ही भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस बैठक का आयोजन करेंगे। भारत का संदेश साफ है कि वह हिन्द महासागर क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर गठबंधन बनाना जारी रखेगा, फिर चाहे उसे इस प्रक्रिया में अमेरिका का साथ मिले या फिर ना मिले!
हिन्द महासागर और लद्दाख में चीनी आक्रामकता बढ़ती ही जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब लद्दाख में दोबारा चीनी सेना किसी अवांछित गतिविधि को अंजाम दे सकती है। इसके साथ ही हिन्द महासागर में भी चीन की गतिविधि बढ़ती ही जा रही हैं। The Print की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के रिसर्च vessel लगातार सुमात्रा द्वीपों के आसपास चोरी-छिपे शोध-कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, जिसकी मदद से समुद्र से जुड़ा डेटा जुटाकर उसका इस्तेमाल Submarine Warfare में भी किया जा सकता है।
ऐसे में अब चीन के खतरे से निपटने के लिए भारत ने कमर कस ली है। मामले के जानकार एक अधिकारी के मुताबिक “भारत हिन्द महासागर क्षेत्र (IOR) कनक्लेव का आयोजन कर सुरक्षा, शांति और सहयोग के संदेश को आगे बढ़ाना चाहता है। भारत चाहता है कि हिन्द महासागर में सैन्य कूटनीति और आर्थिक संपन्नता के बल पर हम सब बातचीत के माध्यम से अपने अनुभव और शिक्षा एक दूसरे के साथ साझा कर सकें।”
बाइडन के आने के बाद भारत ने एक के बाद एक कई ऐसे फैसले लिए हैं, जो दिखाते हैं कि भारत अमेरिका के नर्म चीन-विरोधी रुख के बावजूद हिन्द महासागर में चीन की चुनौती से निपटने के लिए अन्य साथियों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं। पिछले वर्ष ही भारत ने प्रभावी रूप से मृत हो चुके Indian Ocean Rim Association यानि IORA को पुनर्जीवित करने के लिए फ्रांस को इसका सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया था। इसके साथ ही भारत ने बाइडन के शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही जापान और फ्रांस के साथ Quad के समानान्तर एक अन्य त्रिपक्षीय फोरम लॉन्च करने का भी ऐलान किया था।
भारत का बाइडन प्रशासन को संदेश एकदम साफ़ है। अगर अमेरिका चीनी खतरे से निपटने के लिए भारत का साथ नहीं देता है, तो वह अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर अपनी सशक्त सेना के दम पर बिना अमेरिकी सहायता के भी चीन से मुक़ाबला कर सकता है। हालांकि, ऐसी स्थिति में अमेरिका को हिन्द महासागर और Indo-Pacific में अपने प्रभाव को खोने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
बाइडन प्रशासन चीन के खिलाफ शायद वह सख्त रुख ना दिखाये, जो कि ट्रम्प प्रशासन के समय देखने को मिलता था। उदाहरण के लिए बाइडन के सत्ता संभालते ही अब अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेन्ट की वेबसाइट से Policy issues के अंतर्गत आने वाले “The China Challenge” के मुद्दे को पूरी तरह हटा दिया। इसके साथ ही चीनी प्रोफाइल के शीर्षक को “The Chinese Communist Party: Threatening Global Peace and Security” से बदलकर अब सिर्फ “US-चीन संबंध” कर दिया गया है। ऐसे में Quad के सदस्य देशों में अमेरिका की चीनी नीति को लेकर शंका पैदा होना स्वाभाविक सी बात है। ऐसे में स्पष्ट है कि अब भारत अमेरिका की नई चीन-नीति से पैदा होने वाले किसी भी चैलेंज से निपटने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर चुका है।