और इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार जाता है – पर्यावरण की मसीहा ग्रेटा थनबर्ग को
चौंक गए क्या? ये सच तो नहीं है, परंतु ऐसा हो सकता है, और किसी को कोई हैरानी नहीं होगी। इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार के दावेदार ऐसे हैं जिनके बारे में किसी भी एक व्यक्ति की समान राय शायद ही होगी। चाहे डोनाल्ड ट्रम्प हो, अलेक्सेई नवालनी हो, ग्रेटा थनबर्ग हो, या फिर Black Lives Matter ही क्यों न हो, इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित लोगों के बारे में कोई बहुत ही ज्यादा कट्टर समर्थन देता है, तो कोई नामांकित व्यक्ति या संगठन का धुर विरोधी होता है।
लेकिन अगर देखा जाए, तो नोबेल पुरस्कार की रीति के अनुसार इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार ग्रेटा थनबर्ग को मिलेगा। ये स्वीडन से संबंध रखने वाली एक 18 वर्षीय क्लाइमेट एक्टिविस्ट हैं, जो अपने ‘How Dare You’ नामक स्पीच के कारण सोशल मीडिया पर चर्चा और हंसी का पात्र दोनों बनी। यदि वे यह पुरस्कार जीतती हैं, तो वह इस पुरस्कार के इतिहास की दूसरी सबसे युवा विजेता होगी, क्योंकि सबसे युवा विजेता पाकिस्तानी मूल की ब्रिटिश मलाला यूसुफजई हैं, जिन्होंने 17 वर्ष की आयु में ये पुरस्कार भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से प्राप्त किया था।
लेकिन ग्रेटा थनबर्ग ने ऐसा क्या किया, जो वह इस पुरस्कार के योग्य हैं? अगर उसके एक स्पीच को छोड़ दें, तो ग्रेटा ने कुछ जगह भाषण देने के अलावा पर्यावरण के लिए नाममात्र का योगदान भी नहीं दिया, और न ही राजनीतिक रूप से उन्होंने कोई अहम उपलब्धि प्राप्त की है। वहीं दूसरी ओर अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के निजी व्यक्तित्व को अलग रखें, तो उन्होंने कूटनीतिक तौर पर वो काम किए हैं, जो एक वैश्विक स्तर के नेता को करने चाहिए।
आतंकवाद के विरुद्ध ताबड़तोड़ कार्रवाई करनी हो, दशकों से अशांत पड़े मिडिल ईस्ट में शांति के बीज बोने हो, चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को ध्वस्त करना हो या फिर विभिन्न देशों के साथ बिना किसी गोलीबारी या गुंडई के नए संबंध स्थापित हो, डोनाल्ड ट्रम्प ने वो सब किया है जिसकी दुहाई वामपंथी और बुद्धिजीवी अक्सर देते आए हैं।
लेकिन सच तो यह हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प के लाख परमार्थ के बाद भी उन्हे ये नोबेल शांति पुरस्कार शायद ही मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प ने काम किया है, ग्रेटा की तरह काम करने का दावा नहीं किया है। ब्लैक लाइव्स मैटर या खालसा एड को वे इसलिए ये पुरस्कार नहीं दे सकते, क्योंकि इससे नोबेल शांति पुरस्कार की प्रतिबद्धता ही खतरे में आ सकती है।
तो ग्रेटा के पुरस्कार जीतने की संभावना ज्यादा क्यों है? इस बारे में एक सटीक विश्लेषण में TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट किया,
“इस बात की संभावना ज्यादा है कि इस वर्ष नोबेल पुरस्कार शायद ग्रेटा को मिले। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रेटा उस आइसक्रीम विक्रेता की तरह जिससे कोई नहीं चिढ़ता। लेकिन यही एक कारण नहीं है। यह पुरस्कार ग्रेटा तो इसलिए भी मिल सकता है क्योंकि ग्रेटा काफी हद तक पर्यावरण के नाम पर तानाशाही का समर्थन करती है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के Eco Fascist नीतियों से काफी मिलता है। वैसे भी नोबेल का शांति पुरस्कार प्रोपगैंडा को बढ़ावा देने और गलत लोगों का महिमामंडन करने का सबसे बढ़िया हथियार है” –
#MyTake: And the Nobel Peace Prize goes to pic.twitter.com/Y6XwtdeVVp
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) January 31, 2021
अब अतुल मिश्रा अपने विश्लेषण में इसलिए भी सटीक बैठते हैं क्योंकि यदि आप नोबेल शांति पुरस्कार का इतिहास उठा के देखें, तो आपको बहुत कम ऐसे विजेता मिलेंगे, जो वास्तव में इस पुरस्कार के हकदार थे। बराक ओबामा को राष्ट्रपति बनने के महज एक वर्ष बाद ही नोबेल का शांति पुरस्कार मिला, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो अश्वेत थे। ठीक इसी प्रकार से इज़राएल के विरुद्ध कई आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में शामिल फिलिस्तीनी अलगाववादी यासिर अराफ़ात को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। मलाला के कारनामों के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि नोबेल शांति पुरस्कार सिर्फ उन्हे ही मिलेगा, जो काम करने से ज्यादा हवाई किले बनाने में विश्वास रखते हैं, और इस कैटेगरी में ग्रेटा थनबर्ग न सिर्फ फिट बैठती है, बल्कि हर वामपंथी और बुद्धिजीवी की पहली पसंद होगी, और ऐसे में हैरानी की बात तो तब होगी जब यह पुरस्कार ग्रेटा को न दिया जाए।