भारत सरकार ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए यह फैसला किया है कि वह geo-spatial डेटा को आम भारतीयों के साथ साझा करेगी। geo-spatial डेटा या भूस्थानिकडेटा के तहत पृथ्वी के पटल पर मौजूद सभी वस्तुओं, वे प्राकृतिक हों अथवा मानवनिर्मित, की जानकारी जुटाई जाती है अर्थात पहाड़, नदी, नाले से लेकर, पुल, सड़क, पगडंडि या फिर स्कूटर, बस, ट्रक सभी की जानकारी मैप पर मिल जाती है व किस सड़क पर कितना ट्रैफिक है, कितनी दुकान हैं, यह सभी जानकारी उपलब्ध होती है।
पहले सुरक्षा कारणों से इन्हें आम लोगों के साथ साझा नहीं किया जाता था। किंतु पिछले 6 सालों से अधिक के कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश की आंतरिक सुरक्षा को इतना मजबूत बना लिया है कि अब वह ऐसा क्रांतिकारी कदम उठा रही है। आम भारतीय को यह डेटा उपलब्ध होने का मतलब हुआ कि भारतीय स्टार्टअप कंपनियों और निजी सेक्टर को यह आसानी से पता चल जाएगा कि भारत के किस इलाके में कितनी दुकान हैं, कहाँ कितना ट्रैफिक मिलता है, कौन सा क्षेत्र छोटी या बड़ी आर्थिक इकाई लगाने के लिए उपयुक्त होगा।
हालांकि यह लाभ केवल भारतीय कंपनियों को ही मिलेगा, विदेशी कंपनियों को अब भी लाइसेंस की जरूरत होगी। लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाया जाएगा।
सरकार का उद्देश्य भारत में बढ़ते डिजिटलीकरण की गति को और तेज करना है। प्राइवेट कंपनियों को ISRO और सर्वे ऑफ इंडिया जैसे सरकारी संस्थानों का पूरा सहयोग होगा। सरकार की कोशिश है कि इसके जरिए रोजगार के नए अवसर बने।
इसकी जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री मोदी के ट्विटर अकाउंट से लिखा गया “यह बदलाव नए अन्वेषण करने और (समस्याओं के) अच्छे समाधान खोजने में स्टार्टअप, प्राइवेट सेक्टर,पब्लिक सेक्टर और शोध संस्थाओं के लिए असीमित असवर खोलेंगे। यह रोजगार को पैदा करेंगे और आर्थिक विकास की गति को बढ़ाएंगे।”
एक अनुमान के मुताबिक इससे 22 लाख नई नौकरियों के बनने की संभावना है, साथ ही यह भी उम्मीद की जा रही है कि geo-spatial सेक्टर का कुल व्यवसाय 1 लाख करोड़ से अधिक हो जाएगा।
भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में सरकार का कदम भारतीय कंपनियों को नए अवसर देगा। विशेष रूप से विदेशी कंपनियों के लिए लाइसेंस आवेदन का प्रावधान रखना एक समझदारी भरा कदम है। यह सुरक्षा के लिहाज से तो जरूरी है ही, साथ ही बाजार की प्रतियोगिता में भारतीय कंपनियों को बढ़त भी देता है। ऐसे में अमेजन जैसी स्थापित विदेशी कंपनियों से संघर्ष करने में, भारतीय कंपनियों को बड़ी मदद मिलेगी।
सरकार का फैसला यह भी दिखाता है कि अब भारतीय आर्थिक चिंतन में समाजवादी रुझान कमजोर पड़ रहा है। समाजवादी आर्थिक चिंतन में यह प्रवृत्ति होती है कि वह अपने ही देशवासियों, विशेष रूप से परिश्रमी उद्यमियों को शक की नजर से देखता है। समाजवाद के नाम पर उद्योगपतियों और निजी उद्यमियों को गाली देना आम बात है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने इसकी आलोचना भी की थी और भारत के आर्थिक विकास में उद्योगपतियों की भूमिका को सराहा था। ऐसे में सरकार का यह कदम प्रधानमंत्री की बात को व्यवहार में लागू करता है।