ऑनलाइन शॉपिंग साइट Myntra को बैठे-बैठे एक विवाद में घसीट लिया गया है। कंपनी 2007 में बनी है लेकिन उसके LOGO पर विवाद 2021 में खड़ा हुआ है। वो भी ऐसा कि कंपनी को अपना LOGO ही बदलना पड़ा है।
#MyntraLogo Mtlb logo me bhi overthinking 😂😂😂😂 pic.twitter.com/Kp7G21Zmzi
— Priyanka Shukla (@piaa2721) January 30, 2021
पहले मामले को समझते हैं, दरअसल, Avesta Foundation नामक NGO चलाने वाली नाज पटेल ने Myntra पर आरोप लगाया था कि उनका LOGO औरतों के लिए अपमानजनक है। इसलिए उन्होंने मुंबई में कंपनी के खिलाफ FIR भी दर्ज करवा दी, जिसके बाद कंपनी ने अपना LOGO बदल दिया। नाज पटेल का कहना था कि कंपनी का पुराना LOGO, किसी औरत को नग्न रूप में प्रदर्शित करने जैसा लगता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या Myntra पर लगे आरोप सही हैं, क्या वास्तव में वैसा ही है जैसा की आरोप लगाया गया है? उससे भी बड़ा प्रश्न है कि Myntra ने विवाद से बचने के लिए, LOGO बदलने का जो कदम उठाया वह कितना सही है!
देखा जाए तो नाज पटेल से पहले आज तक किसी ने Myntra के LOGO को उस नजरिये से नहीं देखा था। ऐसे में क्या कंपनी नाज पटेल पर केस नहीं कर सकती थी कि वह उनके LOGO को आधार बनाकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास कर रही हैं, क्योंकि LOGO अगर वाकई नग्नता को समर्थन देने वाला होता तो आज से पहले कोई भी इसे नाज पटेल के नजरिए से क्यों नहीं देख सका।
@myntra feeling's right now..#MyntraLogo pic.twitter.com/UT5C3QfB2O
— Divya Prakash Mishra (@yash__1810) January 30, 2021
नारीवादी आंदोलनकर्ता यह कहती हैं कि नग्नता व्यक्ति की सोच में होती है, कपड़ो में नहीं। तो फिर यह तर्क Myntra के LOGO पर लागू क्यों नहीं होता? सबसे बड़ा प्रश्न है कि पब्लिसिटी के लिए ऐसी बकवास बातों को अनावश्यक महत्त्व देने वाली नारीवादी आंदोलनकर्ता महिलाओं के असल मुद्दों को क्यों नहीं उठाती।?
कभी कोई कंप्लेन बॉलीवुड के उन गानों के खिलाफ क्यों नहीं होती जो खुलेआम नग्नता प्रदर्शित करती हैं और महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं।
क्या नाज पटेल या उनके जैसे लोग शाहिद कपूर, प्रभु देवा ,सोनू सूद, सोनाक्षी सिन्हा और ‘R राजकुमार’ की टीम के खिलाफ FIR करेंगे, जो गाने में कहते हैं “अब करूंगा तेरे साथ गंदी बात”। ऐसे सैकड़ों गाने हैं, लेकिन उनपर विवाद नहीं होता।
Myntra जैसी कंपनियों को निशाना इसलिए बनाया जाता है क्योंकि भारत में कॉरपोरेट को डराना धमकाना सबसे आसान काम है। चाहे गुंडे हों या NGO, दोनों कॉरपोरेट के साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं।
वैसे मजेदार बात ये है कि ट्विटर पर लोग व्यंग कर रहे हैं कि क्या अन्य कंपनियों के LOGO भी बदले जाएंगे क्योंकि ऐसे खोजने निकलें तो नग्नता तो सब जगह मिल जाएगी।
After #myntra controversy Apple company rethink about their logo too 😐😐😐😐😐 pic.twitter.com/2BdDPN8ksW
— Saurya Verma (@SauryaVerma10) January 31, 2021
after Myntra's logo controversy"
other companies with perfectly innocent logos – pic.twitter.com/SwtLl0uME7
— Tweet Chor👑 (@Pagal_aurat) January 30, 2021
After #MyntraLogo controversy
I’m also filing petition against Renault's logo 😒 pic.twitter.com/L46CTeQG84— 😾 (@Keshuu_16) January 30, 2021
सोशल मीडिया पर आम जनता ने हर ब्रांड के LOGO को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए और संकीर्ण मानसिकता पर गहरा प्रहार किया। लोगों ने पूछा कि क्या Amazon का LOGO पुरुषों के लिए अपमानजनक माना जाए?
फेमिनिस्ट भनाउदाहरुले इन्डियामा #Myntra को लोगो मा नि आपत्ति देखेछन्, खै हाम्ले #Amazon को लोगो मा त्यो देखाएको लाई केहि आपत्ति जनाएको छैन क्यारे ! नपत्याए तल हेर्नुस 😂😂😂 pic.twitter.com/6oy895pVGa
— अपरिचित केटो (@Yubraj_Koirala) January 31, 2021
नग्नता खोजने वालों को हर प्रोडक्ट की टैग लाइन पर आपत्ति होनी चाहिए और ऐसे कई उदाहरण मिल सकते हैं। जैसे कुरकुरे को ही देख लीजिये: जिसकी टैगलाइन है: टेढ़ा है पर मेरा है!
We Never complained about
Kurkure's Tagline-"Tedha hai par mera hai"#Myntra #MyntraLogo
— ig/hemantsingh1 (@thoda_sarcastic) January 30, 2021
ऐसे कई और हैं जैसे,
“बजाते रहो” रेड FM
“पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें” घड़ी
“जस्ट डु इट” nike
“धन धना धन”- जिओ
“करो ज्यादा का इरादा” मैक्स लाइफ इंश्योरेंस
“रात भर ढिशुम ढिशुम” पेप्सूडेन्ट
अब इन सब को द्विअर्थी समझा जा सकता है, जबकि इन टैग लाइन को बनाने वालों को यह समझ ही नहीं होगी कि निकालने वाले क्या क्या अर्थ निकालेंगे।
देखा जाए तो ‘अधिकारों की लड़ाई’ के नाम पर चल रहे संगठन ऐसे ही अनर्गल बातों को महत्व देने में अपनी बहादुरी समझते हैं। नारीवादियों को तब कोई आपत्ति नहीं होती जब आजम खान जैसे नेता अभद्र टिप्पणी करते हैं।
लव जिहाद द्वारा औरतों पर किये जा रहे अत्याचार, हलाला जैसी कुप्रथा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं होती। बदलाव लाने के लिए हजारों मुद्दे हैं, बशर्ते आप पब्लिसिटी स्टंट करने के बजाए असल मामलों को उठाने का माद्दा रखें।
Myntra द्वारा अपना LOGO बदलना ऐसे लोगों को बढ़ावा देगा जो वास्तविक मुद्दों को छोड़, बेकार के विवाद पैदा करने में ज्यादा दिलचस्पी रखतें हैं। Myntra को ऐसे बेतुके आरोप के सामने झुकना यह भी बताता है कि भारत में कॉरपोरेट शक्तियां, ऐसे NGO की दादागिरी के आगे कितनी आसानी से हार मान लेती हैं।।