कूटनीति और भू-राजनीति दो व्यक्तियों के आपसी रिश्तों के आधार पर नहीं, बल्कि दो देशों के हितों के आधार पर आगे बढ़ाई जाती है। नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू के बीच नए तनाव का कारण अब अमेरिका और इज़रायल की अलग-अलग ईरान नीति बन सकती है।
दरअसल, बाइडन कैसे भी करके ईरान को ईरान न्यूक्लियर डील में दोबारा शामिल करना चाहते हैं, जबकि दूसरी ओर नेतनयाहू उनके इस विचार के खिलाफ हैं। वर्ष 2015 में ओबामा प्रशासन के अंतर्गत अमेरिका ने ईरान के साथ इस न्यूक्लियर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे ट्रम्प ने आते ही रद्द घोषित कर दिया और ईरान पर नए प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया। तब खाड़ी देशों सहित इज़रायल ने अमेरिका के इस फैसले का समर्थन किया था।
ओबामा प्रशासन में जो बाइडन अमेरिका के उप-राष्ट्रपति थे, और ईरान न्यूक्लियर डील को उनका भी भरपूर समर्थन हासिल था। बाइडन अब जब राष्ट्रपति बने हैं, तो वे दोबारा अरब साथियों और इज़रायल को नाराज़ करते हुए इस डील को बहाल कर सकते हैं, ठीक वैसे जैसे ओबामा ने किया। ओबामा फिलिस्तीन के समर्थक माने जाते थे और वे Two state solution के पक्षधर थे। ऐसे में उनकी नीतियों की वजह से नेतनयाहू और ओबामा प्रशासन के बीच में तनाव पैदा हो गया था। ओबामा की ईरान नीति नेतनयाहू के लिए अस्वीकार्य थी।
वर्ष 2011 में पश्चिमी एशिया में अमेरिका की राजनीति को लेकर White House में ही नेतनयाहू ने ओबामा को लताड़ भी लगाई थी। उससे एक साल पहले बाइडन ने इज़रायल का दौरा किया था, तब इज़रायल ने ओबामा प्रशासन को कडा संदेश भेजते हुए पूर्व यरूशलम में नई बस्तियों को स्थापित करने का ऐलान किया था। तब विदेश मंत्री Hilary Clinton ने इज़रायल के उस कदम को अमेरिका का अपमान बताया था।
लेकिन उस वक्त बाइडन क्या कर रहे थे? वे 80 के दशक से ही नेतनयाहू के करीबी माने जाते हैं, लेकिन उस वक्त वे इज़रायल के समर्थन में कुछ भी नहीं कर पाये थे। वर्ष 2014 में बाइडन ने नेतनयाहू को कहा था “बीबी, मैं तुम्हारे साथ सहमत नहीं हूँ, लेकिन मुझे तुमसे बहुत लगाव है।” नेतनयाहू के लिए यह इशारा इस बात को समझने के लिए काफी था कि बाइडन ओबामा प्रशासन के तहत नेतनयाहू की किसी प्रकार भी सहायता नहीं कर पाएंगे।
इसके बाद जब ट्रम्प सत्ता में आए, तो इज़रायल-अमेरिका के रिश्ते और बेहतर होते चले गए। नेतनयाहू और ट्रम्प के बीच दोस्ती और घनिष्ठ होती चली गयी। ट्रम्प प्रशासन के समय ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों और अरब देशों और इज़रायल के बीच Abraham Accords ने इज़रायल को काफी मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया।
ओबामा प्रशासन और बाइडन प्रशासन द्वारा इज़रायल के लिए खड़ी की जा रही मुश्किलों में कुछ ज़्यादा असमानता नहीं है। बाइडन भी Two state solution के पक्षधर हैं और वे भी ईरान को दोबारा न्यूक्लियर समझौते में लेकर आना चाहते हैं। अब नेतनयाहू और बाइडन के रिश्तों में तनाव देखने को मिल सकता है, जैसे कि ओबामा प्रशासन के समय ओबामा-नेतनयाहू के आपसी रिश्तों में देखने को मिला था।
बाइडन प्रशासन और नेतनयाहू सरकार के बीच इस पारी की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही है। ओबामा की तरह बाइडन बेशक नेतनयाहू से नफरत ना करते हों, लेकिन इतना तय है कि बाइडन प्रशासन की नीतियों की कारण नेतनयाहू ओबामा की तरह ही बाइडन से भी बराबर नफरत करते हैं।