कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे राहुल गांधी ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दे दिया है, जो कि सबसे अधिक विवादास्पद है क्योंकि उनके इस रवैए से सवालों के घेरे में वो खुद ही आ गए हैं। राहुल ने संसद में इस बार बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान संबोधन से परहेज किया है। उनका कहना है कि वो किसानों के प्रति अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कुछ नहीं बोलेंगे। राहुल के बयानों से इतर अब वो अपनी ही इस करतूत के बाद सवालों के घेरे में आ गए हैं क्योंकि वो देश के प्रमुख मंच पर ही चर्चा से भाग गए हैं।
देश की राजनीति में सभी ने देखा है कि राहुल गांधी प्रत्येक मुद्दे पर यही बोलते हैं कि उन्हें संसद में बोलने का मौका नहीं मिल रहा है। राहुल का हमेशा कहना रहता है कि वो अगर संसद में बोलेंगे तो प्रधानमंत्री मोदी उनके सामने खड़े नहीं हो पाएंगे, लेकिन वो जब-जब बोलते हैं तो अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण देश में हास्य का विषय बन जाते हैं। ऐसे में बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद होने वाले धन्यवाद प्रस्ताव में राहुल गांधी कुछ नहीं बोले।
राहुल गांधी किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं। पंजाब से शुरु हुए किसान आंदोलन की आग में राहुल ने ही सबसे पहले सोफे वाले ट्रैक्टर्स में बैठकर यात्रा कर घी डाला था। राहुल गांधी लगातार ट्विटर पर मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार देश के किसानों के खिलाफ कदम उठाकर चंद उद्योगपतियों को लाभ पहुंचा रही है। कांग्रेस और राहुल के ट्विटर हैंडल पर देखे तो पिछले तीन महीनों में केवल कृषि कानून और लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध ही मुद्दे रहे हैं।
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ऐसे में राहुल गांधी के पास सुनहरा मौका था कि वो संसद में प्रधानमंत्री के बोलने से पहले पीएम से प्रत्येक मुद्दे पर बेबाकी से सवाल पूछ सकते थे। राहुल संसद के जरिए देश के प्रत्येक नागरिक तक अपने सटीक सवाल पहुंचा सकते थे, जिनके जवाब देने के लिए पीएम मोदी भी बाध्य होते, परंतु राहुल तो राहुल हैं। एक वक्त था जब वो बोलकर संसद में खुद को और अपनी पार्टी को हंसी का पात्र बना देते थे, और अब उन्होंने जरूरी मुद्दों पर संसद में चुप्पी साधकर पार्टी को एक नई आलोचना के घेरे में डालने के साथ ही उनके विरोध पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
इन सारी परिस्थितियों से ये निष्कर्ष निकल रहा है कि राहुल अब केवल विरोध की राजनीति करते हुए असल मुद्दों पर बात करने से बचते हुए भाग रहे हैं और इससे उनकी छवि एक भगोड़े नेता की भी बन गई है जो केवल आंदोलन के नाम पर सोशल मीडिया पर लोगों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं और उनका जनहित के मुद्दों से कोई कोई खास सरोकार नहीं है।
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राहुल की इतनी हो चुकी आलोचनाओं के बाद अब खबरें ये हैं कि वो कांग्रेस सांसद शशि थरूर के स्थान पर संबोधन दे सकते हैं क्योंकि उनकी आलोचना काफी ज्यादा हो चुकी है, लेकिन अब उनके बोलने से कोई खास फायदा नहीं है क्योंकि अब प्रधानमंत्री का संबोधन हो चुका है और उनके द्वारा उठाए गए सवाल केवल एक औपचारिकता ही होगें; लेकिन असल बिंदु पहले ही निकल चुका है क्योंकि राहुल एक अपरिपक्व नेता की तरह अपनी कर्तव्यपरायणता से भाग रहे हैं।