नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा खूबसूरत देश, जहां ज्योतिर्लिंग भी है शक्तिपीठ भी है। कुछ समय पहले तक यह विश्व का एक मात्र घोषित हिन्दू राष्ट्र था जो अब सेक्युलर स्टेट बन चुका है। परन्तु भारत नेपाल की सांस्कृतिक विरासत को वापस लाने वाले परियोजनाओं पर नेपाल के साथ काम कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत नेपाल में तीन और सांस्कृतिक विरासत परियोजनाओं के पुनर्निर्माण के लिए भारत 246 मिलियन खर्च करेगा। यह दिखाता है कि भारत एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में नेपाल के साथ दोनों देशों की एतिहासिक सांस्कृतिक विरासत लौटाने पर काम कर रहा हैं। यही सांस्कृतिक विरासत दोनों देशों की मजबूत और मैत्रीपूर्ण ऐतिहासिक संबंधों की आधारशिला रही है।
विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार, ललितपुर में जेष्ठ वर्ण महाविहार, सुलग्यांग गुंबा और सिंधुपालचौक जिले में स्थित श्रमथंग गुंबा के लिए बुधवार को बहाली और पुनर्निर्माण के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) जेष्ठ वर्ण महाविहार की बहाली के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करेगा, जबकि अन्य दो Central Level Project Implementation Unit (CLPIU) द्वारा किए जाएंगे।
मंत्रालय ने कहा, “भारतीय पुनर्निर्माण अनुदान के तहत किए जाने वाले 28 सांस्कृतिक क्षेत्र की परियोजनाओं में से, कुल 6 कॉन्ट्रैक्ट पहले ही दिए किए जा चुके हैं।” बता दें कि नेपाल के आठ जिलों में भूकंप के बाद कल्चरल हेरिटेज साइट्स के पुनर्निर्माण के लिए भारत ने नेपाल को 50 मिलियन अमरीकी डालर की मदद की थी । Budhaneelkantha में धर्मशाला बनाने और ललितपुर जिले में कुमारी होम के संरक्षण और विकास के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे।
जब से इस देश में माओवादियों की सरकार बनी है तब से कई परिवर्तन हुए हैं और उनमें से एक प्रमुख परिवर्तन है इस देश का हिन्दू देश से सेक्युलर देश घोषित होना। उससे पहले यह देश विश्व का एकमात्र हिन्दू देश था। सेक्युलर घोषित होने के बाद नेपाल में धर्मांतरण एक नयी ऊंचाई पर पहुँच चुका है। कहने को तो नेपाल में कम्युनिस्टों की सेक्युलर सरकार है लेकिन, पर्दे के पीछे देखा जाए तो यह एक तरह से नेपाल में हो रहे धर्मांतरण में मदद कर रही है जिससे हिंदुओं की संख्या कम हो पर अब हिन्दू विरासत के पुनर्निर्माण से जनता में एक नया जोश जागेगा।
कुछ दिनों पहले नेपाल की राजधानी काठमांडू में लोग सड़कों पर उतर आए थे। ये प्रदर्शनकारी सरकार से दोबारा इस लोकतंत्र को खत्म करके राजशाही शासन और हिन्दू राष्ट्र लागू करने की मांग कर रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि नेपाल की हिन्दू पहचान को बहाल करने और राजशाही के हाथों में सरकार की बहाली की मांगों ने भारतीय अधिकारियों की रणनीतिक यात्राओं की एक श्रृंखला के बाद जबरदस्त गति प्राप्त की थी।
सबसे पहले, RAW प्रमुख ने तनाव को कम करने के लिए नेपाल का दौरा किया था, इसके बाद भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुन्द नरवाने काठमांडू गए। हाल ही में, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला को नई दिल्ली द्वारा नेपाल भेजा गया था। इस तरह की यात्राओं का वास्तव में भारत के लिए बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अब भारत द्वारा कई सांस्कृतिक विरासत परियोजनाओं के पुनर्निर्माण के लिए आगे आना नेपाल के साथ मजबूत होते रिश्तों की पहचान है।
इससे न सिर्फ नेपाल में हिन्दू विरासत लौटेगी बल्कि नेपाल के अन्दर एक सांस्कृतिक क्रांति की नींव भी पड़ेगी जिससे यह देश एक बार फिर से हिन्दू राष्ट्र बने। नेपाल और भारत एक ही आत्मा हैं भले ही दो देश हों। भारत और नेपाल के सदियों पुराने रिश्ते हैं, जो केवल सीमाओं की बंदिशों से तय नहीं हो सकते। दोनों देशों के रिश्ते सांस्कृतिक रूप से बहुत ही सुदृढ़ हैं और अब इस कदम से दोनों के रिश्तों में मिठास आएगी।