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अमित शाह ने बंगाल का टार्गेट 200 से 200+ किया, शाह के “+” के पीछे के राज

बंगाल चुनाव के लिए शाह का सम्पूर्ण गणित....

Krishna Bajpai द्वारा Krishna Bajpai
9 April 2021
in विश्व
‘CAA दोगुने जोश के साथ आएगा, किसमें हिम्मत है जो इसे रोक सके’, अमित शाह ने अपने बंगाल दौरे से दिया स्पष्ट संदेश
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। कहने को तो राज्य में कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियां भी चुनावी मैदान में लड़ रहीं हैं, लेकिन मुख्य लड़ाई सत्ताधारी TMC और केंद्र में 6 सालों से सत्ता पर काबिज BJP के बीच है।

BJP… जिसका एक दशक पहले बंगाल की राजनीति में कोई जनाधार तक नहीं था उसके नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अब राज्य में 200 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। पहली नजर में ये दावा खोखला लग सकता है, लेकिन बंगाल में अमित शाह के चुनावी गणित को हल्के में लेना बचकानी बात हो सकती है क्योंकि इसके पीछे BJP के प्रत्येक कार्यकर्ता की पिछले सात सालों की कड़ी मेहनत है।

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पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो BJP को तीन सीटें मिली थी, लेकिन BJP ने इसके जरिए राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज की, और संघ की मदद से जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूती देने के लिए कार्यकर्ताओं की एक फौज उतार दी।  2016 विधानसभा चुनाव नतीजों से लग रहा था कि पार्टी को सत्ता में आने में करीब 10 वर्षों तक मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन शाह के नेतृत्व में BJP ने 2019 के लोकसभा चुनावों में कमाल कर दिखाया, तीन विधानसभा सीटों वाली पार्टी राज्य की लगभग आधी लोकसभा सीटों पर (42 में 18 पर जीत)अपना कब्जा कर चुकी थी।

2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम इस बात का प्रमाण हैं कि अब ये 2021 विधानसभा चुनाव BJP और पश्चिम बंगाल के लिए गेम चेंजर होने वाला है। कुछ ऐसा ही इस बार भी हो रहा है क्योंकि तीन चरणों के मतदान में पिछ्ले चुनावों की अपेक्षा वोटिंग प्रतिशत मामूली तौर पर बढ़ा ही है, जो कि कहीं-न-कहीं दिखाता है कि एक तरफ जहां सत्ता विरोधी लहर के चलते ममता दीदी से लोग नाराज होकर बैठ जा रहे हैं, तो दूसरी ओर BJP का वोटर निकल वोटिंग कर रहा है, और ये स्थितियां BJP के लिए सकारात्मक हो सकती हैं।

BJP अध्यक्ष अमित शाह पहले 200 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे लेकिन तीन चरणों के चुनावों के बाद उनका ये दावा 200 से अधिक सीटों का हो चला है। इसका भी एक जमीनी आधार हैं क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ लोगों में आक्रोश की स्थिति है, जिसकी मुख्य वजहों में एक राज्य लगातार बढ़ती राजनीतिक हिंसा भी है। इसके चलते BJP ने अपने 150 कार्यकर्ताओं की मौत को मुद्दा बना लिया है। इतना ही नहीं इस बीच चुनाव के दौरान भी कई जगहों से BJP कार्यकर्ताओं की हत्या और उनके साथ मारपीट की खबरें सामने आ रही हैं जो कि ममता के लिए मुश्किल बन गईं हैं।

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जातीय समीकरणों की बात करें तो भद्रलोक जो कि कभी ममता बनर्जी की पार्टी TMC के लिए गढ़ माना जाता था, वहां BJP ने सेंधमारी कर दी है। बरसों तक गोरखालैंड को लेकर ममता दीदी ने तुष्टीकरण की राजनीति की, लेकिन चुनावों में इस इलाक़े में BJP की स्थितियां बदल गई हैं क्योंकि BJP द्वारा केंद्रीय स्तर पर किए गए प्रयास गोरखालैंड के स्थानीय लोगों को साफ दिख रहे हैं, जो कि BJP के हक में जा सकते हैं।

पश्चिम बंगाल में एक बड़ा वोट बैंक मतुआ समुदाय का है जो कि उत्तरी 24 परगना समेत राज्य की 70 सीटों पर अपना विशेष प्रभाव रखता है जिसके चलते ममता दीदी ने इन्हें लुभाने की कोशिश तो की है लेकिन BJP के लिए इस इलाक़े में नागरिकता संशोधन कानून गेम चेंजर बन गया है। मतुआ समुदाय के लोग जो कि लगातार शरणार्थी जीवन जीने को मजबूर हैं, उन्हें ये केन्द्र सरकार का कानून बिना शर्त नागरिकणा देने वाला सहज रास्ता प्रतीत हो रहा है, दूसरी ओर ममता दीदी सीएए लागू न करने की बात कर रहीं हैं, जिसके चलते इस समुदाय के लोगों के लिए सीएए निजी हित का मुद्दा बन गया है। यही कारण है कि लोग अब BJP की तरफ शिफ्ट कर रहे हैं।

और पढ़ें- जानिए, कैसे CAA कर रहा बंगाल में मतुआ समुदाय की मदद और इसी में BJP के लिए चुनावी जीत का मंत्र है

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण मुस्लिम समाज के लोगों को तो ओबीसी आरक्षण में शामिल करने का फैसला किया, लेकिन महिष्य समुदाय के लोगों को उनके अधिकार से वंचित रखा। महिष्य लंबें समय से खुद को ओबीसी में शामिल करने की बात कर रहे थे, लेकिन ममता दीदी मुस्लिम तुष्टीकरण में व्यस्त थीं। ऐसे में BJP अपने मेनिफेस्टो में इस समाज के लोगों को ओबीसी का दर्जा दिलाने का रोड मैप रख चुकी है।

और पढ़ें- ममता ने महिष्य समुदाय OBC स्टेटस की मांग को हमेशा अनदेखा किया, अब भाजपा इन्हें वो स्टेटस देगी

कुछ ऐसा ही कूचबिहार के इलाके में भी होने वाला है। यहां राजवंशी समाज घुसपैठियों को मुख्य-धारा में लाने के मुद्दे पर ममता दीदी का विरोधी बन गया है और यही समाज एनआरसी की बात करने वाली BJP को लोकसभा चुनावों में इलाके की 9 में से 7 सीटों पर बढ़त दे चुका है, क्योंकि यहां के लोग नहीं चाहते कि बांग्लादेश के घुसपैठिये गलत तरीके से बंगाल में बसाए जाएं। ये इस बात का संकेत है कि इस बार BJP के लिए एनआरसी का मुद्दा वोटों में बढ़ोत्तरी करेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में मुख्य रूप से राजवंशी वोटरों की भूमिका निर्णायक है जो कि आस पास की 7-8 सीटों पर भी तगड़ा प्रभाव डाल सकती है।

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मुस्लिम तुष्टीकरण के जरिए बंगाल में सत्ता हासिल करने वाली ममता दीदी के लिए एक मुश्किल ये भी है कि इस बार ओवैसी की पार्टी AIMIM से लेकर फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी का कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन में शामिल हो कर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में वोटों के बंटने की संभावनाएं हैं जिसका सीधा फायदा BJP को हो सकता है। इसके चलते ममता दीदी मुस्लिमों से अपने वोट न‌ बंटने देने की अपील कर चुकी हैं। हालांकि इस मामले में चुनाव आयोग ममता दीदी को झटका दे चुका है।

इसके अलावा केंद्र सरकार अपनी कई योजनाओं के जरिए देश के करोड़ों लोगों के दिल में जगह बना चुकी है, जिसमें उज्जवला, शौचालय, स्वास्थ्य बीमा और किसान निधी जैसी स्कीमें शमिल हैं लेकिन अजीबो-गरीब बात ये है कि बंगाल में ममता दीदी ने केंद्र की कई योजनाओं पर रोक लगा रखी है। वहीं BJP बंगाल में जमीनी स्तर पर ये बात पहुंचाने में भी सफल हुई है कि ममता दीदी जनहित से जुड़े मुद्दों पर कुंडली मारकर बैठी हैं, जिसके चलते जनता के मन में उनसे नाराजगी के कारण बढ़ते जा रहे हैं।‌

और पढ़े़ं- “अब का सेक्युलर नेता मुस्लिम-प्रेम भी न करें?”, ममता को मुस्लिम बयान पर EC की फटकार

ममता के दस साल के कार्यकाल के दौरान उनके भ्रष्ट शासन को TMC के कई नेताओं ने देखा है, और उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर समेत भतीजे अभिषेक बनर्जी को विशेष वरीयता मिलने के साथ पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का खात्मा ममता दीदी के पतन की बड़ी वजह बनने वाला है। इसके चलते पार्टी मुकुल रॉय से लेकर शुभेंदु अधिकारी और राजीब बनर्जी जैसे बड़े और वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ BJP में जा चुके हैं और ममता के कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ चुका है। ममता शुभेंदु से टक्कर दिखाने के लिए नंदीग्राम से चुनाव तो लड़ चुकी हैं लेकिन नंदीग्राम को शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माने जाने के कारण यहां ममता के खुद हारने की संभावनाएं दिख रही हैं।

और पढ़ें- क्यों शुभेंदु अधिकारी TMC के लिए हिमंता बिस्वा सरमा जैसी बड़ी गलती साबित होगी

इसके अलावा मुख्यमंत्री की एक बड़ी मुश्किल भ्रष्टाचार भी है जिसके चलते BJP लगातार TMC पर हमले बोल‌ रही है। भतीजे अभिषेक बनर्जी तक पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप ममता के गले की फांस बन गए हैं। इसके अलावा अमफान तूफान ने ममता दीदी की छवि पर भ्रष्टाचार का सबसे बुरा दाग लगाया है क्योंकि लोगों के मन में ये बात बैठ गई है कि ममता सरकार ने केंद्र द्वारा दिया पैसा हजम कर लिया है। इतना ही नहीं, बांग्लादेश से गौ-तस्करी में सहज होने और घुसपैठियों को वरीयता देने के मुद्दे पर भी समाज का बड़ा वर्ग ममता दीदी से नाराज है।

और पढ़ें- अभिषेक ने ममता की सरकार का सबसे ज्यादा फायदा उठाया, BJP सरकार आने पर उनका जीना हराम हो जाएगा

इन सभी परिस्थितियों पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल का ये विधानसभा चुनाव TMC और BJP दोनों के लिए गेम चेंजर हो सकता है क्योंकि एक तरफ ये BJP को राज्य की सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर ले जा सकता है, तो दूसरी ओर ममता की पार्टी TMC के राजनीतिक भविष्य को हाशिए पर ले जा सकता है। इसीलिए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में इन सभी चुनावी गणितों के आधार पर BJP के कथित चाणक्य अमित शाह बंगाल में 200 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, जिसकी संभावनाएं भी अब बढ़ाने लगी हैं।

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