पाकिस्तान में आजकल आतंकी हिंसा नहीं, बल्कि उग्रवादी हिंसा सुर्खियों में है। बता दें कि, पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) फ्रांसीसी राजदूत को पाकिस्तान से निष्कासित करने की मांग को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
पीएम इमरान खान ने अपनी कुर्सी को बचाने के लिए चाल चलना शुरू कर दिया है, जिसमें उन्होंने पश्चिम देशों पर पैगंबर के खिलाफ बोलने वालों के लिए ईशनिंदा वाले कानून लाने का आग्रह किया।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके इस सुझाव पर पश्चिमी देश ध्यान नहीं देंगे, लेकिन उनके पास कट्टरपंथियों को शांत करने के लिए और दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इमरान खान ने ट्वीट कर लिखा कि, “मुसलमान अपने पैगंबर की किसी भी तरह की ईशनिंदा बर्दाश्त नहीं कर सकते।”
पीएम इमरान खान ने ट्वीट में यह भी लिखा कि, “मैं उन पश्चिमी देशों की सरकारों का भी आह्वान करता हूं जिन्होंने नाजी जर्मनी की ओर से यहूदियों के नरसंहार से इनकार करने वाली टिप्पणियों को प्रतिबंधित किया है कि वे उन लोगों को दंडित करने के लिए भी वही मानक अपनाएं जो पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी करके मुस्लिमों के खिलाफ जानबूझकर नफरत वाले संदेश फैला रहे हैं।”
इमरान खान इस ट्वीट से सेब (यहूदी नरसंहार) की संतरा( पैगंबर की ईशनिंदा)से तुलना करके अपनी अज्ञानता का परिचय दे रहे हैं।
पीएम इमरान खान ने इस मामले पर मुस्लिम देशों को एक साथ खड़े होने का आग्रह किया और ट्वीट कर कहा कि, “जब 50 मुस्लिम देश एकसाथ खड़े होकर यह मांग करे कि, अगर किसी देश में ईशनिंदा की घटना होती है, तो हम उस देश से व्यापार का बहिष्कार करेंगे।”
आपको बता दें कि, खान की बात सुनकर कुछ कट्टरपंथी देश जैसे इंडोनेशिया और मलेशिया तो साथ खड़े हो सकते है, लेकिन अरब देशों में खान की बातों की शायद चर्चा भी न हो क्योंकि अरब देशों के अपने सख्त नियम होते है और वह उसी के हिसाब से काम करते हैं। अरब देश जैसे यूएई, सऊदी अरब, पश्चिमी देशों के नियम कानून में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
वो अपने देश की कूटनीति को धार्मिक भावनाओं से अलग रखते हैं। इसलिए हम उम्मीद कर सकते है कि, खान का यह बड़बोलापन बैकफायर कर सकता है।
Al Jazeera की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में साल 1990 के बाद से ईशनिंदा के आरोपों में कम से कम 78 लोग मारे जा चुके हैं।
इमरान खान ने एक साथ दो चाले चली है। पहला यह कि, अपने यहां के कट्टरपंथियों को कभी पूरा न होने वाला सपना दिखा दिया है और दूसरा यह कि, मुस्लिम देशों में अपनी साख मजबूत करने के लिए खान ने यह दांव खेला है। इमरान खान के इस दांव से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय जिल्लत उठानी पड़ सकती है, क्योंकि इमरान खान अपना पिछड़ी सोच, पश्चिम के प्रगतिशील देशों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं।