भारतीय जनता पार्टी अपने कार्यकाल में कई ऐसे बड़े रिफॉर्म्स लेकर आई है, जिससे देश को आने वाले समय में बहुत लाभ मिलने वाला है। जैसे कि -CAA कानून, किसान बिल, या फिर कश्मीर से धारा 370 को रद्द करना। लेकिन यह सारे रिफॉर्म्स आसानी से नहीं आए है, बहुत सारी मुश्किलों का सामना करने के बाद यह बदलाव आया है। इन नेक कामों में रुकावट पैदा करने वाले विपक्षी नेता तो थे ही, लेकिन भाजपा के सहयोगी दलों ने भी BJP का कुछ ज्यादा साथ नहीं दिया है।
हाल ही में, हरियाणा के उप मुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी के प्रमुख दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर से किसानों से बातचीत करने का आग्रह किया। पत्र की भाषा में चौटाला का किसानों के प्रति झुकाव साफ नजर आ रहा है। पत्र में चौटाला ने किसानों के साथ बातचीत करने के लिए तीन से चार कैबिनेट सदस्यों की एक कमेटी बनाने को कहा है। चौटाला ने कथित किसानों को “अन्नदाता” का भी खिताब दिया है।
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अगर हम चौटाला की भाषा को समझें तो यह साफ़ होता है कि, JJP अब किसान आंदोलन के पाले में जा रही है और वो अब भाजपा को हरियाणा में कभी भी धोखा दे सकती है। बता दें कि हरियाणा में भाजपा और JJP गठबंधन की सरकार है। JJP फिलहाल वही रवैया अपना रही है, जैसा अकाली दल ने अपनाया था। अकाली दल भी अपने निजी फायदे के लिए भाजपा का साथ छोड़ दिया था। बड़े रिफॉर्म को समर्थन न देना तो एक तरफ, यह राज्य-स्तरीय पार्टियां राज्य को बर्बाद भी कर देती है। उदाहरण के लिए आप अकाली दल को देख लीजिए, अकाली दल ने पंजाब को नशे का गढ़ बना दिया है, जिससे भाजपा की भी बदनामी हुई। ठीक वैसे ही, JJP के दबाव में ही खट्टर सरकार हरियाणा में प्राइवेट कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण देने के लिए बिल लेकर आई थी। इस कदम का व्यावसायिक समुदायों ने पुरजोर विरोध किया है। हरियाणा में भी अब भाजपा को अपने सहयोगी दल JJP की वजह से ही किरकिरी झेलनी पड़ रही है।
बात सिर्फ पंजाब और हरियाणा की ही नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी CAA और NRC मुद्दे पर खुद को BJP से अलग कर लिया था। इतना ही नहीं, जब बिहार चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार घुसपैठ से निपटने के लिए CAA कानून को लेकर आई है; तो नीतीश कुमार ने योगी आदित्यनाथ की बातों को “फालतू बात” करार दिया था। बता दें कि नीतीश कुमार की पार्टी JDU का बिहार विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन बहुत बुरा था। आज नीतीश भाजपा की बदौलत ही CM की कुर्सी पर विराजमान है।
भाजपा ने जम्मू कश्मीर में भी बेमेल सहयोग से PDP के साथ सरकार बनाई थी। गठबंधन की सरकार में महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनाया गया था। मुफ्ती का रुख आतंकवाद को लेकर भाजपा के बिल्कुल विपरीत था। जहां भाजपा आतंकवादियों का खात्मा करना चाहती थी तो वहीं मुफ्ती आतंकियों का संरक्षण करना चाहती थी। अंत में आकर भाजपा को मुफ्ती का साथ छोड़ना पड़ा।
अब हम बात करें शिवसेना की, तो शिवसेना और भाजपा की विचारधारा बहुत हद तक मिलती थी। विचारधारा मिलने के बावजूद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच में आकर दशकों पुराने गठबंधन को तोड़ दिया और कांग्रेस, NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली।
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अगर हम इस कड़ी पर ध्यान दे तो यह समझ आता है कि भाजपा को अपने विपक्ष से निपटने के साथ ही अपने सहयोगी दलों को नियंत्रण में रखने के लिए प्लान बनाना पड़ेगा। भारत की राजनीति बहुत ज्यादा उलझी हुई है, ऐसे में BJP राज्य स्तरीय पार्टियों के सहयोग के बिना हर राज्य में सरकार नहीं बना सकती है। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भाजपा अपने सहयोगी दलों को खुली छूट दे दे। इसलिए एक ही रास्ता बचता है, हर एक राज्य स्तरीय सहयोगी दल को नियंत्रण में रखने के लिए BJP के पास एक तय रणनीति होनी चाहिए।