साल 2014 से प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ ने ऐसी रफ्तार पकड़ी है कि रास्ते में बिखरे हुए कांटो को बड़े आराम से कुचलते हुए आगे बढ़ती जा रही है। ठीक ऐसी ही एक और संभावना बनते हुए दिखाई दे रही है। हम बात कर रहे हैं, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की जहां पर कांग्रेस के नेता और पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने इशारा किया है कि, कांग्रेस विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद तृणमूल कांग्रेस को समर्थन दे सकती है।
दरअसल, 8 अप्रैल को पत्रकारों से बातचीत के दौरान जब अधीर रंजन चौधरी से तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, “अभी काल्पनिक सवाल का कोई समय नहीं है क्योंकि हम नबना (मुख्यमंत्री कार्यालय) पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। हम नहीं जानते कि ममता बनर्जी कहां जाएंगी, अगर वह हार जाती हैं। राजनीति संभावनाओं की कला है।” अगर हम अधीर की ‘राजनीति संभावनाओं’ वाली बात पर गौर करें तो यह संकेत मिल रहे हैं कि, अगर चुनाव के नतीजे आने के बाद तृणमूल कांग्रेस को कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड़ती है, तो कांग्रेस समर्थन दे सकता है।
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बता दें कि, कांग्रेस ने 5 अप्रैल को भी तृणमूल कांग्रेस को समर्थन करने के लिए शर्त भी रखी थी और शर्त यह थी कि, अगर ममता बनर्जी चाहती हैं कि सोनिया गांधी उनको भाजपा को हराने में मदद करें तो अपने 22 उम्मीदवारों का नाम वापस करे। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस की बातों पर ध्यान नहीं दिया। खैर, अप्रासंगिक पार्टी की बातों पर कोई क्यों अपना समय खर्च करे।
हैरानी की बात तो यह है कि, कांग्रेस पश्चिम बंगाल चुनाव में पूरी तरह से हारते हुए नज़र आ रही है। विधानसभा चुनाव के तीन चरणों के चुनाव भी हो चुके हैं लेकिन अभी तक कांग्रेस पार्टी का एक भी स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार के लिए नहीं गया है। ऐसे में अधीर रंजन चौधरी को राजनीति संभावना जैसी बात खोखली लग रही है। अगर राहुल गांधी को पश्चिम बंगाल चुनाव में अपनी जीत की जरा सी भी उम्मीद होती तो चुनाव प्रचार के लिए ज़रूर जाते, लेकिन उनका चुनाव प्रचार से खुद को दूर रखना साफ बताता है कि ,कांग्रेस पहले से ही हार मानकर बैठी हुई है।
गौरतलब है कि, कांग्रेस ने 2016 विधानसभा चुनाव में मात्र 42 सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब उसे केवल 12.25 प्रतिशत वोट मिले थे। अगर हम 2019 लोकसभा चुनाव को देखें तो कांग्रेस को मात्र 2 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी और केवल 5.67 प्रतिशत वोट मिले थे। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन और वर्तमान में हो रहे चुनाव को देखें तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई रंक किसी को राजा बनाने की बात कर रहा हो।