पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना काल के बाद पहली बार किसी विदेश यात्रा पर बांग्लादेश के दौरे पर गए थे। हालांकि, उनके दौरे के दौरान बांग्लादेश में एक कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन हिफाज़त-ए-इस्लाम ने जमकर उत्पात मचाया, जिसके कारण पुलिस और प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत में करीब 1 दर्जन से अधिक लोग मारे गए।
हालांकि, हिफाज़त-ए-इस्लाम के असल कट्टरपंथ के एजेंडे को उजागर करने और इस संगठन के असल मकसद पर प्रकाश डालने की बजाय पूरी दुनिया की लिबरल मीडिया बांग्लादेश में हुई इन मौतों के लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहरा रही है। यह माहौल बनाया जा रहा है कि अगर PM मोदी बांग्लादेश के दौरे पर ना जाते, तो इन लोगों की जान ही नहीं जाती!
उदाहरण के लिए BBC ने एक रिपोर्ट की Headline दी– “आखिर क्यों पीएम मोदी के दौरे ने बांग्लादेश में 12 लोगों की जान ले ली?”
इसी प्रकार जर्मन मीडिया DW ने एक रिपोर्ट में बताया कि पीएम मोदी के दौरे ने ही इस हिंसा को भड़काया है।
इस एजेंडे को आगे बढ़ाने में सिर्फ इन विदेशी लिबरल मीडिया संगठनों ने ही नहीं, बल्कि Scroll जैसे भारतीय पोर्टल्स ने भी जमकर योगदान दिया। Scroll ने एक article लिखा “मोदी-विरोधी रैली में कम से कम 13 लोग मारे गए।”
ज़ाहिर सी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम मिला जहां पर करीब 10 वर्षों से विवादों में चल रहे तीस्ता जल समझौते के मुद्दे पर भी विचार किया गया। यह भी ध्यान रहे कि PM मोदी 26 मार्च को बांग्लादेश के Liberation day के मौके पर वहाँ पहुंचे थे, जिसकी भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में अपनी एक खास जगह है। इस सब तथ्यों को नकारते हुए भी लिबरल मीडिया ने बांग्लादेश में हुए दंगे का ठीकरा पीएम मोदी के दौरे पर फोड़ना ही सही समझा। हालांकि, साथ ही हमें हिफाज़त-ए-इस्लाम संगठन के कोर एजेंडे पर नज़र डालने की भी ज़रूरत है।
देशभर में मदरसा चलाने वाले इस बांग्लादेशी संगठन को वर्ष 2010 में कट्टरपंथी आमिर शाह अहमद शाफ़ी ने स्थापित किया था। शाह अहमद शेख हसीना सरकार पर नर्म थे, जिसके कारण हसीना सरकार के लिए उन्होंने कोई खास परेशानी खड़ी नहीं की। हालांकि, पिछले वर्ष सितंबर में उनकी मृत्यु हो गयी थी, जिसके बाद अब पाकिस्तान में पढ़े बाबू नागरी को इस संगठन का आमिर बनाया गया है। उन्हें शेख हसीना की बजाय Khaleda Zia की Bangladesh Nationalist Party यानि BNP और कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी का नजदीकी माना जाता है जिसका मुख्य मकसद देश में शरिया कानून को लागू कराना है।
हिफाज़त-ए-इस्लाम संगठन पूर्व में महिलाओं को समान अधिकार देने के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है और इसके साथ ही अहमदिया मुसलमानों को मुस्लिम समाज से बाहर करवाना भी इस संगठन का मुख्य एजेंडा रहा है। वर्ष 2013 में जब शाहबाघ आंदोलन के तहत ढाका में कुछ विद्यार्थी वर्ष 1971 के “War Criminals” के लिए सज़ा-ए-मौत की मांग कर रहे थे, तो इसी संगठन ने देशभर के अपने मदरसों से छात्रों को बुलाकर उस आंदोलन के खिलाफ में एक दूसरा आंदोलन कराया था।
नए आमिर बाबू नागरी के अंतर्गत पहली बार यह संगठन इस पैमाने पर बड़ी हिंसा में शामिल हुआ है, वो भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान! उनका संदेश साफ है कि वो किसी भी हिन्दू नेता के आगमन का स्वागत नहीं करेंगे और देश में कट्टर इस्लाम को बढ़ावा देंगे! हिन्दू विरोध और कट्टरपंथी सोच हिफाज़त-ए-इस्लाम के उदय का आधार है और इसी कारण-वश अब बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरता का जिम्मा इसी संगठन के सर मढ़ा जा रहा है। ऐसे में पीएम मोदी की यात्रा के दौरान बांग्लादेश में हुई हिंसा के लिए इस संगठन की सोच और कट्टरता को दोषी ठहराया जाना चाहिए, ना कि पीएम मोदी की यात्रा को!
हिफाज़त-ए-इस्लाम ने पीएम मोदी की यात्रा का इस्तेमाल कर खबरों में छाने की रणनीति बनाई और दुनियाभर की लिबरल मीडिया ने उसके मंसूबों को पूरा करने में भरपूर मदद की, जिसमें कई भारतीय मीडिया संगठन भी शामिल हैं।