असम में बीजेपी ने चुनाव तो जीत लिया है, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं की है। अब जिस तरह से पार्टी चुप्पी साधे हुए है, उससे तो यही लगता है कि कहीं कुछ बड़ा होने वाला है। अब रिपोर्ट सामने आ रही है कि बीजेपी के नवनिर्वाचित विधायक दो धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा वर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल का समर्थन कर रहा है जबकि दूसरा धड़ा हिमंता बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में है। अब पार्टी के सामने यह सवाल है कि मुख्यमंत्री किसे बनाये जाए। दोनों ही नेता दिग्गज हैं लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में हिमंता बिस्वा सरमा ने असम की राजनीति में अपने विकास कार्य, सक्षम नेतृत्व और प्रखर हिंदुत्व वाली छवी से अपना सिक्का जमाया है उससे उनका पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है और इस बार उन्हें CM बनाया जा सकता है।
पिछली बार की तरह भाजपा ने विधानसभा चुनाव सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके लड़ा था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ अब बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री का फैसला भाजपा संसदीय बोर्ड करेगा और इसके लिए आलाकमान केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भेजने वाली है। हालांकि, सर्बानंद सोनोवाल ने अच्छा काम किया है, लेकिन इस चुनाव को जीतने में अगर किसी का सबसे बड़ा रोल है तो वो हिमंता बिस्वा सरमा का है।
अगर देखा जाये तो पूरे राज्य में हिमंता बिस्वा सरमा जैसा लोकप्रिय नेता नहीं है और जिस सक्षमता से उन्होंने कोरोना महामारी को राज्य में संभाला है उससे उनके नेतृत्व की क्षमता स्पष्ट दिखाई देती है। असम में अभी जो भी बदलाव हो रहें है, चाहे वो जमीनी स्तर पर हो या राजनीतिक स्तर, हिमंता बिस्वा सरमा उसके असली वास्तुकार हैं। हिमंता ने असम में हिंदू राष्ट्रवाद को भी जागृत किया है जो भाषाई आधार से ऊपर है।
आज कोरोना ने जिस तरह से पांव पसारे हैं, उसे काबू करना आसान नहीं है। बावजूद इसके हिमंता बिस्वा सरमा ने असम में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर में जबरदस्त सुधार किया है। कोरोना की दूसरी लहर में भी असम में हालात महाराष्ट्र, केरल और दिल्ली जैसे नहीं है।
यही नहीं जब CAA पारित हुआ था तब भारत विरोधी तत्वों न जिस एजेंडे के साथ असम में हिंसा शुरू की और फिर लोगों को भड़काने के लिए प्रोपेगेंडा चलाया था उसके बावजूद असम में चुनाव जीतना आसान नहीं था, परन्तु यह हिमंता द्वारा किये गए विकास कार्य और उनकी छवि थी जिससे आज चुनाव परिणाम बीजेपी के अनुरूप दिखाई दे रहे हैं। जब सीएए को संसद में पारित कराया गया था, तब से असम में एक सुनियोजित अभियान चलाया गया है, जिसमें सीएए के बारे में भ्रामक खबरें फैलाकर लोगों को भड़काने का प्रयास किया जा रहा था। सीएए को लेकर फैलाए जा रहे झूठ को फैलाने में मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, परन्तु इस झूठ के खिलाफ असम के स्वास्थ्य, वित्त एवं शिक्षा मंत्री डॉ॰ हिमंता बिस्वा सरमा ने लोगों तक पहुँच कर अपनी बात रखी और इस कानून के मतलब समझाए थे। सच कहें तो ये हिमंता बिस्वा सरमा ही थे जिनके कारण भाजपा सीएए विरोध के नाम पर हुई हिंसा के बावजूद असम में जनता का समर्थन प्राप्त कर पायी है।
यही नहीं बोडोलैंड विवाद समझौता जैसे कठिन मुद्दे को भी सुलझाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। एक तरफ वह जमीनी स्तर पर लोगों के बीच दिन गूना रात चौगुना लोकप्रिय होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ, Bodo और ULFA जैसे संगठनों को बातचीत के लिए राजी करने के लिए कूटनीतिक चाल भी चल रहे हैं। भाजपा के लिए हिमंता बिस्वा सरमा का सिर्फ असम में ही नहीं, बल्कि पूर्वोतर के सभी राज्यों में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। सच कहें उनकी लोकप्रियता और समृद्ध प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए उन्हें ही असम का CM बनाया जाना चाहिए। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा असम को मुख्यमंत्री के रूप में कौन होगा।