कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान में एक बार फिर सियासी पारा चढ़ गया है। इस बार कांग्रेस के पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक हेमाराम चौधरी ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। हेमाराम चौधरी बाड़मेर के गुड़ामालानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक थे।
वरिष्ठ कांग्रेस विधायक हेमाराम चौधरी ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि, “राजस्थान विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियम- 173 के अंतर्गत विधानसभा क्षेत्र के गुड़ामालानी की विधानसभा की सदस्यता का त्याग पत्र संलग्न कर प्रेषित कर रहा हूं। जिसे कृपया आज ही स्वीकृत करने की कृपा करे।”
हालांकि, कांग्रेस विधायक ने इस्तीफे की वजह अभी नहीं बताई है, लेकिन कहा है कि एक बार उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया जाए, उसके बाद वह अपने इस्तीफे का कारण सभी को बताएंगे।
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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने मंगलवार शाम कहा, “हेमाराम जी हमारी पार्टी के वरिष्ठ और सम्मानित नेता हैं। उनके इस्तीफे के बारे में पता चलने के बाद मैंने उनसे बात की। यह एक पारिवारिक मामला है, इसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।”
बताते चलें कि राजस्थान कांग्रेस में दो गुट है। अशोक गहलोत गुट यानी CM गुट और सचिन पायलट का खेमा यानी बागियों का खेमा। पिछले साल, सचिन पायलट खेमे के 19 विधायको ने बागी होने का फ़ैसला लिया था, उसमें हेमाराम चौधरी भी थे। गौरतलब है कि कांग्रेस विधायक का यह इस्तीफा राज्य की राजनीति में आने वाली तूफान का संकेत है, जिससे पिछले साल कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने टाल दिया था।
बता दें कि चौधरी ने दो महीने पहले ही गहलोत सरकार पर निशाना साधा था। 13 मार्च को विधानसभा में बोलते हुए उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में खराब सड़कों का मुद्दा उठाया था और अपनी ही सरकार पर गंभीर आरोप लगाया था कि,
उनके निर्वाचन क्षेत्र में सड़क निर्माण में 2 करोड़ से 2.5 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है। मामले की सीबीआई जांच की भी मांग थी। उन्होंने दावा किया था कि राज्य में कोई भी एजेंसी “निष्पक्ष जांच” नहीं कर सकती है।
हेमाराम चौधरी ने अशोक गहलोत की सरकार पर आपसी मतभेद के कारण विकास कार्य में रुकावट डालने का आरोप लगाते हुए कहा था कि, “दुश्मनी निकालनी है तो मेरे से निकालो, क्षेत्र की जनता को परेशान मत करो।”
हेमाराम चौधरी का यह इस्तीफा यह बताता है कि राजस्थान कांग्रेस में राजनीतिक भूचाल बस आने ही वाला है। चौधरी की बातों में उनके प्रति हुई बदले की राजनीति की वजह से दबी मन की पीड़ा साफ झलक रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि, अशोक गहलोत जनता के विकास से पहले अपनी पार्टी की निजी अंदरूनी राजनीति को महत्व देते है।