उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शानदार ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद बीजेपी राज्य की राजनीति के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। इसलिए पार्टी नेता बीएल संतोष के नेतृत्व में केंद्रीय आलाकमान ने यूपी सरकार का फीडबैक लेने की तैयारी की है। इसके विपरीत यदि इन चुनावों को देखें तो ये बीजेपी के लिए अब तक का सबसे सरल विधानसभा चुनाव हो सकता है, क्योंकि पार्टी के सामने कोई मजबूत विपक्षी चेहरा नहीं है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पारिवारिक कलह से लेकर चार साल तक घर में रहने की आदत उन्हें भारी पड़ी है। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती तो जैसे यूपी की राजनीति से विलुप्त ही हो गईं हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2017 में बीजेपी के लिए गजब का मोड़ आया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के नाम पर जनता ने पार्टी गठबंधन को 325 के आंकड़े के साथ तीन चौथाई सीटों पर जीत दिलाई। वहीं मुख्यमंत्री पद की कुर्सी योगी आदित्यनाथ को देने के बाद तो माहौल ही बदल गया है, क्योंकि योगी की छवि पार्टी के लिए पीएम मोदी की तरह ही एक एक्स फैक्टर साबित हो रही है। वहीं अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी में मंथन शुरू हो गया है। पार्टी के केन्द्रीय नेता लगातार लखनऊ में मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, कैबिनेट और पार्टी के पदाधिकारियों से संवाद कर रहे हैं, जिसमें मुख्य भूमिका बीएल संतोष की ही है। संभावनाएं हैं कि चुनावों से ठीक पहले पार्टी, ब्यूरोक्रेसी और कैबिनेट में बड़े बदलाव हो सकते हैं।
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इन सबसे इतर अगर उत्तर प्रदेश में विपक्षी पार्टियों की स्थिति देखें तो वो बेहद ही दयनीय हो चली है। समाजवादी पार्टी की बात करें तो 2012 में मुलायम के दम पर सत्ता पाने वाले पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने पार्टी टुकड़ों में बिखेर दी है। 2017 में कांग्रेस और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी के साथ गठबंधन की रणनीति बुरी तरह फेल हुई और सपा के वोट बैंक का पार्टी से मोह भंग हो गया है। आज की स्थिति में सपा पंचायत चुनाव को लेकर अपनी जीत के दावे तो ठोक रही है, लेकिन बीजेपी वहां भी निर्दलीय सदस्यों के दम पर बाजी मारने की तैयारी कर चुकी है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद पिछले साढ़े चार सालों में अखिलेश का जनता से सरोकार खत्म हो चुका है। वहीं कोरोनावायरस की महामारी के दौरान सपा कार्यकर्ताओं की नौटंकियों ने राज्य में खूब अराजकता फैलाई। वैक्सीन को लेकर अखिलेश द्वारा फैलाया गया भ्रम उनकी छवि के लिए नकारात्मक साबित हुआ है। उत्तर प्रदेश की जनता के बीच अखिलेश और सपा की बात करने वालों की भी कमी हो गई है। कुछ ऐसी ही स्थिति बसपा सुप्रीमो मायावती की भी है जो पिछले सात सालों से राज्य की राजनीति में वर्क फ्रॉम होम कर रही है।
बसपा को लोकसभा चुनाव 2014 में शून्य क्या मिला, मायावती ने अपना चुनाव में परिश्रम लगाना ही बंद कर दिया। पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में कुछ 19 सीटें ही मिलीं। सपा के साथ गठबंधन के चलते पार्टी क़ो 2019 के लोकसभा चुनावों में 10 सीटों का फायदा तो हुआ, लेकिन मायावती के महत्वकांक्षी व्यवहार के चलते आज की स्थिति में मायावती अकेली अपने कोप भवन में हैं। लोगों को अंदाजा तक नहीं हैं कि वो आख़िरी बार मीडिया के सामने कब आईं थीं। वर्क फॉम का उनका ये अंदाज बसपा को ही हाशिए पर ले आया है। वहीं कांग्रेस ने अपनी गुड़िया प्रियंका गांधी वाड्रा को यूपी चुनाव के लिए मैदान में उतारा तो है, लेकिन तीन सालों के राजनीतिक खेल के बावजूद कांग्रेस का नाम लेने वाला कोई नहीं है।
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की इन स्थितियों के बीच बीजेपी युद्ध स्तर पर एक बार फिर तैयारियों में जुट गई है। बीजेपी इन चुनावों में भी किसी भी तरह का लूप होल नहीं छोड़ना चाहती है। विपक्ष की बदतर स्थिति के बावजूद बीजेपी की चुनावी तैयारियां साबित कर रही हैैं कि बीजेपी के लिए ये विधानसभा चुनाव एक प्रचंड जीत का पर्याय बन सकता है।