केंद्र सरकार ने बजट घोषणा के दौरान सरकारी बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के दौरान दो और सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की, जिसे लेकर काफी विरोध हो रहा है।
सरकार विरोध के बावजूद इन सरकारी बैंकों के निजीकरण की तैयारी में जुट गई है। उच्च अधिकारी सरकारी बैंकों के निजीकरण का रोडमैप तैयार कर रहे हैं। यह इंदिरा गांधी की गलतियों को सुधारने के लिए पीएम मोदी का कदम है।
रिपोर्ट के अनुसार सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का निजीकरण किया जा सकता है। हालांकि, सरकार ने अभी तक बैंकों के नाम नहीं बताए हैं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण (नेशनलाइजेशन) के कारण ही PSBs में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और उत्पादकता की कमी देखने को मिल रही है। यही नहीं NPA स्कैम सहित कई तरह के स्कैम देखने को मिले।
कुछ दिनों पहले बैंकिंग सेक्टर में प्राइवेट बैंको को बढ़ावा देने के इरादे से मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला किया था। सरकार ने प्राइवेट बैंकों को सरकार से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबन्ध हटाते हुए उनके लिए नए द्वारा खोले थे। बता दें कि सरकार ही बैंकिंग सेक्टर की सबसे बड़ी क्लाइंट है, और सरकार का सालाना बैंकिंग लेन-देन 56 लाख करोड़ रूपये होता है। ऐसे में अगर प्राइवेट बैंक इस लेन-देन में सहयोग करेंगे तो उन्हें भी बढ़ने का मौका मिलेगा। यह भी हो सकता है कि PSBs के निजीकरण के लिए यह फैसला लिया गया हो जिससे भविष्य में किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार लगातार प्रयासरत रही है कि बैंकिंग में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़ाई जाए। इसके लिए सरकार ने बैंकिंग सेक्टर के विस्तार पर तो जोर दिया ही है, साथ ही खराब प्रदर्शन कर रहे सरकारी बैंकों का निजीकरण भी किया है।
सरकार ने पहले भारत के बैंकिंग सेक्टर में सरकारी बैंकों को पुर्नजीवित करने का प्रयास किया, लेकिन उसे थोड़ी ही सफलता मिली। इसी कारण अब सरकार का जोर प्राइवेट बैंकों को बढ़ावा देने में है। भारत का बैंकिंग सेक्टर उसके आर्थिक विकास की गति को धीमा कर रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि भारत में 70 फीसदी बैंकिंग गतिविधियां, सरकारी बैंकों के अधीन हैं। यह स्थिति पिछले 50 वर्षों से है, जब से इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना इंदिरा गांधी की एक बड़ी गलती थी क्योंकि किसी भी PSBs में प्रक्रिया धीमी और अक्षम है। इंदिरा गांधी दिल से कम्युनिस्ट थीं और बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय उन्होंने उसी के अनुसार लिया था।
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दोनों ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के दौर में जमीनी सुधार और बैंको तथा इंडस्ट्रीज के राष्ट्रीयकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को कछुए की रफ्तार से भी धीरे कर दिया और भारत अन्य देशों के मुक़ाबले पिछड़ता चला गया। अब समय आ गया है कि इंदिरा गाँधी द्वारा की गई गलती को सुधारा जाये।
PSBs की एक और कमी है अक्सर बैंक यूनियनों की हड़ताल होना, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
यही नहीं पिछले कुछ वर्षों में पब्लिक सेक्टर बैंकों में NPA फ्रॉड भी देखने को मिला है। नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे भगोड़े PNB स्कैम में 11000 करोड़ का घोटाला कर फरार हो चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने 2019 में अप्रैल से सितंबर तक ₹95,760 करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी की सूचना दी थी। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश धोखाधड़ी लोन यानी ऋण से संबंधित हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ही होती हैं।
धोखाधड़ी की घटनाएं और लागत साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, जिससे वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा पैदा हो रहा है। साथ ही PSBs, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और नियामक RBI की विश्वसनीयता के साथ-साथ बचतकर्ताओं और जमाकर्ताओं का विश्वास भी कम हो रहा है।
ये धोखाधड़ी PSBs में इसलिए होती हैं क्योंकि इन बैंकों में operational risk management खराब तरीके से होता है। यही नहीं State Owned बैंकों में अप्रभावी Internal Audit होती है। कई बार बैंक के अधिकारी नीरव मोदी जैसे लोगों के साथ मिल जाते हैं बड़ी मात्र में लोन पास करवाते हैं जो बाद में NPA में बदल जाता है।
पिछले वर्ष जुलाई में आई एक रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बारह बैंकों (PSBs) ने 5.47 लाख करोड़ रुपये का gross NPAs दर्ज किया, जो 19 निजी बैंकों में जमा Bad Loan का दोगुना था। इससे स्पष्ट होता है कि PSBs का निजीकरण कितना आवश्यक है।
सरकारी बैंकों के निजीकरण की मांग के समर्थन में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम सामने आ चुके हैं। रविवार को मद्रास मैनेजमेंट एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन 2018 में बोलते हुए, सुब्रमण्यम ने सुझाव दिया कि सरकार को सरकारी क्षेत्र के बैंकों में प्राइवेट प्लेयर्स लाने चाहिए जिससे यह सेक्टर और अधिक अनुशासित हो। निजी कंपनियों के प्रवेश से बैंक अधिक सतर्क और कम जोखिम वाले बनेंगे। मोदी सरकार अब उसी क्षेत्र में काम कर रही है। सरकारी बैंकों के निजीकरण से इंदिरा गांधी द्वारा की गयी गलती सुधारी जा सकेगी जिससे अर्थव्यवस्था को एक नया बूस्ट मिलेगा और बैकिंग सेक्टर के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।