साल 2020 में भारत में स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 62.2 करोड़ थी, और उम्मीद की जा रही है कि साल 2025 तक यह संख्या 90 करोड़ तक पहुंच जाएंगी। शहरी भारत में इंटरनेट उपयोगकतार्ओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि देखने को मिला था। साल 2020 में शहरी आबादी का 67 प्रतिशत तक स्मार्टफोन पहुंच गया था। ग्रामीण भारत में भी डिजिटल अपनाने की प्रक्रिया तेजी से जारी है। अगर हम इसे इंटरनेट उपयोगकर्ताओं से जोड़कर देखें तो, भारत के पास 500 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के साथ डिजिटल उपभोक्ताओं का तेज़ी से बढ़ता बाज़ार है।
भारत का यह प्रबल डिजिटल इकोसिस्टम, दुनिया भर के डिजिटल मार्केट को अपनी ओर आकर्षित करता है। इससे भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह हो रहा है। विदेशी निवेश का भारत सरकार ने भी बाहें खोलकर स्वागत किया है। फलस्वरूप अप्रैल 2021 में भारत में 6.24 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ है। बता दें कि यह पिछले साल (अप्रैल 2020) के मुकाबले 38 प्रतिशत ज्यादा है। नया डिजीटल मार्केट अपने साथ सौगात के साथ- साथ कई चुनौतियां भी लेकर आया है। जैसी कि- क्या ये विदेशी कंपनियां भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गए नियमों का अनुपालन करती है? क्या विदेशी कंपनियां देशी, छोटे एवं मध्यम वर्गीय दुकानदारों को बाजार से बाहर निकलने पर विवश तो नहीं कर रही है?
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यह सभी चुनौतियां गंभीर है और भारत सरकार भी इनको लेकर मंथन कर रही है। इसी कड़ी में भारत सरकार नया डिजिटल ई कॉमर्स नियम लाने वाली है। अभी ये नियम ड्राफ्ट बिल के रूप में तैयार किए गए है, लेकिन शीघ्र ही यह नियम डिजीटल मार्केट के कंपनियों के ऊपर लागू किया जाएंगे। यह बिल डिजीटल मार्केट से पैदा होने वाली समस्याओं का एक ठोस निवारण है।
नया डिजीटल ई कॉमर्स नियम, डिजीटल मार्केट द्वारा संचालित फ्लैश सेल प्रतिबंध लगाता है। यह बिल कहता है कि, डिजीटल ई कॉमर्स कंपनियों को सेल के नाम पर “ deep discount” देने की अनुमति नहीं है।
दरअसल बात यह है कि, डिजीटल ई कॉमर्स कंपनियां, मुख्यतौर पर भारत में फ्लिपकार्ट और अमेजन, त्योहारों के समय फ्लैश सेल का आयोजन कराती है। इस सेल में ग्राहकों को लुभाने वाले दाम में समान बेचा जाता है।
उदाहरण के लिए बताए तो, जो मोबाईल फोन आम बाजार में 15,000 रुपये में मिलता है, वह मोबाइल फोन फ्लैश सेल में 13,000 में मिल सकता है। ऐसे में कोई भी ग्राहक संभवतः फ्लैस सेल की ओर रुख करेगा, क्योंकि उसे कम दाम में, वहीं माल मिल रहा है।
अब सवाल उठता है कि Flipkart और अमेजन जैसी कंपनियां इतना भारी छूट कैसे दे सकती है! इस जवाब के लिए हमें Reuters की एक रिपोर्ट को ध्यान में रखना होगा। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि, Amazon ने ऑनलाइन सेलिंग में विक्रेताओं के छोटे समूह को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से उन्हें अपना सामान बेचने के अधिक मौके देती है। जबकि नियम के अनुसार किसी भी विदेशी कम्पनी को, जो ऑनलाइन शॉपिंग के व्यापार में है, हर भारतीय विक्रेता को बराबर मौका देना होता है। आपको बता दें कि The competition commission of India ने भी अपनी जांच में यह बात पाया था।
अमेजन अपने इस छोटे समूह के विक्रेताओं के माध्यम से फ्लैश सेल के नाम पर भारी छूट देता है, जबकि आम बाजार के छोटे विक्रेता इतनी भारी छूट देने में समर्थ नहीं है, जिससे उनकी बिक्री कम हो जाती है। अंततः वह धीरे धीरे इस व्यापार से बाहर हो जाते हैं। 2019 की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रिटेल दुकानदारों को फेस्टिव सेल की वजह से 30 प्रतिशत का नुकसान झेलना पड़ता है।
अब रही बात फ्लिपकार्ट की तो, ये कंपनी, अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट की स्वामित्व वाली कंपनी है। 90 के दशक में वॉलमार्ट अमेरिका के छोटे शहरों में अपना स्टोर स्थापित कर, खरीदी दाम से भी कम में माल बेचता था, जिसे छोटे शहरों के छोटे दुकानदारों का व्यापार ठप पड़ जाता था। इससे वालमार्ट का रिटेल मार्केट में एकाधिकार बन गया और वह अभी तक कायम है।
अगर हम अमेजन और वालमार्ट के ट्रेंड को देखें तो यह कहना उचित होगा कि इन दोनों कंपनियों का भारत के बाजार में भी अपना एकाधिकार स्थापित कर, भारत के छोटे रिटेल व्यापारियों को व्यापार से बाहर निकालने का लक्ष्य था। ऐसे में भारत सरकार ने सही समय पर नए डिजीटल ई कॉमर्स नियम लाकर, अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों की भारतीय बाजारों पर एक छत्र राज करने की मंशाओं को तोड़ दिया है।