सामान्य ज्ञान की किताब में अगर अभी ये सवाल आ जाये कि अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति कौन है? तो शायद बच्चे अशरफ गनी का नाम लेंगे, लेकिन हमारे जैसे लोग जो खबरों से जुड़े रहते हैं, उनके लिए यह सवाल बड़ा कठिन है, क्योंकि अब अफ़ग़ानिस्तान में दो राष्ट्रपति हैं। एक राष्ट्रपति हैं अशरफ गनी, जिनके पास लोकमत है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्वीकृति है, लेकिन ताकत नहीं है। दूसरा नाम है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, जिसके पास ताकत है, लेकिन लोकमत नहीं है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति भी प्राप्त नहीं है। ये स्थिति बहुत जटिल है, क्योंकि अशरफ गनी देश से फरार चल रहे हैं और मुल्ला बरादर अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में बंदूकों से लैस होकर बैठा हुआ है। खैर, समय के गर्भ में इस चीज का जवाब है कि कौन-कौन से देश मुल्ला बरादर को अफ़ग़ानिस्तान का असली शासक मानते हैं। संभावना है कि बहुत से देश ताकत के इस हस्तांतरण को सही मानें। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि मुल्ला बरादर के बारे में जान लिया जाए।
यह भी पढ़े- तालिबान – वो ‘भस्मासुर’ राक्षस, जिसका सृजन अमेरिका ने किया
कौन है मुल्ला बरादर
इंटरपोल के अनुसार, मुल्ला बरादर का जन्म 1968 में अफ़ग़निस्तान के उरुजगन प्रांत के देहरावूद जिले के वीतमक गांव में हुआ था। मुल्ला दुर्रानी जनजाति की पोपलजई समुदाय का सदस्य बताया जाता है, यह वही समुदाय है, जिससे पूर्व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई भी आते थे।
अफ़ग़ानिस्तान में जब सोवियत संघ ने कदम रखा तो जनसंघर्ष शुरू हुआ और मुल्ला भी 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिद्दीन के साथ लड़ाई लड़ा। यह युद्ध एक तरीके से अमरीका और रूस के बीच लड़ा गया। इसी युद्ध में अमेरिका ने तालिबान को पैसा और शस्त्र देकर सोवियत संघ से लड़ने लायक बनाया था। 1992 में जब रूसियों को खदेड़ दिया गया तब अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध शुरू हुआ। यह युद्ध विभिन्न आतंकी संगठनों के बीच लड़ा गया था और इसी दौरान मुल्ला बरादर ने मुल्ला उमर के साथ मिलकर मदरसा की नींव रखी और तालिबान आंदोलन की स्थापना की।
यह भी पढ़े – पाकिस्तान एक बाघ की सवारी कर रहा है, अब यही उसे मौत के मुंह में ले जायेगा
मुल्ला बरादर ने बाद में आगे जाकर तालिबान के सबसे पहले मुखिया मुल्ला उमर के बहन के साथ शादी भी की। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन चार लोगों में से एक है, जिसने 1994 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान आंदोलन की शुरुआत की थी। वह तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के भरोसेमंद कमांडरों में से एक था। सत्ता में आने के बाद जब अफ़ग़ानिस्तान की जमीन से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ तो अमेरिका ने आतंक के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी।
गिरफ्तार भी हो चुका है
2001 में अमेरिकी हमले के कारण तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा था। इसके बाद बरादर ने ही तालिबान की कमान को संभाला। हालांकि, एक दशक से पहले ही, उसे फरवरी 2010 में गिरफ्तार कर लिया गया था। उसको पाकिस्तानी शहर कराची से अमेरिका-पाकिस्तान के संयुक्त अभियान में पकड़ा गया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तानी सरकार ने वर्ष 2018 में उसे रिहा कर दिया था।
यह भी पढ़े- CAA पर भारत की निंदा करने के दो साल बाद कनाडा ने खुद लागू किया नागरिकता कानून
कहा ये जाता है कि हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा भले ही तालिबान का सबसे शीर्ष नेता है, लेकिन मुल्ला बरादर राजनीतिक प्रमुख है और तालिबान का सबसे सार्वजनिक चेहरा है। कई लोग हैबतुल्लाह के बाद इसे ही नम्बर 2 बताते हैं। बरादर ने ही फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उसी समझौते के अनुसार, अमेरिका और तालिबान एक-दूसरे से नहीं लड़ने पर सहमत हुए थे और इसके बाद तालिबान और काबुल सरकार के बीच सत्ता-साझाकरण वार्ता होनी थी।
हालाँकि, सत्ता साझा करने पर बहुत कम प्रगति हुई थी और जो बाइडन अपने सैनिकों को लाने पर आतुर हो गए थे। आज मुल्ला बरादर राष्ट्रपति के द्वार पर खड़ा है, कल को शायद अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी प्राप्त हो जाये, लेकिन आम जनों के लिए जो सच है उससे यह लगता है कि उसकी कट्टरपंथी समूह में उदारवादी छवि काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि तालिबान के बुरे दिनों में भी उसने राष्ट्रपति को सत्ता साझाकरण का निमंत्रण दिया था।
बरादर एक तरीके से अमरीका की ही देन है और जिस तरीके से मुल्ला बरादर ने चंद दिनों में काबुल पर कब्जा कर लिया है, इससे सवाल अमरीका और मुल्ला बरादर के सम्बंध पर भी उठते हैं। हालांकि, यह भी बड़ा सवाल है कि मुल्ला बरादर पाकिस्तान से कितना अधिक नजदीकी रखता है।