एक बहुत प्रचलित कहावत है कि किसी का भला न कर सको तो बुरा भी नहीं करो। कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों ने इस वाक्य से परे हट, संसद में एक भी दिन कार्यवाही को सुचारु रूप से चलने नहीं दिया, क्योंकि उन्हें अब यह ज्ञात है कि पहले वो संख्या के बल से सत्ता पक्ष के हर बिल को अस्वीकार करने में सफल हो जाते थे, पर अब ऐसा कर पाना उसके लिए टेढ़ी-खीर साबित हो रहा है, और किसी भी तरह विघ्न डालने के मद में विपक्षियों ने इस बार मानसून सत्र को बर्बाद करने की कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी।
एक उथल-पुथल भरे मानसून सत्र को समाप्त करते हुए, संसद के दोनों सदनों-लोकसभा और राज्यसभा- को निर्धारित समय से दो दिन पहले बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। 19 जुलाई को शुरू हुए सत्र में दोनों सदनों में गतिरोध देखा गया और विपक्ष ने पेगासस जासूसी के आरोपों और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और सरकार से सहमत नहीं होने पर बहस की मांग की। जिस मांग को लेकर पूरे मानसून सत्र में विपक्ष ने सदन को चलने नहीं दिया और सत्र को विफल करने की राह तक पहुंचा दिया।
लोकसभा ने केवल 22 प्रतिशत की उत्पादकता दर्ज करते हुए 96 घंटे के निर्धारित समय के मुकाबले केवल 21 घंटे 14 मिनट तक कार्य किया गया। यह पिछले बजट सत्र के बिल्कुल विपरीत था जब निचले सदन ने कार्यवाही में 114 प्रतिशत उत्पादकता देखी थी।
इस बीच, बजट सत्र में दर्ज की गई 90 प्रतिशत उत्पादकता के विपरीत राज्यसभा ने मानसून सत्र में कुल उत्पादकता 28 प्रतिशत देखी। जबकि उच्च सदन को व्यवधानों के कारण 76 घंटे से अधिक का समय गंवाना पड़ा, वहीं पूरे मानसून सत्र में 19 विधेयकों को पारित किया गया।
इस सत्र में सदन को चलने न देने के साथ ही विपक्ष ने सदन कि मर्यादा को तार-तार करने का काम किया था। कभी राज्यसभा में मंत्री के हाथ से प्रस्ताव छीनकर फाड़ने कि बात हो, या सदन की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष की चेयर की तरफ हमला करने जैसे वाकय हों, इस बार सदन में मारपीट तक की नौबत आ गयी पर सदन की कार्यवाही ठीक से संचालित नहीं हो सकीं।
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बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि इस मानसून सत्र में सदन की कार्यवाही उम्मीद के मुताबिक नहीं हु। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा यह देखने का प्रयास करता हूं कि सदन में अधिकतम कार्य हो और जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो।” और पूरे मानसून सत्र के दौरान इसके उलट करी हुए और विपक्ष ने सदन में उत्पात मचाने के अलावा और कुछ भी नहीं किया।
लोकसभा में कामकाज की उत्पादकता 49.5 प्रतिशत थी। प्रश्नों की उत्पादकता 27.4 प्रतिशत, गैर-विधायी (Non Legislation) की 6 प्रतिशत और वित्तीय व्यवसाय की 0.7 प्रतिशत थी।
यह भी प्रतीत हुआ कि लोक सभा कि ही भांति राज्यसभा में भी व्यवधान आया, सभापति वेंकैया नायडू ने बुधवार को सदन में कहा कि कुछ विपक्षी सांसदों ने सदन की पवित्रता को नष्ट कर दिया।
राजनीतिक असहमतियों के बीच विपक्ष ने एकमत में, सदन के अंदर तीखे आदान-प्रदान में एक संक्षिप्त विराम का संकेत देते हुए, ओबीसी बिल पर आने पर सरकार के साथ सहयोग किया। संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 मंगलवार शाम लोकसभा में सभी दलों के भारी समर्थन से पारित हो गया। यह विधेयक, जो नौकरियों और प्रवेश में कोटा के अनुदान के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान और अधिसूचना द्वारा अपनी ओबीसी सूची बनाने के लिए राज्यों की शक्तियों को बहाल करता है, उसको बुधवार को राज्यसभा में पारित किया गया।
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वहीं अपने स्वार्थ के चलते विपक्ष ने कई बिलों पर चर्चा नहीं होने दी और न ही सरकार प्रस्ताव रख पायी। इम बिलों में एक बिल था बिजली संशोधन विधेयक 2021। इस बिल से बिजली कर्मियों और बिजली उपभोक्ताओं पर व्यापक प्रतिकूल असर होने का दावा था, परंतु विपक्ष उस मुद्दे पर बात करने के लिए बिलकुल इच्छुक नहीं दिखी जिससे जनता का सरोकार हो। आरक्षण मुद्दे पर यह लोग इसी वजह से साथ आ गए थे क्योंकि इसमें इंका निजी स्वार्थ विदित था। आगामी 2022 में देश में उत्तर प्रदेश जैसे अन्य 8 राज्यों में चुनाव हैं जहां ओबीसी समुदाय का वोटों पर खासा प्रभुत्व है। इसका विरोध करना विपक्षी पार्टियों का अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता।
मानसून सत्र के दौरान संसद में पारित किए गए अन्य विधेयकों में केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2021, संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, न्यायाधिकरण सुधार विधेयक, 2021 , जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम (संशोधन) विधेयक, 2021, सीमित देयता भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2021, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक, नारियल विकास बोर्ड (संशोधन) विधेयक, 2021, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021, आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021 और अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021 जैसे विधेयक शामिल हैं।
सदन और मानसून सत्र की मर्यादा को नष्ट करने वाले विपक्षी नेता यदि इसे अपनी स्वतन्त्रता कहते हैं तो इससे दुखदायक क्या ही होगा। जब देश के विपक्ष के हाथों देश का ही नाश लिखा जा रहा हो तो आने वाले समय में राजनेता और राजनीति पर जनता कैसे भरोसा करके नेताओं को चुनकर उस सदन में भेज सकेगी। यह एक गहन विचार और विमर्श का विषय है क्योंकि कोई भी कानून तब ही बन सकता है जब उसके लिए सदनों में चर्चा हो, जो इस मानसून सत्र में विपक्ष की ओर लेश मात्र भी नहीं होने दी गयी।