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देश की राजधानी में प्रदर्शन कर रहे अफगान शरणार्थियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए

शरणार्थी हो शरणार्थी बनकर रहो देश के मामलों में अपनी टांग न अड़ाओ।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
24 August 2021
in मत
अफगान शरणार्थियों
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बचपन में हमारे वृद्धजनों ने एक बात बहुत सही कही थी, “दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते”। इसका अर्थ तब समझ नहीं आया था, लेकिन अब जब आज कुछ अफ़गान शरणार्थी भारत द्वारा दी गई शरण का लाभ उठाकर उल्टा भारत को आँखें दिखा रहे हैं, तो इसका अर्थ भली-भांति समझ में आता है।

जब आपको आश्रय दिया जाता है, जब आपको कोई सुविधा देता है तो आपको कृतज्ञ होना चाहिए, न कि जो आपकी सेवा कर रहा है, उसी के घर और संसाधन को हड़पने पर अपना जोर देना चाहिए।

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TFI ने पहले भी अपने विश्लेषण में बताया है कि कैसे भारत सरकार को वामपंथियों के दबाव में आकर अफ़गान शरणार्थियों को बिना सोचे समझे नागरिकता नहीं देनी चाहिए। अभी तो सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम भी नहीं उठाया है और अफ़गान शरणार्थियों, विशेषकर एक विशेष वर्ग ने पहले ही अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है। ऐसे में अब समय आ चुका है कि केंद्र सरकार को इन अफ़गान द्रोहियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।

और पढ़ें: भारत में बड़ी संख्या में हैं तालिबान समर्थक, इन सबको तुरंत जेल में डालने की जरूरत है

आखिरकार ऐसा क्या हुआ, जिसके कारण अफ़गान शरणार्थियों पर भारतीयों को आँखें दिखाने के आरोप लग गए हैं? असल में दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर के आगे अफगानी शरणार्थियों ने प्रदर्शन किया, जिनमें हिंदुओं और सिखों की संख्या नगण्य थी।

तो इसमें गलत क्या है? दरअसल अब अफगानी शरणार्थी चाहते हैं कि इन्हे रिफ़्यूजी कार्ड मिले, इन्हें भारत और अन्य देशों में स्थाई रूप से बसाया जाए और इन्हे नौकरी एवं शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी मिलें।

अफ़गान ‘शरणार्थियों’ ने नई दिल्ली में ‘संयुक्त राष्ट्र हाई कमिश्नर फॉर रेफ्यूजीज’ के सामने जाकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने माँग की कि सभी शरणार्थियों को रिफ्यूजी कार्ड दिए जाएँ और साथ ही उन्होंने किसी विकासशील देश में उन्हें बसाए जाने की योजना लाने की भी माँग की।

और पढ़ें: अकाली दल अब तालिबान की पैरवी कर रहा: ये पार्टी चुनावों में अपनी हार खुद तय कर रही है

अपने मुल्क में तालिबान की प्रताड़ना से बचकर आए अफगान शरणार्थियों ने ‘यूनाइटेड नेशंस कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज (UNHCR)’ व भारत सरकार से सुरक्षा का आश्वासन भी माँगा।

हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में भारत में अपने आप को अफगानी शरणार्थियों के प्रमुख प्रतिनिधि बताने वाले अहमद जिया गनी ने बताया कि देश में फ़िलहाल 21,000 अफगान शरणार्थी हैं। उन्होंने कहा कि इन सबके पास अब अपने मुल्क लौटने का कोई कारण ही नहीं बचा है। उनके अनुसार अफगान शरणार्थियों के पास नौकरी व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं और उन्होंने ‘लॉन्ग टर्म वीजा’ की भी माँग की।

इस समय भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत आने वाले अफगानियों को ई-वीजा दिया जाएगा। वर्तमान स्थिति में भारत सरकार यहाँ आने की इच्छा रखने वालों को आपात स्थिति के तहत वीजा दे सकती है, जो पहले 6 महीने के लिए वैध रहेगा। ऑनलाइन याचिकाओं पर नई दिल्ली में विचार किया जाएगा। हालाँकि, भारत ने यूएन रिफ्यूजी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।

और पढ़ें: अफगानी नागरिकों को बिना सोचे समझे भारतीय नागरिकता देना आत्मघाती कदम होगा

जैसा कि TFI ने अपने विश्लेषण में कहा था, भूखे को अन्न खिलाना एक बात है और उसे अपने घर में लाकर रखना दूसरी बात। जो लोग आज शरण मांग रहे हैं, कल वही भारत पर अपना अधिकार भी जताने लगेंगे, जिसके लक्षण अभी से ही दिखने लगे हैं।

इसी विषय पर TFI Post के विश्लेषणात्मक लेख के अंश अनुसार,

“वामपंथी चाहते हैं कि भारत बिना कुछ सोचे अफ़गान नागरिकों को नागरिकता और शरण देना शुरू कर दे, लेकिन जब खुद के घर में इतनी समस्याएं हों तो दूसरे को शरण देकर अतिरिक्त बोझ बढ़ाना परमार्थ नहीं, प्रथम दर्जे की बेवकूफी कही जाएगी, जिसके पीछे आज पूरे यूरोप में त्राहिमाम मचा हुआ है, वो भी तब जब यूरोप के इन देशों के पास कम से कम संसाधन तो थे। भारत के पास उतने संसाधन भी नहीं है। ऐसे में यदि उसने भूल से भी अफ़गान नागरिकों को नागरिकता और शरण देने की सोच भी ली, तो उन्हें वह रखेगा कहाँ और खिलाएगा क्या?”

और पढ़ें: हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ गद्दारी करने वाले YouTuber कार्ल रॉक पर बैन, बिलबिलाने लगा अवार्ड वापसी गैंग

इसके अलावा भी कई और ऐसे लोग हैं, जो भारत की उदारता का अनुचित उपयोग करके भारत को ही नीचा दिखाने में लगे रहते हैं। विश्वास नहीं होता, तो कार्ल रॉक को देख लीजिए। न्यूज़ीलैंड के इस व्लॉगर को हाल ही में भारत सरकार ने ब्लैकलिस्ट किया था, जिसके पीछे वामपंथियों ने खूब बवाल मचाया था।

वामपंथियों ने अपना पूरा एजेंडा चलाया लेकिन कार्ल रॉक कोई दूध के धुले नहीं थे। TFI पोस्ट की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “दरअसल, कार्ल रॉक का विवादों से पुराना नाता रहा है। वो हमेशा ही टूरिस्ट वीजा के आधार पर भारत में आते थे। भारत को लेकर उनके द्वारा अपलोड किए गए वीडियो हमेशा ही भारत की छवि को धूमिल करने वाले होते हैं।

और पढ़ें: भारत में तालिबान: देवबंद, AIMPLB और समाजवादी पार्टी भी तालिबान का खुलकर समर्थन कर रही

 इतना ही नहीं 2019-2020 के दौरान दिल्ली के सीएए विरोधी दंगो में कार्ल रॉक ने कथित आंदोलनकारियों और दंगाइयों का समर्थन भी किया था। ऐसे में अब जब वो भारत सरकार की कार्रवाई के रडार में आ गए हैं, तो उनका पूरा प्रोपेगैंडा एक्सपोज हो गया है। ऐसे में पीड़ित दिखने के सिवाय कार्ल रॉक के पास और कोई रास्ता भी नहीं बचा है, और वही वो कर रहे हैं”।

ऐसे में अब केंद्र सरकार को उन अफगान शरणार्थियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, जो शरण मांगने के नाम पर भारत को ही आँखें दिखा रहे हैं। इससे पहले भी भारत सरकार ने 5 विदेशियों को देश से बाहर निकाल दिया था। दरअसल, इन पांचों ने सीएए के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शन में भाग लिया था। ऐसे में इन लोगों ने भारतीय कानूनों का उल्लंघन किया था। इसी तर्ज पर अब सरकार को इन अफगान शरणार्थियों के विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

Tags: अफगान शरणार्थीएस जयशंकरतालिबानदिल्लीनरेंद्र मोदी
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