अफ़ग़ानिस्तान से भयावह तस्वीरें बाहर आ रही हैं। कोई प्लेन में लटककर भागने की कोशिश कर रहा है तो कोई 1000 फुट ऊपर प्लेन के पहिये से गिरकर मर रहा है। हवाईअड्डों पर यह स्थिति है कि अमेरिकी सैनिकों को गोली चलानी पड़ रही है। ऐसे में सवाल कई सारे हैं। क्या भागने वाले लोग अल्पसंख्यक समुदाय के लोग है? नही, क्योंकि ज्यादातर पलायन करने वाले लोग मुस्लिम समुदाय से हैं। अल्पसंख्यक भी है तो क्यों भागना पड़ रहा है? क्योंकि तालिबान राज में अल्पसंख्यक मानवाधिकार का मतलब है धर्मांतरण या फिर काफिरों की तरह जिंदगी। भागने वाले लोगों की उम्र क्या है? ज्यादातर वहां पर भागने वाले युवा है। अल्पसंख्यक तो चलो समझ आता है, ये बहुसंख्यक आबादी वाले क्यों भाग रहे है? यहां पर एक ऐसा सच है या सच की कड़ी है जो तालिबान की दहशतगर्दी का और लोगों के डर का आधार है। वो सच है शरिया कानून। शरिया कानून क्या है? शरिया कानून, एक राज्य के विधि निर्माण से लेकर वहां की लोक नीतियों का मूल रूप है। यह राज्य समान्यतः इस्लामिक राष्ट्र होते हैं।
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भारत के अनेक हिस्सो में गौमांस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। यहां इस्लामिक कानून के उलट शराब पी जाती है और बेची जाती है। अफ़ग़ानिस्तान में शरिया कानून लागू करने से अब वहां दोनों चीजों का समाधान हो गया है फिर भी मुसलमान अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भारत क्यों आना चाहते है? इसका कारण शरिया कानून के कड़वे अनुभव हैं।
यूएस की मानवाधिकार आयोग के मुताबिक शरिया कानून एक सदियों पुरानी कानूनी व्यवस्था है जिसका मुसलमानों और इस्लामी राष्ट्रों द्वारा सम्मान और पालन किया जाता है। इसकी नींव इस्लाम के स्रोतों में निर्धारित प्रमुख सिद्धांतों और निर्देशों की व्याख्या में निहित है।
हजरत पैगंबर मोहम्मद द्वारा जीवनकाल के दौरान निर्धारित व्यवहार, सुन्नत, हदीस में कही गईं मोहम्मद की बातों के आधार पर धार्मिक विद्वान इन सिद्धांतों का अध्ययन और व्याख्या करते हैं और नियम विकसित करते हैं, जिन्हें फ़िक़्ह के नाम से जाना जाता है। यह कानून सामूहिक रूप से न्यायशास्त्र बनाता है जो सभी का मार्गदर्शन करता है।
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यहां गौर करने वाली बात यह है कि शरीयत ईश्वर के कानून के आदर्श को दर्शाता है और इस तरह इसे परिपूर्ण माना जाता है। इसकी पवित्रता पर संदेह करना भी ईशनिंदा मानी जाती है। इसी इस्लामिक कानून को अफगानिस्तान का सर्वोच्च कानून माना जाता है। अफगानी संविधान के अनुसार, “कोई भी अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम के कानून पवित्र धर्म के सिद्धांतों और प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करेगा|”
वर्तमान में अफ़ग़ान समुदायों में उपयोग की जाने वाली इस्लामी व्याख्याएँ रूढ़िवादी है। न्यायाधीशों से लेकर वकीलों तक शरिया कानून का अनुपालन करते हैं हालांकि यह बात अलग है कि कई बार तालिबानी व्याख्या खुद मुख्य कानून के विपरीत चली जाती है।
उदाहरण के लिए, कई तालिबानी ऐसा तर्क देते हैं कि घर से भागने वाली महिलाओं को कैदखाने में बंदी बना देना चाहिए। हालांकि यह ‘अपराध’ अफगान दंड संहिता या हनफ़ी न्यायशास्त्र के तहत अपराध नहीं है।
अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक रूढ़िवादिता के खिलाफ जाकर उदारवादी प्रगतिशीलता को बढ़ावा देने पर उसे इस्लामी कानून की सर्वोच्चता का अवहेलना माना जाता है। महिलाओं के अधिकारों का विमर्श करने पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जाता है। 2003 से 2007 के बीच ऐसे पांच लोगों को ईशनिंदा का दोषी माना गया है।
शरीयत कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करता है। इस्लाम में एक महिला की गवाही पुरुष की गवाही के सामने आधी होती है। एक आदमी की चार पत्नियां हो सकती हैं; वह केवल “तलाक तलाक तलाक” शब्द का उपयोग करके तलाक दे सकता है। एक महिला को तलाक लेने के लिए विशिष्ट कारण बताना पड़ता है। बच्चों को भी शरीयत के तहत जीवन भर कष्ट भुगतना पड़ता है। पहली माहवारी शुरू होते ही लड़की की शादी कर दी जाती है। बच्चों को समलैंगिक, यहूदी, ईसाई और हिंदू लोगों के साथ नफरत करने का पाठ पढ़ाया जाता है।
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जब तक अमेरिकी सैनिक मौजूद थे, परिस्थितियां दूसरी थीं। एक पूरी की पूरी पीढ़ी उदारवादी न्याय सम्मत लोकतांत्रिक देश बनाने का सपना देख रही थी। अब उन्हें मालूम है कि वो किस दिशा में जाएंगे। रेडियो चैनल को बंद कर दिया गया है। महिलाओं के पोस्टर की रंगाई पुताई शुरू हो गई है। इंटरनेट को बंद कर दिया गया है। न्यूज चैनलों से महिलाओं को हटाया जा रहा है।
अगर गलती से आपकी गाड़ी किसी के पैर से लड़ जाए तो स्वतंत्र देश में बस माफी मांगने से काम हो जाता है। चोरी भी करने पर चोर को कुछ समय की सजा होती है। अब सोचकर देखिए कि चोरी करने पर आपका हाथ काट दिया जाए। एक्सीडेंट करने पर यह सजा मुकर्रर कर दी जाए कि शाम को भरे चौराहे पर आपका पैर तोड़ दिया जाएगा तो आपको कैसा लगेगा। क्या आप खुद रह पाएंगे वैसे देश में!
इसी मानसिक बीमारी या रूढ़िवादी सोच की हकीकत से बचने के लिए लोग अफ़ग़ानिस्तान की जमीन को छोड़ रहे है। वो जानते है कि तर्क, समझ, कारण का कोई भी स्थान अब अफ़ग़ानिस्तान में नही बचा है।