जब-जब धर्म के समक्ष अधर्म की वृद्धि हुई है तब-तब धर्म के बचाव के लिए हर संभव प्रयास करने में ही जनमानस का हित है। शायद इसी कथन ने अब बीजेपी और झारखण्ड के उसके नेताओं की आँखों को खोल दिया है और अंततः हिंदू विरोधी हेमंत सोरेन की तुष्टिकरण की राजनीति के विरुद्ध मोर्चा बुलंद कर दिया है। 2 सितंबर को एक अधिसूचना जारी हुई जिसमें झारखंड विधानसभा के स्पीकर के आदेश पर विधानसभा में एक कक्ष नमाज़ पढ़ने के लिए आवंटित किया गया था। आदेश में कहा गया था कि, नए विधानसभा भवन में नमाज पढ़ने के लिए नमाज हॉल के रूप में कमरा नंबर TW 348 का आवंटन किया जाता है। इस अधिसूचना के सामने आते ही वही हुआ जो होना तय था, विपक्षी दलों द्वारा अधिसूचना का विरोध शुरू हो उठा और यह फैसला सोरेन सरकार की गले की फांस बन गया। सोमवार को विधानसभा में जिस प्रकार भाजपा विधायकों ने अनूठे रूप से विरोध किया उससे सन 1990 के दशक वाली बीजेपी की छवि अवतरित हुई जो धर्म और राम के काम में तल्लीन रहा करती थी।
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— Anant Ojha BJP ( मोदी का परिवार) (@Anant_Ojha_BJP) September 4, 2021
झारखंड विधानसभा में एक कक्ष को ‘नमाज हॉल’ के रूप में चिह्नित करना एक बड़े विवाद को जन्म दे चुका है, जिसका भाजपा कड़ा विरोध कर रही है। दूसरी ओर, दो सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगियों – झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले का समर्थन किया है। सोमवार को झारखंड विधानसभा में हंगामा हुआ और विपक्षी भाजपा विधायकों ने भवन में नमाज के लिए एक हॉल के आवंटन का जोरदार विरोध किया। उन्होंने हनुमान चालीसा के जाप के लिए एक हनुमान मंदिर और अन्य धर्मों के पूजा स्थलों के निर्माण की भी मांग की। इस मुद्दे पर राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करने के अलावा, भाजपा ने विधानसभा में एक कमरे को ‘नमाज हॉल’ के रूप में निर्धारित करने के आदेश को रद्द करने की मांग को लेकर अदालत जाने की भी धमकी दी है।
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यह सर्वविदित है कि झारखण्ड सरकार हिन्दू विरोधी एजेंडे पर ही काम कर रही है और जिसको शह और कोई नहीं राज्य के मुख्यमंत्री हेमत सोरेन ही देते आ रहे हैं। फिर चाहे वो फल विक्रेताओं की दुकानों पर लगे हिन्दू आस्था के प्रतिबिम्ब वाले पोस्टर हटा उन सभी पर कार्यवाई करने का काम हो, या राज्य में एक परिवार को प्रताड़ित कर उनपर कुरान बाँटने के लिए न्यायिक आदेश द्वारा दबाव डालने की बात हो। और तो और CAA विरोध के नाम पर हुए दंगों के अभियुक्तों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राजद्रोह का मामला निरस्त करने से लेकर NRC को गैर उपयोगी बता उसका विरोध करने की बात हो। इन सभी प्रकरणों में सोरेन का दोहरा चरित्र और हिन्दू धर्म से कड़वाहट एक दम सटीक और स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ऐसे में मुस्लिम वर्ग को लुभाने के लिए जारी किए आदेश में विधानसभा परिसर के भीतर “नमाज़ के लिए एक विशेष कमरा” आवंटित करना हेमंत सोरेन के दोगले व्यवहार को तुष्टीकरण के आदी हो चुके नेता की छवि प्रदर्शित करता है।
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बीजेपी ने जिस तरह अब इस मामले में अपनी भागीदारी एक विरोधी दल के रूप में निभाते हुए विधानसभा परिसर के भीतर विरोध प्रकट करने के लिए नया तरीका अपनाया उससे पूरा विधानसभा परिसर ‘जय श्री राम’ और ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से गुंजायमान हो उठा। इसने बीते कुछ दिनों से सुस्त पड़ी भाजपा की हिंदूवादी छवि को संजीवनी देने का काम किया, और निश्चित ही इस विरोध के नए उपक्रम से नब्बे के दशक में चल रहे राम मंदिर आंदोलन में जिस प्रकार मुलायम सिंह की सपा सरकार के विरोध में स्वर उठे थे उसको सोरेन सरकार के विरुद्ध पुनः जीवंत करने का काम किया। उस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे समेत कई नेता हिन्दू और सनतना सभ्यता के ध्वजवाहक हुआ करते थे, इन्हीं जैसे तीरंदाजों की कमी आज बीजेपी में साफ देखी जा सकती है। वहीं, झारखंड में जिस प्रकार हिन्दू धर्म के नारों के साथ विरोध प्रकट किया गया उससे कहीं न कहीं 90 के दशक वाली भाजपा की छवि प्रतीत होती दिख रही है जिसे बनाए रखना आज बीजेपी की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
सदन में बीजेपी के नेता बाबूलाल मरांडी ने नमाज के लिए आवंटित किए गए विशेष नमाज हॉल का विरोध करते हुए कहा कि, “यह एक असंवैधानिक कदम है और अगर विधानसभा अध्यक्ष को यह फैसला लेना ही था तो हिंदुओं के लिए सभा परिसर में एक भव्य हनुमान मंदिर का निर्माण करें। अन्य धर्मों के लोगों के लिए पूजा हॉल निर्धारित किया जाना चाहिए। लोकतंत्र का मंदिर ऐसा ही रहना चाहिए जहाँ सभी धर्म का सम्मान हो।” मरांडी ने कहा, “लोकतंत्र का मंदिर लोकतंत्र का मंदिर बना रहना चाहिए। हम ऐसे किसी भी आदेश के खिलाफ हैं।”
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सत्य तो यही है कि विधानसभा सदन में ऐसे किसी भी कक्ष का आवंटन नियमों का सीधा उल्लंघन और कानून को लांघकर लिया गया निर्णय है। जिस प्रकार भाजपा इस मुद्दे ओर सजगता दिखा हिन्दू धर्म के एक समान सम्मान के लिए सदन और सदन के बाहर अपनी असहमति व्यक्त कर रही है उससे उसकी छवि पूर्ण रूप से 90 के दशक वाली लगने लगी है और देर से ही सही उस दौरान भी सरकारों को बात सुननी पड़ी थी और झारखण्ड में तो स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन हुआ है जिसके तहत अब हेमत सोरेन और उनकी सरकार के निर्णय पर कानूनी शिकंजा कसना तय माना जा रहा है।