केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव विवेक अग्रवाल के अनुसार केंद्र ने किसानों के लिए 12 अंकीय विशिष्ट आईडी बनाना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार द्वारा बनाए जा रहे इस कार्ड का उपयोग विभिन्न योजनाओं के तहत सभी कृषि संबंधी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए किया जा सकता है। प्रत्येक किसान के लिए 12 अंकों की एक विशिष्ट आईडी जारी की जाएगी। यह पीएम किसान जैसी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और उनसे लाभान्वित किसान, उनके भूमि रिकॉर्ड जैसे अन्य डाटा को केंद्रीकृत रूप से जोड़कर एक एकीकृत डेटाबेस बनाने के सरकार के प्रयासों का हिस्सा है। सरकार द्वारा जारी यह 12 अंकीय आईडी (ID) एक किसान के सारे कल्याणकारी योजनाओं, लाभों और भूमि रिकॉर्ड जैसे निजी कृषि लाभ और दस्तावेजों का संकलन है।
विवेक अग्रवाल के मुताबिक, “एक एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस बनाने का इरादा है। विशिष्ट आईडी किसानों को विभिन्न सरकारी योजनाओं और ऋण सुविधाओं का निर्बाध रूप से लाभ उठाने में सक्षम बनाएगी, साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को खरीद कार्यों की बेहतर योजना बनाने में मदद मिलेगी।”
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आधार कार्ड का भी उपयोग करेगी सरकार
कार्यान्वयन प्रक्रिया में अब तक 11 राज्यों से 5.5 करोड़ किसानों के नाम पंजीकृत किए गए हैं, जिनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं। जब यह आंकड़ा 8 करोड़ तक पहुंच जाएगा तो यूनिक किसान आईडी को सार्वजनिक कर दिया जाएगा। तेलंगाना, केरल और पंजाब सहित शेष राज्यों को आने वाले महीनों में कवर किया जाएगा।
अग्रवाल ने कहा, “इतने वृहद डेटाओं का संकलन और निर्माण मौजूदा योजनाओं, जैसे पीएम किसान, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और पीएम फसल बीमा योजना के डेटाबेस से निकाला जा रहा है। निकाले गए डेटा को राज्य सरकारों के पास उपलब्ध भूमि रिकॉर्ड विवरण के साथ जोड़ा जाएगा। आधार कार्ड का उपयोग डुप्लीकेशन तंत्र के रूप में किया जाएगा। भू-अभिलेखों को जोड़ने के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग किया जाएगा। इससे किसानों को फसल पैटर्न, बीज चयन, सिंचाई कार्यक्रम, पोषण और कीट प्रबंधन के संबंध में अन्य चीजों के बारे में सटीक सलाह प्राप्त करने में मदद मिलेगी।“
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने हाल ही में CISCO, Ninjacart, Jio Platforms, ITC Star Agribazaar, Esri India, Patanjali समेत 10 निजी कंपनियों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
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BMW वाले किसानों की होगी पहचान
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कथनानुसार, “सरकार द्वारा जन कल्याण हेतु भेजे गए 1 रुपये में से मात्र 10 पैसे ही जनता के पास पहुँच पाते हैं।“ इस बयान से साफ है कि बाकी सारे पैसे दलाल और बिचौलिये खाते हैं। भारतीय कृषि व्यवस्था में ये दलाल, बिचौलिये या फिर आढ़तिये इतनी गहरी घुसपैठ कर चुके हैं कि किसानों के कल्याण के लिए सरकार और किसान के बीच से इनको हटाना अत्यंत आवश्यक है। राजीव गांधी की सरकार ने तो कुछ नहीं किया, लेकिन ऐसे प्रयासों से मोदी सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता दिखती है।
भारत का 65 प्रतिशत आबादी आजीविका हेतु कृषि पर आधारित है। भारत में लगभग 75% खेतिहर लघु कृषक के परिधि में आते हैं। जिनके छोटे से पट्टे में उगने वाली फसल उनके आजीविका हेतु पर्याप्त नहीं है और न ही वो अपने बल बूते खेती करने में समर्थ हैं। अतः सरकार सब्सिडी और किसानों के निमित्त हेतु कल्याणकारी योजनाएं चलाती है। जिसका लाभ बड़े उच्च शिक्षित सामंती किसान उठा लेते हैं। कृषि राज्य की विषय वस्तु होने के कारण राज्य सरकारें भी वोटबैंक के कारण अपनी आंखे मूँद लेती हैं।
ऐसे में लघु और वास्तविक किसानों को फायदा पहुँचाने और BMW से राजपथ पर विरोध करने वाले सामंती किसानों के शोषण को अवरुद्ध करने हेतु सरकार इस तकनीक का सहारा ले रही है। 11 राज्यों के डेटाबेस का कार्य पूरा हो चुका है। इन राज्यों से 5.5 करोड़ किसानों का डाटा भी तैयार कर लिया गया है। इसके 8 करोड़ पहुँचते ही सरकार इसे सार्वजनिक कर देगी। उम्मीद है कि सरकार के इस पुनीत प्रयास का पुण्यफल हमारे अन्नदाताओं को अवश्य मिलेगा।
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