पश्चिम बंगाल मे ममता बनर्जी और उनकी तानाशाही के बीच कोलकाता हाई कोर्ट दीवार बनकर खड़ा है। इस बार भी ममता बनर्जी के तानाशाही पर ब्रेक लगाते हुए सुवेंदु को बड़ी राहत दी है। सोमवार को कोलकाता हाई कोर्ट ने एक पुराने मामले में सुवेंदु अधिकारी को अंतरिम राहत दे दी है। सुवेंदु को उनके बॉडीगार्ड की हत्या के मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। कोलकाता कोर्ट ने आदेश दिया है कि जांच में सुवेंदु के खिलाफ कोई आक्रामक कार्रवाई करने के पूर्व पुलिस को उनसे आदेश लेना होगा। कोर्ट ने मामले में नई गिरफ्तारी के लिए पूर्व अनुमति लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अधिकारी पर चल रहे पांच में से तीन मामलों में स्टे का आदेश दिया है। कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने कड़े रुख से प० बंगाल ममता बनर्जी सरकार द्वारा की जा रही बदले की कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
बता दें कि जुलाई में सुवेंदु के एक पूर्व बॉडीगार्ड की मौत के मामले में उसकी पत्नी द्वारा FIR दर्ज करवाई गई है। सुवेंदु के बॉडीगार्ड सुभब्रत चक्रवर्ती की तीन साल पहले मृत्यु हुई थी।
हाई कोर्ट के जस्टिस राज शेखर मंथा ने चक्रवर्ती की मौत के तीन वर्ष बाद उनकी पत्नी द्वारा दर्ज करवाई गई FIR पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा “उसने अपने पति की मृत्यु के तीन वर्ष बाद मामला दर्ज क्यों करवाया? क्या वह सो रही थी? अचानक ही वह हत्या का आरोप क्यों लगाने लगी और अधिकारी का नाम लेने लगी? न्यायालय को चिंता है कि कहीं यह मामला अधिकारी की गिरफ्तारी द्वारा उनके शोषण का न बन जाए।”
कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा “कोर्ट ने पाया है कि कोंटाई पुलिस स्टेशन ने यह जानने की कोशिश ही नहीं कि है कि इस मामले में, जिसे अब मृतक की पत्नी हत्या बता रही हैं और जिसे शुरू में आत्महत्या बताया गया था, उसमें FIR दर्ज करवाने में तीन साल की देरी का कारण क्या है? कोंटाई पुलिस स्टेशन द्वारा FIR का मामला दर्ज करने के लिए केवल अप्राकृतिक मृत्यु का मामला ही पर्याप्त नहीं है और न ही यह FIR का कारण बन सकता है।”
ममता बनर्जी भवानीपुर सीट से उपचुनाव लड़ने वाली हैं। उनके विरुद्ध भाजपा ने अभी अपने कैंडिडेट का चयन नहीं किया है लेकिन यह तय है कि इस उपचुनाव में सुवेंदु भाजपा के स्टार प्रचारक होंगे। सुवेन्दु ने पहले भी ममता बनर्जी को एक बार चुनावी पटखनी दी है। ऐसे में ममता बनर्जी को भय है कि वह उपचुनाव भी ना हार जाएं। इसी बीच सुवेंदु अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा दायर हुआ है।
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सच कहें तो कोलकाता हाई कोर्ट पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र का रक्षक बनकर सामने आया है। जब ममता बनर्जी ने बंगाल हिंसा मामले मे सीबीआई को जांच करने से रोक था तब भी ये कोलकाता हाई कोर्ट था जिसने बंगाल हिंसा मामले मे सीबीआई को जांच के आदेश दिए थे। कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश पर हिंसा की जांच करने गई NHRC की टीम पर जब हमला हुआ तो भी कोर्ट ने दक्षिणी कोलकाता के DCP को नोटिस भेज दिया था। पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद से जारी हिंसा के दौर को रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा भी कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया था, लेकिन कोलकाता हाई कोर्ट ने न्याय की आखिरी उम्मीद को बचाए रखा।
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इससे पहले नारद मामले मे भी यही देखने को मिल था मई में जब CBI ने कड़ी कार्रवाई करते हुए नारदा केस में बंगाल सरकार के दो मंत्रियों व एक विधायक समेत चार नेताओं को गिरफ्तार किया था तब ममता ने CBI दफ्तर के बाहर अपने समर्थकों के साथ धरना दे दिया था। ममता शक्ति प्रदर्शन करके CBI अधिकारियों को डराना चाहती थीं। उस समय एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि TMC के लोकसभा सांसद कल्याण बंदोपाध्याय जबरन सीबीआई कार्यालय में घुसे और अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ मारपीट की थी। उस समय कोलकाता हाईकोर्ट ने TMC नेताओं की जमानत पर रोक लगाते हुए टिप्पणी की थी कि “हम विवाद के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन जिस तरह से दबाव बनाने की कोशिश की गई, वह न्याय प्रक्रिया में लोगों के विश्वास को मजबूत नहीं करेगा।” कुल मिलाकर कहें तो बंगाल में तृणमूल के दमनकारी रवैये के विरुद्ध हाईकोर्ट ही आम आदमी के लिए कवच बनकर खड़ा है।