विपक्षी राजनीतिक दलों ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद ये मान लिया था कि यदि पीएम मोदी को परास्त करना है, तो प्रशांत किशोर की भूमिका अहम है। ऐसे में शरद पवार से लेकर सोनिया गांधी एवं एम. के. स्टालिन तक पीके की रणनीतियों के दम पर 2024 के लोकसभा चुनाव मे पीएम मोदी को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच आश्चर्यजनक बात ये है कि देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाने वाले प्रदेश यूपी के 2022 के विधानसभा चुनावों से प्रशांत किशोर पूर्णतः अलग हो गये हैं। इसके पीछे का बहाना रणनीति बनाने के काम से दूरी बताया गया है। जबकि एक सच ये भी है कि कांग्रेस पीके को यूपी में सक्रिय करना चाहती है, इसीलिए उन्हें पार्टी में शामिल करना चाहती है, किन्तु पीके ने साफ इंकार कर दिया है। प्रशांत किशोर का उत्तर प्रदेश चुनाव से गायब होना साफ दर्शाता है कि बिना कुछ बोले ही उन्होंने उत्तर प्रदेश में सीएम योगी की प्रचंड जीत के साथ वापसी का सांकेतिक ऐलान कर दिया है।
प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की जीत के बाद ऐलान किया था कि वो अब चुनावी रणनीतियां बनाने का कोई काम नहीं करेंगे। इसके बाद से प्रशांत किशोर विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं, एवं 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी खेमे को मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस उन्हें पार्टी में शामिल करने को आतुर है, क्योंकि वो पीके की मदद से 2024 के सपने तो देख ही रही है, साथ ही उसके प्रयास उत्तर प्रदेश चुनाव में प्रशांत किशोर को सक्रिय कर प्रियंका की मदद करने के भी हैं। कांग्रेस के प्रयासों से इतर प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पूरी तरह गायब नजर आ रहे हैं।
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मीडिया रिपोर्टस की माने तो मार्च 2022 तक पीके के पास कोई भी नया राजनीतिक एसाइनमेंट नहीं है। इतना ही नहीं, बड़ी बात ये है कि अगले साल होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए प्रशांत किशोर ने किसी भी पार्टी से कॉन्ट्रैक नहीं लिया था। वहीं रिपोर्ट्स बताती हैं कि पीके अगले वर्ष तक किसी भी पार्टी में अंदर या बाहर से कोई राजनीतिक भूमिका नहीं निभाएंगे। उन्होंने क्या करने का प्लान बनाया है, इसके बारे में कुछ भी कहना अप्रत्याशित है। रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि मार्च 2022 के बाद भी पीके कोई कॉन्ट्रैक्ट लेंगे या नहीं ये कहना फिलहाल मुश्किल है।
भले ही पीके अभी प्रोजेक्ट लेने से इनकार कर रहे हों किन्तु वो 2024 के लिए चुनावी रणनीति सक्रियता के साथ बना रहे हैं। प्रशांत किशोर का ये रवैया दर्शाता है कि वो बस उत्तर प्रदेश चुनाव से ही दूरी बनाना चाहते हैं। प्रशांत किशोर की उत्तर प्रदेश से जुड़ी यादें अत्यधिक नकारात्मक रही हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर सपा-कांग्रेस के गठबंधन के लिए चुनावी रणनीति बना रहे थे, एवं इस गठबंधन को नतीजों में भाजपा ने बुरी तरह परास्त कर दिया था। वहीं वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो उत्तर प्रदेश में सीएम योगी की लोकप्रियता के आगे अन्य सभी नेता फीके हैं। ये बात पीके अच्छे से जानते हैं।
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उत्तर प्रदेश किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। ये सर्वविदित है कि जिसकी पकड़ यूपी में मजबूत होती है, केन्द्र में उसकी सरकार का बनना सर्वाधिक आसान होता है। इन मुख्य पहलुओं को जानने के बावजूद उत्तर प्रदेश में पीके का उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रहना दर्शाता है कि पीके योगी की जीत को लेकर आश्वस्त हैं, एवं उनकी चुप्पी इस बात का संकेत भी दे रही है। कांग्रेस के अनेकों प्रयासों के बावजूद संभवतः इसीलिए प्रशांत किशोर अभी कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं, क्योंकि यदि उनके रहते कांग्रेस की हार हुई तो उनका राजनीतिक करियर 2022 में ही खत्म हो सकता है।