जब आप प्रजासेवक से अधिक राजा के सेवक बन जाते हैं, तो आपका पतन निश्चित है। कुछ ऐसा ही बंगाल में देखने को मिल रहा है, जहां पर भवानीपुर के उपचुनाव को लेकर चुनाव आयोग में बंगाल के मुख्य सचिव ने इसे तत्काल प्रभाव से सुनिश्चित कराने और जल्द से जल्द कराने का अनुरोध किया था। इस पर बंगाल के मुख्य सचिव को फटकार लगाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि वे बंगाल के प्रशासक से अधिक तृणमूल कांग्रेस के नौकर की भांति व्यवहार कर रहे थे।
बंगाल के मुख्य सचिव ने चुनाव जल्दी कराने के लिए डाली अर्जी
असल में चुनाव आयोग में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी ने भवानीपुर के उपचुनाव को जल्दी कराने की याचिका दायर की थी, जिसके विरुद्ध सयान बनर्जी द्वारा कलकत्ता हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। मुख्य सचिव एच के द्विवेदी ने याचिका में चुनाव आयोग से कहा था कि भवानीपुर के उपचुनाव में तेजी लाई जाए वरना संवैधानिक संकट पैदा होगा।
इसके विरुद्ध दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश (कार्यवाहक) राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने सुनवाई की। अदालत ने पाया कि द्विवेदी ने चुनाव आयोग को ‘संवैधानिक संकट’ की स्थिति का हवाला देते हुए कहा था कि ऐसी स्थिति हो सकती है अगर बंगाल के भवानीपुर में नहीं किए जाते। चुनाव आयोग को समझाने के लिए, मुख्य सचिव ने दावा किया कि कोलकाता में कोरोना वायरस महामारी और ‘बाढ़ की स्थिति’ दोनों नियंत्रण में हैं।
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कोर्ट ने बंगाल के मुख्य सचिव को लेकर क्या कहा
याचिका की सुनवाई के दौरान कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एचके द्विवेदी को तृणमूल काँग्रेस की पैरवी करने के लिए जमकर लताड़ लगाई। कोर्ट के अनुसार, “राज्य के मुख्य सचिव द्वारा चुनाव आयोग को दी गई जानकारी तथ्यों के विपरीत थी क्योंकि COVID-19 महामारी के कारण राज्य प्रतिबंधों को 30 सितंबर, 2021 तक बढ़ा दिया गया था। कोरोना वायरस की स्थिति नियंत्रण में नहीं थी क्योंकि राज्य सरकार को लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।”
परंतु हाईकोर्ट वहीं पर नहीं रुका। खंडपीठ ने आगे कहा, “सबसे अपमानजनक बात मुख्य सचिव का आचरण है, जिन्होंने खुद को एक लोक सेवक की तुलना में राजनीतिक दल के नौकर के रूप में अधिक पेश किया, और कहा कि अगर भवानीपुर का चुनाव नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है, जहाँ से प्रतिवादी संख्या 5 (ममता बनर्जी) चुनाव लड़ना चाहती हैं। चुनाव हारने या जीतने वाले एक व्यक्ति के साथ सरकार को किस संवैधानिक संकट का सामना करना पड़ सकता है, यह नहीं बताया गया है। मुख्य सचिव को कैसे पता चला कि प्रतिवादी संख्या 5 को भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना है? वह पार्टी के प्रवक्ता या रिटर्निंग ऑफिसर नहीं थे।”
कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में ये भी कहा, “हम चुनाव आयोग को एक पत्र लिखकर मुख्य सचिव के आचरण के बारे में अपना कड़ा विरोध दर्ज करते हैं, जिसमें कहा गया है कि भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र के लिए उपचुनाव नहीं होने की स्थिति में ‘संवैधानिक संकट’ होगा। वह एक लोक सेवक है, जिन्हें कानून के प्रावधानों के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना है, जो भी सत्ता में हो। उन्हें यह सुनिश्चित नहीं करना है कि कोई व्यक्ति विशेष सत्ता में आए और उसकी अनुपस्थिति में ‘संवैधानिक संकट’ उत्पन्न हो।”
भवानीपुर से तय होगा ममता और तृणमूल का भविष्य
असल में भवानीपुर का उपचुनाव इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ से तृणमूल कॉंग्रेस सुप्रीमो और बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से चुनाव लड़ा, परंतु वह भाजपा के प्रभावशाली नेता और तृणमूल सरकार के ही पूर्व मंत्री शुवेन्दु अधिकारी से चुनाव हार गई। 30 सितंबर को प्रस्तावित उपचुनाव में यदि ममता भाजपा की उम्मीदवार, अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल से पराजित हो जाती है, तो नवंबर 2021 में उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, और उनके कार्यकाल के साथ साथ संभवत: तृणमूल कांग्रेस की सत्ता पर भी पूर्णविराम लग सकता है।
जिस प्रकार से कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल के मुख्य सचिव की क्लास लगाई है, वो उनसे अधिक ममता बनर्जी के लिए चेतावनी का संदेश है – यदि वह शासन का तनिक भी दुरुपयोग करती हैं, तो ये उनके और उनके प्रशासन के लिए बेहद हानिकारक है। अब ममता कितने दिन टिकेंगी, ये तो उपचुनाव के परिणामों पर निर्भर है, परंतु बंगाल के प्रमुख सचिव को दर्पण दिखाकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने न्यायपालिका की गरिमा को अक्षुण्ण रखने में अपना योगदान दिया है।