सामान्य ज्ञान के तमाम तथ्यों में से एक तथ्य आपने लंबे समय तक सुना होगा। तथ्य यह है कि केरल भारत का सबसे शिक्षित राज्य है, यहां की 96.2% आबादी सरकारी आंकड़ो के हिसाब से पढ़ी-लिखी है। सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे राज्यों से यह उम्मीद जताई जाती है कि वहां अन्य राज्यों की अपेक्षा हालात सामान्य होंगे, लोग ज्यादा पढ़े लिखें हैं तो वहां चीजें भी बेहतर होंगी। सवाल यह है कि एक पढ़े-लिखे राज्य से आप क्या उम्मीद नहीं करते हैं? दरअसल, ऐसे राज्यों में जातीय हिंसा, धार्मिक आस्था के आधार पर उग्रवाद और बाल-विवाह जैसे तमाम मसलों की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन जब देश के सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाले राज्य में ये सारे मामले सामने आने लगे तो वहां स्थिति क्या होगी, इसका अनुमान लगा पाना काफी मुश्किल है। भारत में लड़कियों की विवाह की उम्र 18 वर्ष तय की गई है और लड़कों के लिए यह उम्र का पैमाना 21 वर्ष है लेकिन केरल में स्थिति ऐसी नहीं है। चौंकिए मत, हम यह बात बनाकर नहीं बोल रहे हैं, हाल ही में आये केरल सरकार के आंकड़ों से इस बात की पुष्टि हुई है।
केरल और बाल विवाह
केरल सरकार के आंकड़ों के मुताबिक नई आबादी में लगभग 5% आबादी को जन्म 19 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं ने दिया है। 2019 के लिए केरल सरकार की रिपोर्ट से पता चलता है कि बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं में से 4.37 प्रतिशत महिलाएं 15-19 आयु वर्ग की हैं। इनमें से कुछ महिलाओं की तो 19 साल की उम्र में दूसरा या तीसरा बच्चा हो गया था।
सितंबर में राज्य के आर्थिक और सांख्यिकी विभाग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में आश्चर्यजनक रूप से यह पाया गया कि 15 से 19 वर्ष के बीच की आयु में 20,995 महिलाओं ने बच्चे को जन्म दिया है। इनमें से 15,248 महिलाएं शहरी क्षेत्रों से है और केवल 5,747 महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
20 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में से 316 महिलाओं ने अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया है, 59 ने अपने तीसरे और 16 महिलाओं ने अपने चौथे बच्चे को जन्म दिया। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इन महिलाओं में से 11,725 महिलाएं मुस्लिम समुदाय से हैं, 3,132 हिंदू और 367 महिलाएं ईसाई धर्म से हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है कि कम उम्र में बच्चों को जन्म देने वाली अधिकतर महिलाएं शिक्षित हैं। 21 हजार महिलाओं में से 16,139 ने 10वीं कक्षा पास की है लेकिन स्नातक नहीं हैं। केवल 57 महिलाएं अशिक्षित हैं, 38 महिलाओं ने प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की है और 1,463 महिलाओं ने प्राथमिक स्तर और कक्षा 10 के बीच अध्ययन किया है। 3,298 महिलाओं की शैक्षणिक योग्यता स्पष्ट नहीं है।
केरल सरकार और बाल विवाह विवाह रोकने के प्रावधान
राज्य में बढ़ते बाल-विवाह के मामलों को रोकने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा प्रयास किया जा रहा है। केरल सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए ‘पोनवाक्क‘ नामक एक नई परियोजना लेकर आई है। इस परियोजना के तहत बाल विवाह की सूचना देने वाले मुखबिरों को सरकार 2500 रुपये का ईनाम देगी। राज्य सरकार ने सूचना देने वालों के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को पहले ही 5 लाख रुपये की मंजूरी दे दी है।
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एक “शिक्षित” राज्य में ऐसी रूढ़िवादी प्रक्रियाओं के चलते कई सारे सवाल निकल कर सामने आ रहे है। क्या ऐसे बाल-विवाह विभिन्न समुदायों द्वारा राज्य में अपनी आबादी बढ़ाने का तरीका है जो कि केरल में मौजूद 3 बड़े धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई) के बीच आंतरिक संघर्षो को बताता है? अगर ऐसा है तो यह चिंतनीय है क्योंकि भारत में बढ़ती आबादी पहले से ही चिंता का विषय है। केंद्र सरकार द्वारा पहले से ही इस प्रकार के मामलों को कम करने के लिए उम्र के पैमाने बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। जया जेटली और वीके पॉल की पैनल (टास्क फोर्स) द्वारा लड़कियों की उम्र को 21 करने का सलाह दिया गया था। बाल-विवाह के ऐसे मामलें एक बड़े रूढ़िवादी धारणा को और मजबूत करते हैं जहां यह माना जाता है कि लड़कियां, लड़को से पहले युवा अवस्था में पहुंच जाती है।