पटाखे मत चलाओ… शोर मत करो… दियों में तेल मत बर्बाद करो… वामपंथ के जहर में लिपटे हुए विज्ञापनों में अपनी संस्कृति का मजाक उड़ते देखो… और फिर जब कोई पूछे कि ये क्या है, तो कह दो कि… अरे दिवाली है दिवाली… क्या खाक दिवाली है? दिवाली के पूरे आनंद का ही सर्वनाश कर दिया है वामपंथियों ने, और कथित हिंदुत्व हितैषी सरकार कुछ बोलती ही नहीं… ऐसे कैसे चलेगा? चलिए आज आपको बताते हैं कि कैसे दिवाली उत्सव और आनंद की मिट्टी-पलीद कर दी गई है। दिवाली अर्थात हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार… सनातन संस्कृति में सकारात्मकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिवाली ही है, जिसका उत्सव दुखों के अंधकार का सर्वनाश कर लोगों में प्रकाश बनकर आता है।
इसके विपरीत अब सवाल ये उठता है कि क्या दिवाली पहले जैसी रह भी गई है? या वामपंथियों के एक प्रोपेगैंडे के तहत इसे फीका कर दिया गया है? केंद्र में एक ऐसी सरकार बैठी है, जो कि सबका साथ और सबका विकास की बात करती है, लेकिन कथित हिन्दू हितैषी मानी जाने वाली इस सरकार के कार्यकाल में दिवाली के स्वरूप का ही सर्वनाश कर दिया गया है, ऐसे में अब आवश्यकता है कि दिवाली को पुनः उसके स्वरूप में लाया जाए।
संस्कृति को वैचारिक चोट
नवरात्र और दुर्गा पूजा की शुरुआत से लेकर दिवाली तक ऐसे विज्ञापनों की भरमार होती है, जिनमें सनातन संस्कृति की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। इन विज्ञापनों को ऐसे पेश किया जाता है कि युवा पीढ़ी का ध्यान सनातन संस्कृति से भ्रमित किया जा सके। हाल ही में हमने इसके कई उदाहरण देखे जिनमें से एक FabIndia नामक कंपनी का विज्ञापन थाl FabIndia ने अपने दिवाली विज्ञापन कैंपेन का नाम ‘जश्न-ए-रिवाज’ रख दिवाली के इस्लामीकरण की रूपरेखा रची, लेकिन जब दांव उल्टा पड़ गया, तो माफ़ी मांगते हुए कैंपेन वापस ले लिया।
FabIndia की तरह ही फैशन डिजाइनर कंपनी सब्यासाची ने अपने दिवाली ज्वैलरी कलेक्शन में महिला मॉडलों की अश्लील तस्वीरें प्रकाशित कर सनातन संस्कृति में दांपत्य जीवन के प्रतीक मंगलसूत्र का अपमान कर डाला। इसके पहले विज्ञापन के माध्यम से ही ई-कॉमर्स वेबसाइट ने नवरात्रि पर कॉन्डम की सेल रखकर पवित्र दिनों का अपमान किया था। वहीं करवाचौथ पर डाबर के विज्ञापन ने समलैंगिकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। ये सारे विज्ञापन दिवाली तक चलते हैं, और इनका मकसद क्या है? दिवाली तक सनातन संस्कृति के प्रति जहर घोलकर युवाओं में दिवाली के प्रति नकारात्मकता का भाव लाना।
पटाखों और प्रदूषण का खेल
एक तरफ जहां विज्ञापनों के जरिए सनातन संस्कृति पर वैचारिक प्रहार किया जाता है, तो दूसरी ओर दिवाली का प्रतीक माने जाने वाले पटाखों पर पिछ्ले सात सालों में सर्वाधिक गाज गिरी है। इससे पटाखा इंडस्ट्री पूरी तरह बर्बाद हो गई है, और दिवाली का जश्न फीका। दिवाली में होने वाली आतिशबाजी को वैश्विक स्तर पर इतनी नकारात्मकता के साथ पेश किया जाता है, मानो पूरे साल का प्रदूषण केवल दिवाली की अतिशबाजी से ही होता है। दिल्ली और मुंबई से लेकर देश के कई बड़े राज्यों और जिलों में पटाखों पर बैन लगा दिया गया है।
देश के कुछ राज्यों में जहां ये बैन नहीं है, वहां केवल ग्रीन पटाखा जलाने की अनुमति एक निश्चित समय सीमा के लिए दी गई है। इतना ही नहीं, हैरानी की बात तो ये भी है कि कि पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य में ग्रीन पटाखों के प्रयोग की अनुमति दी थी, लेकिन अल्पसंख्यक समाज के व्यक्तियों की आपत्ति के कारण लगी याचिका के चलते वो अनुमति भी रद्द हो गई, और कलकत्ता हाईकोर्ट ने पटाखों पर पूरा बैन लगा दिया। अब सवाल उठता है कि क्या सारा प्रदूषण पटाखों से ही होता है? वैश्विक स्तर पर अनेकों त्योहारों में पटाखों का प्रयोग होता है। नए वर्ष के आगमन और क्रिसमस के मौके पर तो असमान में पटाखों की बाढ़ सी आ जाती है, तो फिर सारा बैन दिवाली पर ही क्यों?
प्रकाश और ध्वनि से भी परेशान
लोगों को एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि पटाखों से जानवरों के कानों को सर्वाधिक नुकसान होता है, इसलिए पटाखों पर तो प्रतिबंध होना ही चाहिए। इसके विपरीत जानवरों के प्रति यही अगाध प्रेम तब क्यों नहीं दिखता, जबकि क्रिसमस, ईद और बकरीद संबंधी त्योहारों में जानवरों को ध्वनि से परेशान नहीं किया जाता, बल्कि उनका जीवन ही समाप्त कर दिया जाता है। ये दिखाता है कि मुख्य मुद्दा बस सनातनियों में दिवाली के प्रति नकारात्मकता लाने का है। इसके विपरीत अगर हम सोचें तो दिवाली का मूल मंत्र क्या है ? भगवान श्रीराम लंकेश रावण का वध करके 14 वर्षों का वनवास काटकर अयोध्या आए थे और इसी खुशी में अयोध्या वासियों ने दीपोत्सव किया था, जिसके उपलक्ष्य में हम दिवाली मनाते हैं। वहीं अब दीपोत्सव को लेकर भी लोगों में घृणा भरी जा रही है।
वामपंथियों का तर्क रहता है कि दिवाली के दौरान जितनी बड़ी संख्या में भारत में दिए जलते हैं, वो पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि दिए की बाती से निकलने वाला धुआं भी खतरनाक होता है। इसके विपरीत उनका मानना है कि दिवाली में दिए की जगह मोमबत्तियां जलाई जाएं। निश्चित है कि मोमबत्तियां के लिए सकारात्मकता दिखाकर यह लोग दिवाली के मूल दिए जलाने के उत्सव को खत्म करना चाहते हैं, यद्यपि मोमबत्तियां ज्यादा प्रदूषण पैदा करती है। वहीं, दियों को लेकर एक तर्क यह भी दिया जाता है, कि दियों में पड़ने वाला तेल गरीबों की मदद के काम आ सकता है, इसलिए इसका उपयोग नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में प्रतिवर्ष होने वाला दीपोत्सव वामपंथियों को इसीलिए सर्वाधिक चुभता है, क्योंकि योगी सरकार के पहले अयोध्या सुनसान रहती थी।
मोदी सरकार से प्रश्न
पूजा से लेकर प्रत्येक तरह के विधि-विधान पर वामपंथियों ने अपना जहर घोला है, जिसका उद्देश्य केवल इतना ही है कि कैसे करके दिवाली के महत्व को खत्म किया जा सके। विज्ञापनों में परंपरागत मिठाईयों की जगह चॉकलेट को दे दी गई हैं, जिससे मिठाईयों तक के मुद्दे पर युवाओं के मन में घृणा का विस्तार किया जा सके। अब प्रश्न यह उठता है कि इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद कथित तौर पर हिंदुत्व समर्थक सत्ताधारी मोदी सरकार हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार दिवाली के फीके होने पर क्या कर रही है? निश्चित ही, कुछ भी नहीं। दिवाली पर अमेरिका जैसे देश में पटाखे जलाने की इजाजत है, लेकिन भारत में नहीं l
वामपंथियों की दिवाली से सर्वाधिक घृणा की वजह ये है कि ये त्योहार सनातन धर्म की आस्था के प्रतीक भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है। ऐसे में इसे बदनाम करके वामपंथी सनातनियों के मूल पर सर्वाधिक प्रहार करने के प्रयास करते हैं। वहीं, जब हिंदुत्व समर्थक पार्टी की सरकार शासन कर रही ह़ो, और फिर हिंदुओं के त्योहार दिवाली को फीका किया जाए, तो ये मोदी सरकार के लिए एक शर्मनाक विषय है। 6-7 वर्ष पहले ऐसे प्रतिबंध नहीं थे। बकरीद पर कुर्बानी की इजाजत मिल जाती है, क्रिसमस पर आतिशबाजी हो जाती है, लेकिन दिवाली पर पटाखे नहीं जल सकते? होली पर पानी बचाने की नौटंकी होती है, और मोदी सरकार मूक दर्शक की तरह तमाशा देखती है, मानों वो भी मौन स्वीकृति दे रही हो। इतना ही नहीं प्रचार के लिए वामपंथी सनातन धर्म के ही पथ भ्रमित सितारों का सहारा लेकर विज्ञापन निकालते हैं।
ऐसे में यह सवाल उठाया जा सकता है कि सनातन धर्म के त्योहार दिवाली पर लगातार वैचारिक हमले किए जा रहे है, और प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं लेकिन हिंदुत्ववादी मोदी सरकार इस मुद्दे पर क्यों चुप्पी साधे हुए है, क्योंकि ये मोदी सरकार की सनातन के प्रति कटिबद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।