अपनी समस्याओं के लिए दूसरों पर आरोप लगाना सबसे आसान काम है और इस काम में पाकिस्तान को महारत हासिल है। पाकिस्तान अपने यहां होने वाली हर बुरी चीज के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है। अब पाकिस्तान की ओर से एक बार फिर से यहीं राग अलापा जा रहा है और इस बार भारत का सबंध चीन और पाकिस्तान के प्रोजेक्ट CPEC (सीपेक) से जोड़ा जा रहा है। साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका पर भी इस परियोजना से पाकिस्तान को अलग-थलग करने का आरोप लगाया गया है। लेकिन अब उन्हें कौन समझाए कि भारत और अमेरिका जैसे मजबूत देश के लिए न तो पाकिस्तान मायने रखता है और ना ही चीन! पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान में इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे चीनी इंजीनियर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के हत्थे चढ़ रहे हैं, जिसे लेकर चीन भड़का हुआ है। हालात तो ऐसे हो गये थे कि CPEC (सीपेक) प्रोजेक्ट के लिए चीनी बैंकों ने पाकिस्तान को पैसे देने भी बंद कर दिए थे। लेकिन पाकिस्तान अपनी खोखली आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान देने की बजाय अब दूसरे देशों पर दोष मढ़ने का प्रयास कर रहा है।
पाकिस्तान का आंतरिक भय
दरअसल, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) प्राधिकरण के प्रमुख ने अमेरिका और भारत पर ऐसे आरोप लगाए हैं। सीपेक मामलों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक खालिद मंसूर ने शनिवार को कराची में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन संस्थान में सीपेक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “उभरती हुई भू-रणनीतिक स्थिति के दृष्टिकोण से, एक बात स्पष्ट है: भारत द्वारा समर्थित संयुक्त राज्य अमेरिका सीपेक का विरोधी है और वो इसे सफल नहीं होने देंगे।”
उनका कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से “पाकिस्तान को बाहर निकालने के प्रयास” जारी रखते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका अब इस प्रोजेक्ट से पाकिस्तान को हटाने के लिए”आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे का सहारा ले रहा है”।
मंसूर ने कहा, “यही कारण है कि सीपेक को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप दोनों द्वारा संदिग्ध रूप से देखा जाता है। वे सीईपीसी को चीन द्वारा अपने राजनीतिक, रणनीतिक और व्यावसायिक प्रभाव का विस्तार करने के लिए एक कदम के रूप में देखते हैं।”
हालांकि, एक सत्य ये भी है कि पाकिस्तान के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा चीन कब पाकिस्तान को गच्चा दे जाए, यह कोई नहीं जानता, क्योंकि चीन की कोई भी विकास नीति दूसरे देशों का भला करने के उद्देश्य से होती ही नहीं है, वो DEBT TRAP डिप्लोमेसी के लिए मशहूर है। पहले वह कर्ज देगा, फिर आपसे पैसे वापस मांगेगा और जब नहीं मिलेगा तो आपके क्षेत्र पर अधिग्रहण करना शुरू कर देगा और सामने वाला चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगा।
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पाकिस्तानी अखबार डॉन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कई पश्चिमी थिंक टैंक और टिप्पणीकारों ने सीपेक को एक आर्थिक जाल करार दिया है, जिसके परिणामस्वरूप पहले से ही सार्वजनिक ऋण का स्तर बढ़ गया है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में अत्यधि चीनी प्रभाव अत्यधिक हो गया है। पाकिस्तान भी इस बात को जानता है और चीन भी काफी हद तक इस बात को जानता है। बताया जा रहा है कि चीनी कर्ज में डूबे पाकिस्तान के इलाकों के अधिग्रहण को लेकर चीन सही मौके की तलाश में है।
भारत हमेशा से करता रहा है विरोध
वहीं, सीपेक को लेकर भारत, चीन पर काफी पहले से ही मुखर रहा है, क्योंकि सीपेक परियोजना का काम पीओके से होकर गुजर रहा है। बीजिंग अपनी ओर से भारत की आपत्तियों को यह कहकर खारिज कर रहा है कि यह एक आर्थिक पहल है और कश्मीर मुद्दे पर उसने सैद्धांतिक रुख को प्रभावित नहीं किया है।
भारत, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और इसकी प्रमुख परियोजना, सीपेक को लेकर काफी पहले से ही विरोध जताते आ रहा है। हाल ही में संपन्न दूसरे संयुक्त राष्ट्र सतत परिवहन सम्मेलन में भारतीय राजनयिक का माइक अचानक से बंद हो गया था, जिसे लेकर काफी बवाल मचा था। दरअसल, 14 से 16 अक्टूबर तक चली संयुक्त राष्ट्र की बैठक में अचानक “माइक फेलियर” ने खलबली मचा दी और इसे बहाल करने में कई मिनट लग गए, लेकिन उसके बाद भारतीय राजनयिक प्रियंका सोहोनी ने इस योजना को लेकर जबरदस्त टिप्पणी की थी।
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सोहोनी ने कहा, “कोई भी देश उस पहल का समर्थन नहीं कर सकता है जो पहल उसके संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की मूल चिंताओं की अनदेखी करता है। इस सम्मेलन में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव या बीआरआई के कुछ संदर्भ मिले हैं। यहां मैं यह कहना चाहती हूं कि जहां तक चीन के बीआरआई का सवाल है, हम उससे विशिष्ट रूप से प्रभावित हैं। सोहोनी ने कहा कि तथाकथित चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) को एक प्रमुख परियोजना के रूप में शामिल करना भारत की संप्रभुता को प्रभावित करता है।”
बताते चलें कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर सीपेक परियोजना का गुजरना भारत की संप्रभुता पर खतरे के समान है। दूसरी ओर धूर्त चीन की मंशा को जानते और समझते हुए भारत एवं अमेरिका समेत दुनिया की तमाम देश इस मुद्दे पर उसके विरोध में खड़े है। हालांकि, इस योजना से पाकिस्तान को अलग करने को लेकर किसी भी देश ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है। ऐसे में इस मामले में भारत और अमेरिका का नाम लेना पाकिस्तान की चालबाजी भी हो सकती है। यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान को खुद ही अब चीन का डर सता रहा हो। खैर जो भी हो, यह तो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि पाकिस्तान अपने ही जाल में फंस गया है और उसकी नीतियां ही अब उसे डूबाने वाली हैं।