हाल ही में फर्जी किसान आंदोलन के प्रमुख स्थलों में से एक कुंडली बॉर्डर से हृदयविदारक तस्वीर देखने को मिली है। एक व्यक्ति (लखबीर सिंह) के मृत शरीर को किसान आंदोलन के मंच के पीछे क्षत-विक्षत अवस्था में लटकाया गया था, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर काफी बवाल मचा और गृह मंत्रालय की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता तक पर प्रश्न उठाए गए, जो कि स्वभाविक थे। परंतु पुलिस की प्रारम्भिक जांच पड़ताल में कुछ अलग ही कहानी निकल कर सामने आई है जो पंजाब के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से पलट कर रख सकती है। दरअसल, निहंग सिखों ने एक दलित सिख की हत्या कर दी है। जिससे किसान आंदोलन की पोल खुल गई है और साथ ही पंजाब की राजनीतिक गलियारों में हलचले भी तेज हो गई है। इस घटना के बाद कथित किसान आंदोलन को स्पॉनशर करने वाली पार्टियों की नींद उड़ गई है, क्योंकि पंजाब की सियासत में अब जातीय समीकरण बदलने वाले हैं।
बैकफुट पर विपक्षी पार्टियां
वो कैसे? जातीय समीकरणों की लड़ाई केवल सनातन धर्म तक ही सीमित नहीं है। सिख धर्म भले ही इस बात को खुलकर न बताए, परंतु उनमें भी जाति को लेकर आए दिन तनातनी होती रहती है। इस समय पंजाब में जट्ट सरदारों का वर्चस्व व्याप्त है और वहां पिछड़े वर्गों के सिखों एवं हिंदुओं के साथ वह आए दिन बदसलूकी करते रहते हैं। वर्तमान फर्जी किसान आंदोलन भी इन्हीं जट्ट सरदारों की देन है। शायद इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था, ताकि पिछड़े वर्गों का साथ भी मिले और सत्ता पर पकड़ भी बनी रहे।
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असल में जिस व्यक्ति का बेरहमी से शोषण करने के बाद निहंग सिखों ने उसके हाथ पैर काटकर पहले मरने के लिए छोड़ा और फिर उसके मृत शरीर को लटकाया, वो अमृतसर के निकट तरन तारन जिले का एक श्रमिक लखबीर सिंह निकला। इसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और ये पूर्व में श्रमिक का काम किया करता था। हालांकि, अभी इस बात पर खुलासा नहीं हो पाया है कि लखबीर को निहंगों ने कुंडली बॉर्डर पर ही मार दिया या उसे पहले कहीं मारा गया और फिर कुंडली बॉर्डर पर उसकी मृत शरीर को लटकाया था। फिलहाल के लिए सरबजीत सिंह नामक एक निहंग ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है।
लेकिन लखबीर सिंह की निर्मम हत्या के बाद पंजाब की राजनीति का अब पूरा खेल पलट चुका है और भाजपा के पास आक्रामक होकर बड़ा दांव खेलने का अवसर है। यह एक ऐसा अवसर भी है, जहां से पार्टी अपने विरुद्ध जा रहे समीकरणों को अपने पाले में ला सकती है। सिंघु, टिकरी और कुंडली बॉर्डर पर जिस प्रकार से फर्जी किसानों ने डेरा डाला है, वो किसी से छुपा नहीं है, और ये भी नहीं छुपा है कि किस प्रकार से किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी तत्वों को कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के संयुक्त नेतृत्व में पंजाब की ओर से बढ़ावा दिया जा रहा था! परंतु लखबीर सिंह की हत्या ने न केवल विपक्ष को बैकफुट पर ला दिया है, अपितु भाजपा को केंद्र और राज्य स्तर पर फ्रंटफुट पर खेलने का एक सुनहरा अवसर भी दे दिया है।
पंजाब में हिंदू 38 और दलित 31 प्रतिशत हैं
भाजपा, पंजाब में अपने भाग्य बदलने को लेकर कितनी गंभीर है, TFI ने अपने कई विश्लेषणों में इस बात को बताया है। TFI की एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के लिए बीजेपी को लेकर स्थिति काफी बदल चुकी है, क्योंकि बीजेपी के लिए पंजाब एक खुला मैदान है। बीजेपी को राज्य में नॉन जाट सिख समेत हिन्दू और पूर्वांचल के प्रवासी लोग बड़ी संख्या में वोट करते हैं। इसके अलावा अब बीजेपी का तीन विरोधियों से भी सामना है। ऐसे में बीजेपी को तीनों के वोट बैंक का अलग-अलग कारणों से एक बड़ा हिस्सा प्राप्त हो सकता है। दूसरी ओर उसे राज्य में एक नया विकल्प होने के साथ ही कांग्रेस की सत्ता विरोधी लहर का भी बड़ा फायदा मिल सकता है। पंजाब में हिन्दू 38 प्रतिशत और दलित सिख 31 प्रतिशत हैं। अगर बीजेपी परंपरागत वोटर बेस के अलावा हिन्दू और दलित सिख को साथ लाने में कामयाब होती है तो उसे बड़ा फायदा मिल सकता है”।
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दूसरी ओर कथित किसान आंदोलन में लखबीर सिंह की हत्या से दो चीजें तो स्पष्ट हो गई– एक तो सिंघु, टिकरी और कुंडली बॉर्डर पर स्थित अराजकतावादी कहीं से भी किसान या निर्दोष व्यक्ति नहीं है, वो गुंडे, लठैतों और आतंकियों का अड्डा है, जो अपनी मनमानी कर रहे हैं और उस क्षेत्र को नारकीय बनाए हुए हैं! इसके अलावा इस घटना से ये भी सुनिश्चित हो गया है कि पिछले कई महीनों से विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हित को साधने के लिए जो छल प्रपंच पंजाब में रच रही थी, वो अब उन्हीं पर भारी पड़ने वाली है।