चारित्रिक दोगलापन और मानसिक दिवालियापन का मानद उदाहरण देखिये। “हम कागज़ नहीं दिखाएंगे लेकिन देशद्रोहियों के फर्जी कागज़ बनवाएंगे” कुछ ऐसा ही अब देखने को मिल रहा है। ज्ञात हो कि दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा पकड़े गए आतंकवादी अशरफ से पूछताछ जारी है, उसके राष्ट्रव्यापी संपर्क इस्लामी आतंकवादियों के sleeper cell के एक बड़े नेटवर्क की ओर संकेत देता है। पूछताछ में अशरफ ने पुलिस को बताया कि किस तरह उसने बांग्लादेश के जरिए भारत में घुसपैठ की और अपने बुरे एजेंडे को चलाने के लिए पूरे देश को खंगाला। अशरफ से पूछताछ के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर स्लीपर सेल के भानुमती पिटारे का खुलासा हुआ।
अशरफ ने खुलासा किया कि वह 2005 में भारत आया था और कुछ समय के लिए बिहार में बस गया था। उसके बिहार प्रवास को नूर आलम नामक एक स्थानीय मुस्लिम का समर्थन प्राप्त था। नूर आलम के एक दोस्त ने अशरफ को किशनगंज जिले में एक सरपंच के माध्यम से डुप्लिकेट भारतीय आईडी कार्ड प्राप्त करने में मदद की। बिहार में अपने मिशन को मजबूत करने में विफल रहने के बाद वह बिहार के पुराने परिचितों के साथ अपने संबंध मजबूत करने के बाद वो अजमेर चला गया। किशनगंज के कुछ और लोगों के संपर्क में आने के बाद अजमेर में अशरफ ने बुरी साजिश को अंजाम देना शुरू कर दिया।
उसने नियमित रूप से अररिया, किशनगंज, सीमांचल और बिहार के प्रमुख जिलों का दौरा किया। बिहार के ये क्षेत्र अवैध बांग्लादेशी आतंकवादियों का समर्थन और घुसपैठ के लिए जाने जाते हैं। उसने गाजियाबाद की एक लड़की से भी शादी की थी, जिसे बाद में उसने छोड़ दिया। अशरफ ने बिहार के आईडी कार्ड का इस्तेमाल कर भारत में खुद को स्थापित किया था। बिहार में बने फर्जी आईडी कार्ड का इस्तेमाल कर अशरफ ने भारत में आईएसआई स्लीपर सेल का नेटवर्क स्थापित करने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा करना शुरू कर दिया। बिहार का किशनगंज उसके संचालन के मुख्य क्षेत्रों में से एक था।
इसके बाद अशरफ ने कुल 5-6 अस्थायी पतों के साथ और आईडी कार्ड बनाए। 2014 में, उसे बिहार के स्थायी पते के आधार पर भारत सरकार से पासपोर्ट मिला। अशरफ ने इस पासपोर्ट का इस्तेमाल पाकिस्तान में अपने आतंकवादी आकाओं द्वारा दिए गए आदेश पर नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात और थाईलैंड जैसे देशों का दौरा करने के लिए किया था।
सीमांचल है आतंकियों का गढ़
यह पहली बार नहीं है जब बिहार का सीमांचल क्षेत्र आतंकवाद के कथित समर्थन के लिए सुर्खियों में रहा है। अवैध मुस्लिम (मुख्य रूप से) प्रवासियों को सिलीगुड़ी सीमा के माध्यम से इस क्षेत्र में प्रवेश मिलता है। इस क्षेत्र में मुस्लिम वोट बैंक के मजबूत होने के कारण, अप्रवासियों को स्थानीय सहानुभूति प्राप्त करने में आसानी होती है। सीमा पार से आने वाले संकेतों पर अपनी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को जारी रखते हुए धीरे-धीरे वे नए वोट बैंक में परिवर्तित हो जाते हैं। यह इलाका अनौपचारिक रूप से मिनी पाकिस्तान के नाम से भी जाना जाता है, जिसके चलते किशनगंज के जिलाधिकारी ने बिहार में चल रहे पंचायत चुनाव में अवैध मतदाताओं पर सख्त कार्रवाई की है।
डुप्लीकेट आईडी कार्ड-एक राष्ट्रीय समस्या
हालांकि, डुप्लीकेट पहचान पत्र का मुद्दा बहुत पुराना है और किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। अवैध पहचान पत्र के खतरे ने मुख्य रूप से उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रभावित किया है जो पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, और पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहां फर्जी आईडी रैकेट ने खुद को मजबूत किया है। इसक कई मामलें हैं।
- जुलाई 2017 में असम में फर्जी वोटर आईडी कार्ड बेचने के आरोप में एक युवक को गिरफ्तार किया गया था।
- मार्च 2018 में, एटीएस पुणे ने एक व्यक्ति को पहचान पत्र बनाने में अवैध बांग्लादेशियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
- दिसंबर 2018 में, पुलिस द्वारा एक और सक्रिय कार्रवाई में पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश सीमा के पास नकली मतदाता पहचान पत्र रैकेट का भंडाफोड किया गया था।
- उसी महीने आप के एक विधायक पर अवैध बांग्लादेशियों को फर्जी वोटर आईडी कार्ड मुहैया कराने का आरोप लगा था।
- नवंबर 2020 में, असम में फर्जी वायु सेना अधिकारी के रूप में प्रस्तुत करने के लिए 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
- फरवरी 2021 में उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले से एक फर्जी कार्ड बनाने वाले को गिरफ्तार किया गया था।
- अगस्त 2021 में, यूपी पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जो कथित रूप से फर्जी पहचान पत्र बनाने के लिए चुनाव आयोग की वेबसाइट को हैक करने की कोशिश कर रहा था।
अगर राष्ट्रविरोधी ताकतें डुप्लीकेट आईडी कार्ड बनाने की हिम्मत करती हैं, और वह भी इतनी आसानी से कि उन्हें पकड़ने में 15 साल तक लग जाते हैं। ऐसे में सीएए, एनआरसी के पीछे का पूरा उद्देश्य कमजोर पड़ सकता है। किसी देश का पहचान पत्र स्वदेशी लोगों को ही दिया जाना चाहिए और राष्ट्रीय पहचान पत्रों की जालसाजी को रोकने के लिए एक सख्त व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।