पेगासस जासूसी याचिका
न्याय का सर्वोच्च सिद्धांत है कि आरोप सिद्धि के पूर्व तक किसी भी आरोपित व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जाएगा। कोर्ट और आमजन से यह भी अपेक्षित रहता है कि मीडिया ट्रायल से प्रभावित ना हो, और पूरी निष्पक्षता, सारे सबूतों और गवाहों के मद्देनजर किसी पर दोष सिद्ध किया जाए। परंतु, राजनीतिक क्षुधा से त्रस्त राजनीतिक दल ऐसा करने से परहेज करते है। आरण्य अग्नि की तरह वह गलत सूचनाओं को प्रचारित-प्रसारित करते हैं। ऐसा करने से जनता में भ्रम व्याप्त होता है। सरकार का चरित्र हनन और मान मर्दन होता है। निर्णय पूर्व ही सरकार सिर्फ आपके निजी विचार के आधार पर दोषी सिद्ध कर दी जाती है। विरोधियों का यही भ्रम जाल और आपका दिग्भ्रमित होना सरकार का मनोबल तोड़ता है। राष्ट्रहित, राष्ट्र सुरक्षा और विकास की किसी भी योजना-परियोजना में राजनीतिक भ्रम दृढ़ इच्छाशक्ति और सरकार के मनोबल का अभाव पैदा कर देता है। यही भ्रम उनके सत्ता की सीढ़ी बनती है।
पेगासस याचिका
पेगासस जासूसी मुद्दे पर भी यही हो रहा है। पेगासस एक जासूसी सॉफ्टवेयर है जिसे भारत ने इजरायली कंपनी एनएसओ से अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर खरीदा था। हाल के दिनों में इसके उपयोग पर हुए विवाद में विभिन्न पत्रकारों वकीलों राजनेताओं और प्रभुत्वशाली लोगों द्वारा यह आरोप लगाया गया कि सरकार इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से उनका फोन टैप करा रही है। यह भी कहा गया कि सरकार सतत रूप से अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के लिए पेगासस के माध्यम से जासूसी को अंजाम दे रही है और राष्ट्रीय सुरक्षा के आवरण में अपनी इस गलती को ढक रही है।
सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न सांसदों, वकीलों और पत्रकारों, जिसमें राज्यसभा के सांसद से लेकर द हिंदू अखबार के संपादक तक शामिल हैं, द्वारा 9 जनहित याचिकाएं दायर की गई । याचिका में पेगासस द्वारा व्यापक पैमाने पर जासूसी को अंजाम देना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया गया। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के भ्रम जाल में व्यक्ति की निजता की स्वतंत्रता पर जघन्य प्रहार कहा गया। याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई कि सरकार को निर्देशित कर पेगासस मुद्दे से जुड़े सभी गोपनीय दस्तावेजों फाइल और कार्यों को सार्वजनिक कर दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस मसले पर राय मांगी। मोदी सरकार ने अपनी सत्यता का प्रमाण देते हुए शपथ पत्र के माध्यम से इन सारे बेबुनियाद आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
उच्चतम न्यायालय का आदेश
सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में सरकार ने अपने विरोधियों के घिनौने आरोपों से मुक्ति हेतु जांच समिति के गठन पर भी कोई आपत्ति नहीं जताई। ऊपर से सरकार ने पारदर्शिता और विरोधियों के प्रोपेगेंडा का पर्दाफाश करने के लिए स्वतंत्र जांच समिति की गठन को अनिवार्य और आवश्यक बताया। ये तो अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं ही अपने आदेश के माध्यम से एक 3 सदस्य समिति की गठन का ऐलान कर दिया जो पेगासस से जुड़े सभी पहलुओं पर 8 सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। यह मामला कितना पारदर्शी और निष्पक्ष है,आप स्वयं ही समझ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशन में समिति के गठन की घोषणा की और एक समयबद्ध अंतराल में रिपोर्ट सौंपने का निर्देशन दिया। ऊपर से इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करेंगे।
इस समिति में रॉ के पूर्व मुखिया और रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर आलोक जोशी भी शामिल होंगे। इसके अलावा एक त्रिस्तरीय तकनीकी टीम भी होगी जो कि इससे जुड़े तकनीकी पहलुओं की जांच करेगी और उस पर अपना राय मशविरा देगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने समिति को यह अधिकार दिया है कि एक पारदर्शी जांच के लिए अगर आवश्यक हो तो किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के सहयोग की मांग कर सकता है और अगर मना करने का कोई आवश्यक कारण ना हो तो ऐसे पदाधिकारियों को सहयोग करना ही होगा। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन को गलत बताया। उन्होंने कहा कि जब तक अत्यंत आवश्यक ना हो और राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु अनिवार्यता के अभाव में नागरिकों के अधिकार से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
पेगासस जासूसी – साच को आंच नहीं
सरकार ने माननीय उच्चतम न्यायालय के किसी भी आदेश और निर्देश को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई बल्कि इस मामले में अपने स्तर पर और अधिक सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई है। सुनने में और समझने में भी यह मामला कितना सरल, सुगम, निश्चल और निष्पक्ष लगता है, परंतु, विपक्षियों का तो मूल काम ही जनता में भ्रम और अविश्वास फैलाना है। पहले पेगासस और उससे जुड़ी जासूसी पर राष्ट्रीय सुरक्षा को दरकिनार करते हुए हल्ला-गुल्ला मचाया। मामले को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा। मोदी सरकार द्वारा संभावित गठित समिति के निष्पक्षता और जांच पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया। भारतीय लोकतंत्र और शासन तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण और निष्पक्ष अंग माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपनी निर्देशन में निष्पक्ष समिति के गठन का आदेश पारित कर विरोधियों के भ्रम जाल को ध्वस्त कर दिया। अब हम इन विरोधियों और वामपंथियों के द्विचित्त प्रवृत्ति से परिचित होने के कारण अपने पाठकगण के लिए एक भविष्यवाणी करते हैं।
TFI कि भविष्यवाणी
भविष्यवाणी यह है कि 8 सप्ताह पश्चात जब यही निष्पक्ष समिति अगर मोदी सरकार पर लगे सारे आरोपों को खारिज करते हुए जांच रिपोर्ट सौंपेगी तब यही लोग माननीय उच्चतम न्यायालय को मोदी सरकार का पिछलग्गू घोषित कर देंगे। यह वही विरोधी और वामपंथी हैं जो अमेरिका द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर प्रिज्म ऑपरेशन के तहत नागरिकों की जासूसी और निजता के हनन को सही ठहराते है। यह वही वामपंथी हैं जो चीन द्वारा अपने नागरिकों के सघन जासूसी को प्रशासनिक कुशलता का आधार बताते हैं। परंतु, भारत द्वारा राष्ट्र विरोधी ताकतों से अपने राष्ट्र की सुरक्षा करने के प्रयासों को यह तथाकथित निजता और स्वतंत्रता के अधिकार से जोड़कर राष्ट्रहित को खतरे में डालने का की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।
यह वामपंथी मीडिया और राष्ट्र विरोध में काम करने वाले तथाकथित प्रभावशाली लोग अपने आचरण और कुकृत्य से भली भांति परिचित हैं। कौन नहीं जानता की पेगासस मुद्दे पर गला फाड़कर चीखने वाली बरखा दत्त कभी नीरा राडिया जैसे दलालों से मिलकर मंत्रालयों और बड़े प्रशासनिक ओहदों पर होने वाली नियुक्तियों को प्रभावित करती थी। कौन नहीं जानता कि ये बड़े-बड़े पत्रकार विदेश में बैठे अपने आकाओं को खुश करने के लिए उनके दिशा निर्देशन पर भारत के अहम पदों पर अपने विचारधारा के व्यक्तियों को सत्तासीन करते थे।
उनके लिए एक प्रभावशाली लॉबी के रूप में कार्य करते हैं। सतत रूप से भारत के राष्ट्रवाद और संस्कृति की कमर तोड़ देते थे। मोदी सरकार ने संयुक्त रुप से इन सारे वैचारिक आतंकवादियों पर करारा प्रहार किया है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। राष्ट्र सुरक्षा सर्वोपरि है क्योंकि आप ही राष्ट्र हैं। आप ही भारत की ईकाई हैं, भारत की नींव है।खैर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के मन के अनुरूप ही फैसला दिया है और इससे मोदी सरकार की बड़ी जीत मानी जानी चाहिए।
यह बड़ी जीत इसलिए भी है क्योंकि अगर मोदी सरकार अपनी द्वारा गठित समिति के माध्यम से जांच कार्यों को पूर्ण करती तो निसंदेह ही यह विपक्षी उसकी निष्पक्षता और निश्छलता पर सवाल उठाते। इससे समय की भी हानि होती और न्याय में भी देरी होती। भारत के गरिमामय संवैधानिक प्रतिष्ठानों की छवि खराब होती और न्याय भी संदेह के घेरे में होता।
राष्ट्र के प्रति आपका उत्तरदायित्व
पाठक गण यह सदैव स्मरण रखें कि आपके अंदर जागृत हो रहे राष्ट्रवाद ने विपक्षियों को ना सिर्फ पराजित किया है अपितु उन्हें अस्तित्वहीन भी कर दिया है। विकास और राष्ट्रवाद की विचारधारा नव उदारवाद और क्रूर वामपंथी सोच पर भारी पड़ी है। आपका देश 1947 में स्वतंत्र हुआ था। परंतु, मोदी सरकार के नेतृत्व में पुनर्जागृत इस प्रखर राष्ट्रवाद से राष्ट्र का सृजन आप 21वीं सदी में कर रहे हैं। अतः विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियां तथाकथित इस्लामिक विद्वान छत में बुद्धिजीवी और राष्ट्र विरोधी संस्थान मिलकर मोदी का मान मर्दन करना चाहते हैं। परंतु, उन्हें नहीं पता की सत्य परेशान हो सकता है परंतु पराजित नहीं। विरोधियों द्वारा सत्य को परेशान करने का एक मानद उदाहरण हम राफेल के मुद्दे से भी समझ सकते हैं जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना में हुए किसी भी भ्रष्टाचार की संभावनाओं को खारिज करते हुए इस पूर्णतः सही ठहराया था लेकिन इस मुकदमे बाजी से जो हमारी छवि बिगड़ी, राष्ट्रीय सुरक्षा में जो देरी हुई उसकी क्षति का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। खैर इस बार उनका जीतना बिल्कुल असंभव है क्योंकि सरकार के सत्यता के पीछे आप खड़े हैं। भारत खड़ा है।