इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर अपने वैचारिक कदम बढ़ा रहे पड़ोसी देश बांग्लादेश में जिस तरह से हिन्दुओं के साथ अत्याचार की पराकाष्ठाएं पार की जा रही हैं, उससे भारत में गहरा आक्रोश है। हिन्दुओं के साथ अत्याचार पर भारत का ये आक्रामक रुख बांग्लादेश के लिए खतरे का सबब है। नतीजा ये कि बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना के सूचना राज्य मंत्री मुराद हसन देश में धर्मनिरपेक्ष संविधान लागू करने की बात करने लगे हैं, जो कि बांग्लादेश की आजादी के बाद 1972 के संविधान की मूल अवधारणा है। उन्होंने ये तक कहा है कि हमारे देश का धर्म इस्लाम नहीं है। वहीं, अब यदि ये प्रस्ताव पारित होता है, तो फिर बांग्लादेश इस्लामिक देश नहीं रह जाएगा, जो कि भारत की कूटनीतिक जीत माना जाएगा।
धर्मनिरपेक्ष बनने वाला है बांग्लादेश
बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरता का उदय पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी के साथ हुआ है। वहीं, हाल ही में जिस तरह से बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ अत्याचार हुए, और दुर्गा पूजा पर हमले किए गए, उसके बाद से बांग्लादेश की वैश्विक आलोचना की जा रही है। ऐसे में अब बांग्लादेश के सूचना राज्य मंत्री मुराद हसन देश में धर्मनिरपेक्ष संविधान लागू करने की बात करने लगे हैं। बांग्लादेश के सूचना राज्य मंत्री मुराद हसन ने कहा है कि ‘बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जो राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान द्वारा प्रस्तावित 1972 के संविधान पर वापस लौटेगा।’ उन्होंने कहा कि ‘देश किसी भी कीमत पर धार्मिक कट्टरपंथियों का अड्डा नहीं हो सकता।’
और पढ़ें- PM मोदी को बांग्लादेशी कट्टरपंथियों को सबक सिखाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे
बांग्लादेश की संसद में 1972 के संविधान को पुनः लागू करने की बात करते हुए मुराद ने कहा, “हमारे शरीर में स्वतंत्रता सेनानियों का खून है। किसी भी कीमत पर हमें 1972 के संविधान की ओर वापस लौटना होगा। मैं बंगबंधु के संविधान पर देश को वापस लाने के लिए संसद में बोलूंगा। अगर कोई नहीं भी बोलेगा, तो भी मुराद संसद में बोलेगा।”
इस्लामिक देश बांग्लादेश के कट्टरता की ओर जाने के मुद्दे पर उन्होंने सर्वाधिक तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि इस्लाम हमारे देश का धर्म है। हम 1972 के संविधान पर वापस जाएंगे। हम प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में उस बिल को संसद में लागू करवाएंगे। बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां हर कोई अपनी आस्था का पालन करेगा।”
1980 में बना था इस्लामिक देश
ध्यान देने वाली बात ये है कि 1980 के दशक के अंत में जनरल एचएम इरशाद के शासनकाल के दौरान एक संवैधानिक संशोधन द्वारा इस्लाम को राज धर्म बनाया गया था। सत्तारूढ़ बांग्लादेशी अवामी लीग को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है, वहीं अब एक नया संशोधन पारित कर देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित करना मुश्किल नहीं होगा। इसके विपरीत संभावनाएं ये भी हैं कि इस प्रस्ताव के पारित होने के बीच देश में इस्लामिक कट्टरता का आतंक भी बढ़ सकता है, जो कि हिन्दुओं के लिए एक चुनौती भी बन सकता है।
भारत ने की थी आलोचना
हाल ही में, बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने आम तौर पर शांत माने जाने वाले क्षेत्र में हिन्दुओं के पवित्र त्योहार दुर्गा पूजा पर हिंसा का तांडव किया था। इस दौरान हिन्दुओं के घर जलाने से लेकर उन्हें मारने की अनेकों खबरें सामने आईं हैं। कथित तौर पर ये हिंसा एक भड़काऊ फेसबुक पोस्ट के बाद हुई थी, लेकिन इस हिंसा के पूर्व नियोजित होने की खबरें भी समाने आती रही हैं। इसको लेकर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची (Arindam Bagchi) ने बांग्लादेश सरकार की आलोचना की थी, साथ ही मामले के दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग भी की थी।
बांग्लादेश में जिस तरह से हिन्दुओं के खिलाफ एक प्रायोजित हिंसा का खेल चल रहा है, उस पर भारत में सीएए की प्रासंगिकता को भी विशेष मजबूती मिली है। वहीं, इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन न केवल भारत अपितु अमेरिका तक में भी हुए हैं, जो कि बांग्लादेश के शेख हसीना प्रशासन पर एक जोरदार सांकेतिक तमाचे का प्रतीक है।
चौतरफा आलोचनाओं के बीच जिस तरह से बांग्लादेश की छवि की धज्जियां उड़ी हैं, उसने वहां के शासनकर्ताओं की हवाइयां उड़ा दी हैं। ऐसे में बांग्लादेश भी हिन्दुओं को परेशान कर भारत की आलोचना और पीएम मोदी के रौद्र रूप का शिकार नहीं होना चाहता है। संभवतः यही कारण है कि भारत के सामने अपनी सकारात्मक छवि बनाने के उद्देश्य से बांग्लादेश की पीएम के मंत्री देश में पुनः 1972 का धर्मनिरपेक्ष मूल संविधान लागू करवाने का प्रस्ताव लाने का ऐलान कर रहे हैं, जो कि भारत की हनक का प्रतीक है।