दुनिया में नवरात्रि जैसा कोई पर्व नहीं, ये भक्ति के साथ नारी शक्ति के सम्मान का पर्व है

Festival Essay in Hindi

साभार: जनसत्ता

एक साल में कुल 4 बार नवरात्र आते हैं, जिनमें से शारदीय और चैत्र नवरात्र का महत्व सबसे अधिक होता है। इस साल शारदीय नवरात्र 7 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं, जो 14 अक्टूबर को खत्म होंगे फिर 15 अक्टूबर को विजय दशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा। हिंदू पांचांग के अनुसार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है, जिसमें 9 दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।

नवरात्र पर्व सही अर्थ में स्त्रीत्व का आनंदोत्सव है। किसी भी समाज में स्त्री के अस्तित्व और उसके सामर्थ्य के प्रति कृतज्ञता को प्रदर्शित करता ऐसा त्योहार देखने को नहीं मिलता। यह त्योहार माँ दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुई लड़ाई से जुड़ा है। इस युद्ध में माँ ने महिषासुर के अन्यायों और अत्याचारों से समस्त सृष्टि और देवताओं की रक्षा की थी। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई का विजयोत्सव है। ये नौ दिन पूरी तरह से दुर्गा और उनके आठ अवतारों के पूजन को समर्पित हैं। प्रत्येक दिन एक अवतार से जुड़ा है। अंतिम दिन दशहरा मनाया जाता है जो रावण पर भगवान राम की जीत का उत्सव है। कहते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम ने भी लंका विजय से पूर्व माँ की आराधना कर आशीर्वाद और अनुमति ली थी। अतः, वो माँ शक्ति के आशीर्वाद के कारण ही जीते। स्त्रीत्व के उत्कर्ष का स्वरूप, माँ के नौ अवतार के माध्यम से पूर्णतः परिलक्षित होता है जो की निम्न है:

उपयुक्त लिखित नवदुर्गा के शक्ति और गुणों का अगर अवलोकन करेंगे तो पाएंगे की सनातन संस्कृति में स्त्री न सिर्फ प्रकृति का अंग है बल्कि शक्ति का एकमात्र स्रोत भी है। नवरात्र इसी नारी शक्ति-स्रोत का पूजन है। शक्ति जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ। शक्ति जो सृष्टि के पालन और अंत के लिए उत्तरदायी है। शक्ति जो संतुलन स्थापित कर अस्तित्व को आधार ही नहीं देती बल्कि अपने अलग-अलग अवतारों से मानवजाति के जीवन का मार्ग भी प्रशस्त करती है। किसी भी धर्म और पौराणिक कथाओं में स्त्री ईश्वर के स्तर तक नहीं पहुंची। हिन्दुत्व ने स्त्री स्वरूप को ईश्वर से भी ऊपर स्थापित किया है और समस्त गुणों, कार्यों, ज्ञान,संतुलन, अध्यात्म, धर्म और साहस का केंद्र बताया है। जो कुछ भी अच्छा है, वो स्त्री से सृजित या निर्मित होता है, ये पर्व इसी की परिकल्पना है। सिर्फ सनातन संस्कृति ही माँ दुर्गा के नौ रूप और उनके अनंत गुणों को आत्मसात करने का उत्सव मानता है, बाकी के धर्मों में आपको ईश्वर का स्त्री रूप तक नहीं देखने को मिलेगा।

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हिन्दू धर्म एकलौता ऐसा धर्म है जिसने स्त्री को पूजनीय बनाया। नवरात्र महिला सशक्तिकरण का प्रमाण नहीं बल्कि स्त्री के स्वयं में शक्ति होने का उल्लास है। फिर, कुछ वामपंथी और तथाकथित उदारवादी अपने देश में स्त्रियों के सामाजिक समस्याओं को आपके धर्म से जोड़कर आपको हिन भावना से ग्रसित करेंगे। उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए फिर हिन्दू ग्रन्थों का पूर्ण अध्ययन कर कोई टिप्पणी देनी चाहिए। सामाजिक समस्या हर धर्म में होती है। हिन्दुत्व में तो यह अन्य धर्मों के अपेक्षाकृत न्यूनतम है। यह समस्याएँ भी समाज सृजित है जिनका समय-समय पर धर्म नें अपने सुधारकों के माध्यम से अंत किया है जैसे सती प्रथा और विधवाविवाह का अंत। अतः, दूसरे धर्म के अनुयायियों और वामपंथियों को अपने कुरीतियों को छिपाते हुए दूसरे के घाव देखने बंद करने चाहिए। परिवर्तन और सुधार जिस धर्म के आधार हों ऐसा समाज सदैव नारी जाति को सर्वोच्च स्थान प्रदान करता रहेगा।

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पूरी दुनिया में 4300 धर्म हैं जिनमें से 75 प्रतिशत से अधिक वैश्विक आबादी हिन्दू, मुस्लिम,ईसाई, बौद्ध और यहूदी धर्म से जुड़े हुए हैं। इन सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे प्राचीन, सार्वभौमिक और विचारधारा के संदर्भ में सबसे व्यापक है। यह समाज के सभी वर्गों के बीच ना सिर्फ समानता स्थापित करता है बल्कि उनका सम्मान और विकास भी सुनिश्चित करता है। अगर हम सभी धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों और उनकी परम्पराओं का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि हिन्दुत्व ने नारी समानता और सम्मान के सिद्धान्त को सही मायने से वास्तविकता में परिवर्तित किया। मजहब के संकीर्ण आवर्तों को तोड़ हिन्दुत्व एक जीवनशैली बना और उसी जीवन शैली के माध्यम से नारी सम्मान और उसके अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को हमारे रुधिर में संचयित कर दिया। इसी जीवनशैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण नवरात्र का पर्व है।

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