अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर का दौरा क्या किया, अलगाववादी नेताओं और परिवारवाद को बढ़ावा दे रही क्षेत्रीय पार्टियों के पेट में तो दर्द ही पैदा हो गया। दर्द भी ऐसा हुआ कि जिस मोर्चे पर सरकार काम कर रही है, उसी मुद्दे पर अब विपक्ष भी बात करने लगा है। प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने जम्मू-कश्मीर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के प्रभाव को देखते हुए फारुख अब्दुल्ला ने कहा, यह समय सही नहीं है कि कश्मीरी पंडित वापस घाटी में आएं। उन्होंने कहा कि घाटी में माहौल “कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए अनुकूल” बिल्कुल नहीं है।
जिस दिन गृहमंत्री अमित शाह अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बाद पहली बार केंद्र शासित प्रदेश के दौरे पर पहुंचे, उसी दिन फारूक अब्दुल्ला का यह बयान सामने आया। उन्होंने कहा कि सरकार अनुच्छेद-370 को दोबारा बहाल करने तक केंद्र शासित प्रदेश में शांति नहीं ला पाएगी। यह अब्दुल्ला की अलगाववादी मानसिकता को दर्शाता है!
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने बीते दिन शनिवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए बीजेपी पर धर्म के आधार पर देश को विभाजित करने का आरोप लगाया। राजौरी जिले के नौशेरा में इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि प्रदेश में न केवल हिंदू, बल्कि मुस्लिम भी आतंकवादियों द्वारा मारे गए हैं।
फारुख अब्दुल्ला ने कहा, “घाटी में हाल की घटनाएं उन लोगों के लिए आंखें खोलने वाली हैं जो कहते थे कि अनुच्छेद-370 को खत्म करने के बाद आतंक का सफाया हो जाएगा।” जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने घाटी में पथराव के लिए 900 से अधिक लोगों को हिरासत में लेने पर विरोध भी जताया।
हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह के प्रयासों की सराहना करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि, “जम्मू और कश्मीर, केंद्र के प्रत्यक्ष शासन के अधीन है और उभरती स्थिति ने उनकी (अमित शाह) यात्रा अनिवार्य थी। वह आए हैं और लोगों को बहुत उम्मीद है कि यह (लक्षित हमले) समाप्त हो जाएगा और वो लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होंगे।”
जम्मू-कश्मीर को 70 साल की जम्हूरियत ने क्या दिया?
वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने इस दौरे पर घाटी के युवाओं से चर्चा की और सकारात्मक मानसिकता स्थापित करने का प्रयास किया है। शाह ने कहा, “यहां मौजूद 45,000 युवाओं को आतंकवाद को खत्म करने के लिए काम करना है, आपको शांति और विकास का दूत बनना है और जम्मू-कश्मीर के युवाओं को यह संदेश देना है कि यह (आतंकवाद) हमारे जीवन को खत्म करने का तरीका नहीं है।”
अमित शाह ने गांधी परिवार, अब्दुल्ला और सैयद पर कटाक्ष करते हुए कहा, “70 साल की जम्हूरियत ने क्या दिया, 87 विधायक, छह सांसद और तीन परिवार? प्रधानमंत्री मोदी ने इतने कम समय में 30,000 प्रतिनिधियों का चुनाव सुनिश्चित किया है। जो लोग शोर कर रहे हैं वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि जम्हूरियत (लोकतंत्र) तीन परिवारों की हिरासत से बाहर आ गया है और अब यह गरीबों के हाथ में है।”
गृहमंत्री ने प्रदेश के आर्थिक विकास को चिन्हित करते हुए पूर्व के सरकारों को कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, “आज किसी अन्य राज्य में इतनी आकर्षक औद्योगिक नीति नहीं है और इसीलिए नई नीति लागू होने के बाद 12,000 करोड़ रुपये का निवेश आया है। यह तब हुआ जब आजादी के बाद के सात दशकों में राज्य को कुल 5,000 करोड़ रुपये मिले थे। मुझे विश्वास है कि 2022 तक राज्य 50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर जाएगा।”
दहशतगर्दी के कारण हो रहे हत्याओं पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए शाह ने कहा कि तीन परिवारों ने 70 साल तक जम्मू-कश्मीर पर शासन किया था। उनके शासनकाल में 40,000 लोग क्यों मारे गए? क्या उन हत्याओं का कोई स्पष्टीकरण है?
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उग्रवादियों को प्रोत्साहन दे रहे हैं अब्दुल्ला!
दूसरी ओर फारुख अब्दुल्ला के बयान के मुताबिक पंडितों के लिए घाटी में स्थिति अनुकूल नहीं है। इन दिनों घाटी में आतंकी घटनाएं भी बढ़ी हैं लेकिन सरकार की ओर से लगातार बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। इस महीने घाटी में अलग-अलग हमलों में दो शिक्षकों, एक फार्मेसी के मालिक और पांच गैर-स्थानीय मजदूर सहित 11 नागरिक मारे गए हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि घाटी में जानबूझकर दहशतगर्दी का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे आने वाले लोग खौफ में रहें।
वहीं, फारुख अबदुल्ला के बयान के बाद ऐसा हो सकता है कि घाटी की मौजूदा स्थिति को बिगाड़ने के लिए आतंकियों द्वारा और प्रयास किये जायें, क्योंकि प्रदेश के एक बड़े नेता ने उग्रवादियों को प्रोत्साहन दे दिया है कि वो अपने काम से कश्मीरी पंडितों के भीतर डर पैदा करने में सफल हो चुके हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही हैं। प्रदेश में आतंक की कमर तोड़ने के लिए सरकार लगातार सख्त कदम उठा रही है और उसका असर भी दिख रहा है।
गौरतलब है कि घाटी में स्थिति तो 1990 से अनुकूल नही रही है। पिछले 1-2 सालों में मोदी सरकार अपने प्रयासों से आतंक का कमर तोड़ने में कामयाब हुई है और स्थिति धीरे-धीरे बेहतर हो रही है। लेकिन राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा उग्रवादियों पर सवाल खड़ा करने की बजाए राज्य की मौजूदा स्थिति पर सवाल खड़ा करना, उनके मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है!
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यह तो सिर्फ ट्रेलर है!
शाह ने जिन मोर्चे पर पूर्व सरकारों और तीन परिवारों को घेरा है, उससे अब्दुल्ला के पेट में दर्द होना जायज ठहराया जा सकता है। सरकार तथ्यों के साथ उनके झूठे आदर्शलोक को तबाह करने के बाद ऐसा कार्य कर चुकी है कि ये परिवार घाटी में अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर खतरा महसूस कर रहे हैं। घाटी में ड्रोन समेत हर उन्नत तकनीक के सहारे सुरक्षा का ध्यान रखा जा रहा है, उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले कुछ ही महिनों में स्थिति काफी बेहतर होने वाली है। सरकार विस्थापित पंडितों की घर वापसी पर विचार कर रही है और जल्द ही इस मसले पर बड़ा फैसला लेने वाली है। खैर फारुख अब्दुल्ला की बातों को नजरअंदाज कर हम केंद्र सरकार के प्रभाव को समझ सकते हैं जिससे यह कहना गलत नहीं होगा कि यह तो सिर्फ ट्रेलर है!