2014 के बाद से कांग्रेस की राजनीति केवल विरोध की ही रही है। ऐसे में कई बार कांग्रेस पार्टी विक्टिम कार्ड खेलने का विफल प्रयास भी करती रही है। इसका एक हालिया उदाहरण उत्तर प्रदेश में सामने आया जब लखीमपुर खीरी की घटना पर राहुल गांधी ने अपनी गिरफ्तारी करवा कर मौके को भुनाना चाहा। हालांकि, अराजकतावादी कांड में हुई मौतों के मुद्दे पर राजनीतिक महत्वकांक्षा लेकर पहुंचे इन कांग्रेसी नेताओं के षड्यंत्र को योगी सरकार ने विफल कर दिया है। पहले बिना अनुमति जिले में घुसने की कोशिश करने को लेकर योगी प्रशासन ने प्रियंका गांधी को कानून के तहत गिरफ्तार करवाया, और फिर उसी अराजकता की मंशा से आने वाले राहुल गांधी के लिए उम्मीदों के विपरीत लखीमपुर खीरी जिले के दरवाजे खोल दिए। राहुल ने सोचा था कि योगी प्रशासन उनके साथ भी सख्ती करेगा, और फिर वीडियो और तस्वीरों के माध्यम से नई राजनीतिक नौटंकी करेंगे किन्तु उनका पूरा राजनीतिक भ्रमण फेल होता दिख रहा है।
लखीमपुर में अराजकतावादी किसान आंदोलन के कारण हुई लोगों की मौत का मुद्दा विधानसभा चुनाव से पहले गिद्ध राजनीति का केंद्र बन गया है। सपा से लेकर यूपी की राजनीति में कल की आई आम आदमी पार्टी के नेता भी लखीमपुर जाने की मांग करने लगे। ऐसे में सबसे आगे कांग्रेस रही। प्रियंका गांधी की रीलॉन्चिंग की कोशिश में कांग्रेस ने उन्हें गिरफ्तार करवाने से भी परहेज नहीं किया। कांग्रेस की सोच थी कि उससे प्रियंका को यूपी की राजनीति में अधिक महत्व मिलेगा, किन्तु प्रियंका की राजनीतिक अपरिपक्वता के कारण उन्होंने ऐसी हरकतें की, कि वो खुद ही कानूनी जाल में फंस गईं। कुछ इसी तरह अब प्रिंयका की भांति योगी प्रशासन ने राहुल गांधी को भी झटका दे दिया, और उम्मीद से विपरीत उन्हें लखीमपुर जाने की इजाजत दे दी।
योगी सरकार का अप्रत्याशित फैसला
लखीमपुर खीरी कांड के संबंध में जिले के भ्रमण के प्रयास से निकली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को योगी सरकार की पुलिस ने धारा 144 के कारण गिरफ्तार किया था, उसे अचानक ही हटा दिया है। योगी प्रशासन के नए आदेश के अनुसार अब लखीमपुर में सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष का कोई भी नेता जा सकता है। ऐसे में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लगा, जो कि अराजकता पैदा करने के उद्देश्य से ही लखीमपुर आने की तैयारी कर रहे थे। अब योगी सरकार ने पासा ही पलट दिया है।
राहुल ने लखनऊ एयरपोर्ट पहुंचते ही बयान देना शुरु कर दिया कि उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा है, यद्यपि उन्हें पता था कि योगी प्रशासन की परमिशन मिलने के बाद उनका ढोल फट गया है। उन्होंने कहा, ‘ये कैसी अनुमति है योगी सरकार की? हमें एयरपोर्ट से बाहर तक नहीं निकलने दिया जा रहा है। इतना ही नहीं सारा मामला खत्म होने के बाद, उन्होंने कारों तक मुद्दा बनाया, और कहा, “हम अपनी कार में (लखीमपुर खीरी) जाना चाहते हैं, लेकिन वे (पुलिस) हमें अपने वाहन में ले जाना चाहते हैं। मैंने उनसे कहा कि मुझे अपने निजी वाहन में जाने दें। वे कुछ योजना बना रहे हैं। मैं यहां बैठा हूं।“
राहुल का प्लान फेल
अपनी बहन प्रियंका की लखीमपुर खीरी कांड में हुई गिरफ्तारी के बाद राहुल गांधी को लगा कि उन्हें भी भ्रमण के कारण राज्य की राजनीति में विशेष महत्व मिल सकता है। अपने लिए भी राजनीतिक संभावनाओं को तलाशते हुए राहुल ने भी लखीमपुर खीरी आने की तैयारी की थी। राहुल गांधी पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के साथ लखनऊ पहुंचे थे। उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें भी प्रियंका गांधी की भांति ही रोका जाएगा, और फिर वो भी राजनीतिक नौटंकी करेंगे, जिससे उन्हें भी मीडिया में अटेंशन मिलेगा, किन्तु योगी प्रशासन ने उनके मंसूबों पर ही पानी फेर दिया।
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राहुल के साथ सभी को लखीमपुर जाने की परमिशन मिल गई है। ऐसे में राहुल गांधी नई नौटंकी करने लगे कि वो अपनी ही गाड़ी से जाएंगे। यही नहीं उन्होंने सुरक्षा कर्मियों को लेकर भी अजीबो-गरीब मांगें की थीं। उनका कहना था कि वो अपनी निजी सुरक्षा के साथ ही जाएंगे। ये सारे मामले ऐसे हैं जो ये संकेत देते हैं कि राहुल गांधी प्रियंका की तरह फुटेज खाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन योगी प्रशासन ने उनके प्लान को ही चौपट कर दिया।
राहुल से लेकर प्रियंका तक की आदत रही हैं कि जहां प्रशासन की अनुमति नहीं होती है, इन दोनों ही राजनेताओं को वहां जाकर राजनीतिक नौटंकी करनी होती है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद की स्थिति हो या फिर गोवा य हाथरस सभी स्थानों के मुद्दों पर जाकर इन दोनों ने अराजकता फैलाई हैं, और राजनीतिक लाभ लेने के प्रयास किए हैं, लेकिन राहुल को योगी प्रशासन ने परमिशन देकर पूरा दांव ही पलट दिया है।
राहुल गांधी को योगी प्रशासन ने सहजता से लखीमपुर जाने क परमिशन देने के साथ-साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सीतापुर से रिहा करा दिया गया। ऐसे में इन दोनों ने वहां जाकर अपनी प्रवृत्ति के आधार पर ही भावनात्मकता का ढोंग किया। देखा जाए तो योगी सरकार इस मुद्दे पर सकारात्मकता से निपटने में कामयाब रही। वहीं राहुल का राजनीति करने का मुख्य मौका भी छीन लिया गया, और कांग्रेस के लिए ये मुद्दा एक बार फिर झटका साबित हुआ।