राजनीति में भाजपा को अछूत कहने वाले आज खुद ही अछूत हो गए हैं। ना तो उनके पास नेतृत्व है, न ही कोई विचारधारा और हाल के दिनों में उन्होंने अपनी प्रासंगिकता भी खो दी है। इस पार्टी का नाम है कांग्रेस। स्थिति अब यह हो गई है कि हाथ को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए हर चुनाव में किसी राजनीतिक “हाथ” की जरूरत पड़ती है। खैर, पतन की अवस्था से गुजर रही भारत की सबसे पुरानी पार्टी जिसके साथ गठबंधन करती है उसे भी पतित करके छोड़ती है। बिहार में लालू के साथ भी यही हुआ। सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ विकसित हुई इस पार्टी ने राजनीति को वंशवाद केंद्रित कर दिया है। 21वीं सदी के भारत में वंशवाद और जातिवाद की राजनीति को भी नकार दिया है। अतः, अब लालू भी अप्रासंगिक हो गए हैं और ऊपर से उनके दोनों बेटों के बीच महाभारत और उनकी अक्षमता ने राजद की नींव ध्वस्त कर दी है।
हाल ही में लालू पटना गए, जहाँ राजद के समर्थकों ने उनका भव्य स्वागत किया। उसी समय उनसे एक रिपोर्टर ने चरण दास के द्वारा दिए गए बयान के संदर्भ में एक सवाल पूछ लिया। चरण दास ने कहा था कि, “जदयू के दोनों विधायकों के निधन के बाद होने वाले उपचुनाव में राजद कांग्रेस को 1 सीट जरूर देगी और गठबंधन बरकरार रहेगा।”
बिहार में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव से पहले विपक्ष में दरार रविवार को और बढ़ गई जब राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने दावा किया कि चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाएगी।
कुशेश्वर स्थान और तारापुर सीटों पर 30 अक्टूबर को उपचुनाव होने हैं। ये सीटें जद (यू) के दोनों मौजूदा विधायकों के निधन के बाद खाली हुई थीं।
राजद और कांग्रेस ने गठबंधन के हिस्से के रूप में 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़े थे और सीट-साझाकरण समझौते के हिस्से के रूप में कांग्रेस ने कुशेश्वर स्थान से चुनाव लड़ा था और 7,200 मतों से हार गई थी।
हालांकि, इस बार राजद ने कांग्रेस को यहां उपचुनाव लड़ने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
रविवार को लालू ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमें सीट कांग्रेस को क्यों देनी चाहिए? ताकि वे हार जाएं? तो वे अपनी जमानत राशि खो देंगे?’ राजद प्रमुख कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास के एक बयान पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने पहले कहा था कि दोनों दलों के बीच गठबंधन बरकरार रहेगा अगर राजद ने कांग्रेस के लिए एक सीट रिजर्व रखी।
इससे पहले सप्ताह में राजद के मनोज झा ने कहा था कि दास “अपने ड्राइंग रूम से व्याख्यान” दे रहे थे। शुक्रवार को नव-नियुक्त कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार से इसपर तीखी प्रतिक्रिया मिली।”
कन्हैया ने कहा- “अगर भक्त चरण दास जैसे लोग पार्टी में नहीं होते तो जिग्नेश और मैं कांग्रेस में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ड्राइंग रूम में अपने स्वामी से पूछें कि भक्त चरण दास कौन हैं।”
शनिवार को कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह से मुलाकात के बाद जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने भी लालू पर निशाना साधते हुए राजद को “भाजपा की बी-टीम” करार दिया था।
हालांकि, लालू ने रविवार को इस आरोप का उपहास उड़ाया कि राजद भाजपा के साथ सांठगांठ कर रहा है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी पटना में एक महीने बिताने की योजना है और अपने बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के बीच असहमति की खबरों को यह कहते हुए खारिज कर दिया, “कोई गुस्सा नहीं है। दोनों मेरे बेटे हैं।”
राजद हार रहा है और अब वो डूबते नाव के पर सवार होने के मूड में तो बिल्कुल नहीं है। इस कड़ी में अपने स्वयं के अंतर्कलह से जूझ रही राजद कांग्रेस के साथ अपना नाम तक नहीं जोड़ना चाहती। भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व ने मामले को और पेचीदा बना दिया है। इस उपचुनाव में दोनों कि हार तय है। भाजपा को भी अब कमान जदयू से खुद के हाथों में लेना चाहिए।