एक कहावत है, “जब मालिक नहीं बोलता तब स्वान भौंकता है।” स्वान तब भौंकता है, जब मालिक परेशानी में होता है या परेशान होने वाला होता है। वैश्वीकरण के इस दाैर में ऐसे स्वानों को हम मुखपत्र की संज्ञा देते है। पत्रकारिता का आवरण ओढ़े ये मुखपत्र अपने राष्ट्र शासकों को मनोभावों, दुराग्रहों, भय, समस्याओं और विचारों के संवाहक होते है। चीन के पास भी ऐसा ही एक स्वान है जिसका नाम है “ग्लोबल टाइम्स”! अपने अर्थतंत्र को शोषण और साम्राज्यवादी सपने का आधार बनाए चीन और उसके व्यापार को भारत की राष्ट्रवादी राजनीति और राष्ट्रभक्ति से करारा झटका लगा है।
दिवाली पर दिखाई राष्ट्रभक्ति
राष्ट्रवाद के रस में डूबे भारतीयों ने इस दिवाली चीनी सामानों का बहिष्कार करते हुए लोकल फॉर वोकल पर फोकस किया। जिससे आत्मनिर्भर भारत के अभियान को बढ़ावा मिला है। प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के नेतृत्व में “आत्मनिर्भर भारत“ ने और गति पकड़ी है, जिससे चीन तिलमिलाए हुए है। ताज़ा झटका उसे दीवाली में होने वाले व्यापार के परिप्रेक्ष्य में लगा है। CAIT की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बार दिवाली में ऐतिहासिक खरीददारी हुई है, जो विगत 10 सालों में सर्वाधिक है और सबसे बड़ी बात कि इस बार भारतीयों ने चीन का कोई पर्याय नहीं ढूंढा है, बल्कि स्वयं स्वावलंबी हुए है। इन आंकड़ों और भारतीयों के राष्ट्रभक्ति ने चीनी अर्थतंत्र की अक्ल ठिकाने लगा दी है।
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आत्मनिर्भरता से घबराया चीन
चीन अब अपने स्वान अर्थात् ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से भारत और चीन के बीच होने वाले व्यापार की दुहाई देने लगा है! ग्लोबल टाइम्स के लेख के अनुसार पर्यवेक्षकों ने अनुमान लगाया था कि दोनों देशों के बीच ठंडे राजनीतिक और राजनयिक संबंधों के बावजूद चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2021 में 100 अरब डॉलर के मील के पत्थर को पार कर सकता है। चीन के सीमा शुल्क के नवीनतम व्यापार आंकड़ों से पता चला है कि नया रिकॉर्ड अक्टूबर में ही प्राप्त कर लिया गया था, क्योंकि साल के पहले 10 महीनों में दोतरफा व्यापार कुल 102.29 अरब डॉलर था, जो साल-दर-साल 47.8 प्रतिशत बढ़ गया था।
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि “अनिच्छा के बावजूद भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखला में गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसमें चीन केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। कई भारतीय निर्यात-उन्मुख व्यवसाय चीन से कच्चे माल पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, जैसे कि थोक दवा रसायन, फोटोवोल्टिक मॉड्यूल और कच्चे रेशम। COVID-19 ने दोनों देशों के बीच व्यापार वृद्धि को बढ़ावा दिया। भारत महामारी की चपेट में था, जबकि चीन प्रभावी महामारी नियंत्रण के कारण वैश्विक औद्योगिक श्रृंखला में तेजी से आगे बढ़ा। चीन द्वारा वर्ष की पहली छमाही में भारत से लौह अयस्क और अन्य सामग्रियों के बढ़े हुए आयात ने भी व्यापार वृद्धि में योगदान दिया है।”
Made in India से डरा चीन
इतना ही नहीं ग्लोबल टाइम्स ने आगे कहा कि मोदी सरकार कई सालों से अपने मेड इन इंडिया अभियान को बढ़ावा दे रही है, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई है। नई दिल्ली का तथाकथित आर्थिक विघटन दृष्टिकोण निरर्थक साबित हुआ है। इसके विपरीत चीनी बाजार ने भारतीय कंपनियों सहित दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल रखे हैं। चीन जैसी विशाल अर्थव्यवस्था के साथ आर्थिक सहयोग और साझेदारी के गुण सभी के लिए स्पष्ट हैं। लेकिन नई दिल्ली द्वारा बनाई गई नीतियां भारतीय घरेलू उत्पादन क्षमता के निर्माण में मददगार नहीं हैं, और नीतियां गंभीर नकारात्मक दुष्प्रभाव भी पैदा करेंगी, जो संभवत: दक्षिण एशियाई देश के दीर्घकालिक विकास को प्रभावित कर रही हैं। हालांकि, नई दिल्ली बाइडेन प्रशासन के भविष्य के विकास की कीमत पर चीन के साथ भू-राजनीतिक खेल खेलने में लिप्त है।
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निष्कर्ष
चीन और भारत के बीच अत्यंत व्यापार असंतुलन है, इस व्यापार में चीन ज्यादा मुनाफा कमाता है। चीन जितना माल हमें बेंचता है, उससे कम ही माल हम उसे बेच पाते है। दूसरी ओर भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत के साथ किसी भी प्रकार का व्यापारिक भेदभाव किसी देश की कमर तोड़ सकता है। चीन की निरंकुश आर्थिक नीति से विश्व का भी मोहभंग हो गया है। एप्पल समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आने से अब देश, विश्व का कारखाना बन रहा है। ऊपर से भारतीयों की आत्मनिर्भरता और चीनी सामानों के बहिष्कार की नीति ने चीनी अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी है। ग्लोबल टाइम्स का यह लेख चीन की इसी छटपटाहट को प्रदर्शित कर रहा है।