अगर एक व्यक्ति ने एक हत्या को अपनी आंखों से देखा है और वह जानता है कि खूनी कैसा दिखता था, लेकिन समस्या यह है कि वह व्यक्ति वामपंथियों का चेला है और wokeism उसके रग-रग में बसा है! वो सैकड़ों साल बाद उठा है ताकि समाज को पुनः पुनर्जागरण तक का राश्ता दिखा सके। अब अगर वो हत्यारे के पहचान के रूप में यह बताए कि मारने वाला व्यक्ति मनुष्य था, तो आप क्या कहेंगे! बाकी वो कुछ बोल नहीं सकता, क्योंकि संज्ञानात्मक चीजें उसकी इलेक्ट्रॉन से भी छोटे दिमाग और कुत्सित विचारधारा से मेल नहीं खाती। वो हत्यारे को काला नहीं बता सकता, क्योंकि वह रंगभेदी होगा, फिर बॉडी शेमिंग और तमाम चीजें तो हैं ही!
दो बड़ी योजनाएं पोस्ट मॉडर्निज़्म और पोस्ट ट्रुथ के बुरी तरह से फेल हो जाने के बाद अब wokeism का नया हथियार आपके सामने है। आपके सामने पेश किए गए इस नए वामपंथी हथियार को इस बार किताबों के सहारे आपके घर में लाया जा रहा था। वो तो सही समय पर विरोध करने के कारण वामपंथियों का यह खेल शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया। अब खिसियानी बिल्ली खंभा तो नोचेगी ही, इसलिए अब वामपंथियों द्वारा हिन्दू समाज को ट्रांसफोबिक बताए जाने की कोशिश शुरू हो गई है।
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वामपंथियों का नया ड्रामा!
वामपंथियों का NCERT के अधिग्रहण का एजेंडा विफल हो गया है, इसलिए अब वे ट्रांसफोबिया का आरोप लगा रहे हैं। हाल ही में वामपंथियों ने नए NCERT मैनुअल के माध्यम से भारतीय स्कूलों में अमेरिकी लिंग अध्ययन तमाशा शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन भारतीयों के जागृत आक्रोश के कारण वामपंथियों द्वारा NCERT का सक्रिय अधिग्रहण सफल नहीं हो सका। जैसे ही Wokeism का तख्तापलट विफल हुआ, वामपंथियों ने भारतीयों पर ट्रांसफोबिया का आरोप लगाकर पीड़ित कार्ड खेलना शुरू कर दिया है।
भारतीयों को अपमानित करने के नवीनतम प्रयास में वामपंथियों ने भारतीयों के लिए ट्रांसफोबिया नामक एक नया शब्दजाल पेश किया है। यह इस्लामोफोबिया, होमोफोबिया आदि जैसे शब्दों की एक श्रृंखला में है, जिसका इस्तेमाल तब होता है, जब वामपंथी सार्वजनिक बहस हारने पर अपने अलगोरिद्म से बाहर हो जाते हैं।
@YearOfTheKraken नामक एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने उस व्यक्ति को बेनकाब किया है,जिसने NCERT के वोक मैनुअल को डिजाइन करने में मदद की थी। क्रैकेन पर दलित हैंडल (@DalitCamera) ने बॉडी शेमिंग करने और विचाराधीन कार्यकर्ता विक्रमादित्य सहाय को ट्रोल करने का आरोप लगाया है।
A twitter handle going by the name @YearOfTheKraken has launched a brutal transphobic attack on trans-activist Vqueeram Aditya Sahai. Zero’s attack involves body-shaming and trolling Vqueeram’s politics against caste and gender-based violence. pic.twitter.com/gbVHFhYzIr
— Dalit Camera (@DalitCamera) November 4, 2021
दलित हैंडल ने सुझाव दिया कि सोशल मीडिया पर किसी की विकृतता पर सवाल उठाना ब्राह्मणवादी आक्रामकता है। हालांकि, उन्होंने कभी इस शब्द को परिभाषित नहीं किया। इस ट्वीट में देश के लोगों पर हिंदू फोबिक और ब्राह्मण फोबिक होने का आरोप लगाया गया और कहा गया कि ट्रांस पर्सन को हिंदू समाज में व्यवस्थित बहिष्कार का सामना करना पड़ा है।
We reject Brahminism. Transpersons historically face violence, shaming and exclusion in public spaces. Social media is not void of such caste Hindu aggression. Hindus may well reduce themselves to their oppressive caste-gender identity.
— Dalit Camera (@DalitCamera) November 4, 2021
उसी तरह ज्योत्सना सिद्धार्थ ने भी @YearOfTheKraken को टैग किया और हैंडल पर सवालों की झड़ी लगा दी। ज्योत्सना, जो अपनी पहचान पर स्पष्ट नहीं हैं (क्योंकि उसका ट्विटर बायो उनके लिए दो सर्वनाम सुझाता है -She, They) ने क्रैकन का हवाला देते हुए लोगों को ‘सूचित’ किया कि कोई भी किसी के लिंग, पेशे या धर्म का फैसला नहीं कर सकता है।
These are the gatekeepers of Hinduism who will run a litmus test on who's a Hindu, man, woman, teacher because he is running the society apparently. He gets to decide who is a Hindu or not! https://t.co/DzRleFl88x
— Jyotsna Siddharth (She/They) (@Jyotsnasmailbox) November 4, 2021
ज्योत्सना ने अपने ट्वीट में पुरुषों द्वारा ट्रांस लोगों के प्रति नफरत का आरोप लगाया है और सीधे तौर पर पुरुषों को उनकी कामुकता और अपनी मर्दानगी के खुले आलिंगन के लिए कलंकित करने की कोशिश भी है!
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This is the internalised transphobia of straight cis men who cannot accept their twisted attraction towards trans people. They keep finding new ways to show the world how 'manly' they are. Trans people's lives is however not for the appeasement of cis men- please understand that!
— Jyotsna Siddharth (She/They) (@Jyotsnasmailbox) November 4, 2021
एनसीईआरटी का वामपंथी झुकाव
हाल ही में TFI ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि एनसीईआरटी छात्रों को लिंग पहचान, लिंग असंगति, लिंग डिस्फोरिया, लिंग पुष्टि, लिंग अभिव्यक्ति, लिंग अनुरूपता, लिंग भिन्नता, विषमलैंगिकता, समलैंगिकता, अलैंगिकता, उभयलिंगीता के सिद्धांतों में प्रशिक्षित करने के लिए एक विचित्र दिशानिर्देश के साथ आया था। यह अमेरिका में वोक मैनुअल से सीधा आयात किया गया था। जनता द्वारा आलोचना किए जाने के बाद, NCERT ने इस मैनुअल को वापस ले लिया।
समाज को नष्ट करना चाहते हैं वामपंथी!
वामपंथ मूल रूप से मानव सभ्यता में निहित किसी भी चीज को दूर करना चाहता है। नर और मादा दो लिंग हैं, जिनके आधार पर मानव समाज का निर्माण होता है। वास्तव में महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता देना किसी भी सभ्य समाज के मुख्य बिंदुओं में से एक रहा है। 99 प्रतिशत से अधिक मनुष्य नर और मादा के अंतर्गत आते हैं, जबकि बहुत कम मात्रा में मनुष्य इसके बाहर आते हैं। ऐसे लोगों को समाज में उनका उचित स्थान मिलना चाहिए, लेकिन इन ट्रांस लोगों का उचित स्थान बहुमत की सहमति पर आधारित होना चाहिए, न कि किसी ऐसे कार्यकर्ता द्वारा नैतिक दबाव पर जो केवल लोकप्रियता पाने के लिए यह लड़ाई लड़ने की नौटंकी करता है।
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असली ट्रांसजेंडरों की परवाह नहीं करते
जो लोग नैतिक रूप से खुद को श्रेष्ठ महसूस करते हैं, उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है और हास्यास्पद रुप से यह सुनिश्चित करने की कोशिश की हैं कि देश के लगभग 1.4 अरब लोगों को अपने जीवन जीने का तरीका बदलना चाहिए, क्योंकि वो स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट, वैचारिक, मानव-विरोधी और विज्ञान विरोधी हैं। असली ट्रांसजेंडरों को इन नकली लोगों के खिलाफ सामने आना चाहिए और उनकी सक्रियता की निंदा करनी चाहिए।
बताते चलें कि वामपंथी हारने वाले और अक्सर पीठ दिखाने वाले होते हैं! जब वे जीतते हैं, तो वे एक नैतिक जीत का दावा करते हैं, जब वे हार जाते हैं, तो वे जीतने वाले को नैतिक रूप से ब्लैकमेल करने की कोशिश करते हैं, ताकि सामने वाले को जीतने के लिए भी शर्म महसूस हो। वे किसी की आलोचना करने और उसके प्रति फ़ोबिक होने के बीच के अंतर को भूल गए हैं। उन्हें भारतीय सार्वजनिक स्थान से बाहर फेंकना समय की आवश्यकता है, क्योंकि उनके पांच सितारा शैम्पेन सी हिलती हुई सक्रियता ने उन लोगों को चोट पहुंचाई है, जिन्हें वे पीड़ित के रूप में चित्रित करने का प्रयास करते हैं।
वामपंथियों ने एजेंडा तो सही सेट किया गया था, लेकिन उन्हें स्वीकार्यता और जबरदस्ती पहचान थोपने के अंतर को समझना होगा। प्रो चॉइस लॉबी की एक कमजोरी है और वह यह है कि उसके तर्क के आधार एकदम कमजोर है। वो इसलिए अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं, क्योंकि पोस्ट मॉडर्निज़्म और पोस्ट ट्रुथ के मायाजाल में हिप्पी संस्कृति थोपने के लिए बहुत जगहों से उन्हें समर्थन मिल जाता है। खैर धीरे धीरे ही सही, लेकिन देश की जागरुक जनता ने ऐसे लोगों का इलाज शुरू कर दिया है!
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