देश में मोदी सरकार ने कई ऐसे आकस्मिक निर्णय लिए हैं, जिसने देशवासियों को आश्चर्य चकित किया है। तो वहीं विपक्षी पार्टियों की ओर से कई तरह के सवाल भी उठे हैं। नोटबंदी का फैसला और पाकिस्तान को सबक सिखाने हेतु सर्जिकल स्ट्राइक भी इसी सूची में शामिल है। अब इसी बीच मोदी सरकार ने आकस्मिक निर्णय लेते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कही है। बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल को वापस लेने की घोषण की, लेकिन उसके बाद भी तथाकथित किसान नेता आंदोलन खत्म करने का नाम नहीं ले रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता और प्रवक्ता राकेश टिकैत ने पत्रकार अजीत अंजुम को दिए इंटरव्यू में मोदी सरकार के इस फैसले और किसान आंदोलन को लेकर कई तरह की बातें कही है।
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सदमे में हैं राकेश टिकैत!
राकेश टिकैत ने इंटरव्यू में कहा कि वो प्रधानमंत्री के इस ऐलान का स्वागत करते हैं, पर संसद में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने वाला कानून पारित होने तक विरोध जारी रहेगा। उन्होंने कहा, “किसानों को प्रभावित करने वाले अन्य मुद्दों को देखने के लिए एक समिति का गठन किया जाना चाहिए। तभी किसान प्रदर्शनकारी घर वापस जाने के बारे में सोच सकते हैं।”
पत्रकार अजीत अंजुम से बात करते हुए वो सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले पर हैरान दिखाई दिए। केंद्र सरकार ने किसानों की मांग को पूरी करते हुए कृषि कानूनों को वापस ले लिया, इसके बावजूद किसानों के विरोध प्रदर्शन को जारी रखने की आवश्यकता के बारे में पूछे जाने पर राकेश टिकैत ने कहा, “चूंकि वह (पीएम) पीछे हटे हैं, मुझे यकीन है कि उनके मन में कोई और एक योजना है।”
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि राकेश टिकैत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मोदी सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए हैं। सरकार द्वारा कदम पीछे खींचने के बावजूद टिकैत का कहना है कि वो 29 नवंबर को संसद तक ट्रैक्टर मार्च करेंगे। पत्रकार अजीत अंजुम से इंटरव्यू में राकेश टिकैत ने स्पष्ट किया कि “मोदी इतना झुके है, तो जरूर कुछ बड़ा करने की सोच रहे है।”
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वास्तव में किसानों के लाभ में थे कृषि कानून
गौरतलब है कि 19 नवंबर, सुबह 9 बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए “छोटे किसानों के लाभ के लिए पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की।” हालांकि, सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों के लिए यह फैसला एक झटके जैसा था, क्योंकि किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी। लेकिन किसान आंदोलन में देश को तोड़ने की कोशिश करने वाले खालिस्तानियों और अन्य देश विरोधी संगठनों की संलिप्तता को भांपते मोदी सरकार ने यह फैसला लिया और किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील की। उन्होंने कहा, “सरकार ने उचित विचार–विमर्श के बाद कानून पेश किया था, लेकिन शायद यह सरकार की कमी थी कि वो सभी किसानों को यह नहीं समझा सकी कि कानून वास्तव में उनके लाभ में थे।”
बताते चलें कि किसानों को इस कानून से एक नया विकल्प मिला था। जहां उन्हें APMC (कृषि उपज बाजार समिति) बाजार के बाहर अपनी उपज बेचने की आजादी थी। किसान अपनी उपज राज्य के भीतर या देश में कहीं भी बेच सकते थे और इस प्रकार के व्यापार पर कोई प्रतिबंध भी नहीं होता। इससे किसानों को लाभ होता और वो कहीं भी अधिक कीमत प्राप्त करते। एपीएमसी मंडी के बाहर व्यापार क्षेत्र में किसानों की कृषि उपज खरीदने के लिए व्यापारियों को किसी भी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि पैन कार्ड या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य दस्तावेज रखने वाले भी इस व्यापार में शामिल हो सकते थे। ऐसी तमाम चीजें थी, जिसका लाभ किसानों को मिलना शुरू हो गया था, लेकिन अब पूंजीपति किसानों की हठधर्मिता के कारण सबकुछ तबाह हो गया है।
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अय्याशी का अड्डा बन गया है किसान आंदोलन
कृषि कानून के निरस्त होने के बाद अब राजनीतिक गलियारों से मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। केंद्र सरकार और किसान प्रदर्शनकारियों के बीच विवाद की हड्डी रहे तीन कृषि कानूनों को निरस्त होने के बाद अब किसान यह मांग उठा रहें है कि सरकार कुछ और व्यापक मुद्दे पर किसानों के साथ बातचीत करे। गौरतलब है कि 26 नवंबर, 2020 से सैकड़ों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं को घेर रखा है। लोगों की परेशानियां के साथ ही किसान आंदोलन स्थल से रेप और हत्याएं जैसी खबरें भी सामने आई है। कई किसान नेताओं ने तो यह भी आरोप लगाया है कि किसान आंदोलन अय्याशी का अड्डा बन गया है! अब केंद्र सरकार के फैसले के बावजूद यह तथाकथित किसान आंदोलन खत्म करने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों को यह आभास हो रहा है कि किसान बिल को निरस्त करने के पीछे मोदी सरकार की मंशा कुछ और ही है। वे सदमे में हैं कि कहीं मोदी सरकार कुछ बड़ा तो नहीं करने वाली है!