‘मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फ़ेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने, जिस पर जावें वीर अनेक!’
नमन है उन वीरों को, जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, ताकि हम अपने आज को संवार सकें. नमन है उन शूरवीरों को, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, ताकि हमारी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहे. परन्तु ऐसे बहुत कम व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल अपना सर्वस्व अर्पण किया, अपितु काल और अन्याय को भी चुनौती देते हुए अपनी अलग पहचान बनाई, और ऐसे ही एक परमवीर थे हवलदार मेजर [सेवानिर्वृत्त] निहाल सिंह यादव, जिन्होंने रेजांग ला की माटी पर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया और चीन के चंगुल से अपने आप को मुक्त करा कर वापस लौटे.
साल 1962 में, जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था, तब स्थिति एकदम विकट थी. चीन ने त्राहिमाम मचा दिया था और जहां भी वह आक्रमण करते, वहां भारतीय सेना का ‘आवभगत’ चीन अत्याधुनिक हथियारों के साथ करता. स्थिति कितनी दयनीय थी, इसका अंदाज़ा आप बुम ला के युद्ध से लगा सकते हैं, जहां सैकड़ों चीनियों का सामना करने के लिए 1 सिख रेजिमेंट के 21 सैनिकों के पास .303 एनफील्ड राइफल्स, कुछ मॉर्टर और चन्द लाईट मशीन गन के अलावा कोई सहायता उपलब्ध नहीं थी. सहायता छोडिये, उन जवानों के पास मौसम के अनुरुप पहनने के लिए ढंग के कपडे भी नहीं थे.
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कुमाऊं रेजिमेंट ने चीनियों को सिखाया था सबक
कुछ ऐसी ही स्थिति 13 कुमाऊं रेजिमेंट के चार्ली कम्पनी के जवानों की थी, जिनका नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह भाटी, जो एक कुशल फुटबॉलर भी थे और राष्ट्रीय स्तर पर डूरंड कप तक खेल चुके थे. उनके जवानों को सीधा बारामुला से चुशूल भेजा गया, जहां पर तापमान माइनस 10 डिग्री से भी नीचे जाता था, और उनके पास सर्दी से बचने के लिए पर्याप्त कपडे नहीं थे. लेकिन हरियाणा के रेवाड़ी से आये चार्ली कम्पनी के 123 अन्य जवानों एवं JCO को इस बात से कोई समस्या नहीं थी. उन्हें बस प्रतीक्षा थी कि कब शत्रु आये और कब वो अपने साथियों के बलिदान का प्रतिशोध ले सकें. लद्दाख की हाड़ कंपकंपाती सर्दी भी उन वीर अहिरों के जोश को डिगा न पाई.
फिर आया 18 नवंबर 1962 का सवेरा. ऑब्जरवेशन पोस्ट पर लगे नायब सूबेदार हरी राम ने कुछ चीनियों को अपनी ओर आते हुए देखा. हालांकि, वे पांच से दस लोग ही थे, परंतु कोई भी ज़ोखिम उठाने को तैयार नहीं था. प्रारंभिक आक्रमण को चार्ली कंपनी ने धाराशायी करने में कोई देर नहीं लगाई. इसके पश्चात दो प्लाटून पर एक साथ आक्रमण किया गया, परंतु कंपनी के वीर जवानों ने उस आक्रमण को भी धाराशायी कर दिया.
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तत्कालीन ब्रिगेड कमांडर और बाद में देश के सेनाध्यक्ष, तपीश्वर नारायण रैना अपने संस्मरणों में बताते हैं कि इसके बाद जो तांडव प्रारंभ हुआ है, उसका शब्दों में विवरण अपर्याप्त है. चीन ने हर प्रकार के मॉर्टर दागना प्रारंभ किया और आर्टिलरी फायर किया सो अलग. जब महीनों बाद एक सर्च पार्टी तत्कालीन ब्रिगेडियर टी एन रैना के नेतृत्व में रेजांग ला पहुंची थी, तो उन्होंने पाया था कि जो टिन शेड थे, उसके परखच्चे उड़ चुके थे और जो बांस की बल्लियां उनके सपोर्ट के लिए लगी थी, वो माचिस की तीली के सामान हो गई थी.
परंतु, एक भी सैनिक टस से मस नहीं हुआ. स्वयं मेजर शैतान सिंह भीषण गोलाबारी में घायल होने के बाद भी एक बंकर से दूसरे बंकर में जवानों का हौसला बढाने में लगे हुए थे. इतने में एक HMG यानी हेवी मशीन गन बर्स्ट में वो शहीद हो गए. क्रोध में कम्पनी हवलदार मेजर हरफूल सिंह ने उस चीनी सैनिक को गोलियों से भून दिया, परन्तु एक जवाबी शेल में वो भी वीरगति को प्राप्त हुए.
3000 चीनी सैनिकों पर भारी पड़े थे 125 शूरवीर
तो निहाल सिंह इस बीच क्या कर रहे थे? वो कम्पनी के लाईट मशीन गन पोस्ट को संभाल रहे थे. उनके हाथों के बीच से गोलियां आर पार निकल गई, परन्तु उन्होंने गोलियां चलाना नहीं छोड़ा. अंत में जब गोलियां ख़त्म हो गई, तब उन्होंने किसी भांति उस गन को ध्वस्त किया, ताकि वो शत्रु के हाथ में न पड़े. कुछ समय बाद घायल निहाल को चीनी सैनिक उठा के पोस्ट से घसीटते हुए ले गए.
रेजांग ला के युद्ध में भले ही भारतीय सैनिकों का नाश हुआ, परन्तु चीन का एक भी सैनिक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका. केवल 125 शूरवीरों ने 3000 चीनी सैनिकों को दिन में तारे दिखा दिए थे. स्वयं निहाल सिंह बताते हैं कि ट्रकों में भर-भर कर चीनियों को लाशें ले जानी पड़ी थी. आज तक चीनी सेना ने अपने मृतकों के आंकड़े सार्वजानिक नहीं किये हैं, परन्तु ऐसा माना जाता है कि 1500 से 2000 चीनी सैनिकों को भारतीय शूरवीरों ने धाराशायी कर दिए थे.
परन्तु ये कहानी वहीं पर नहीं ख़त्म हुई. निहाल सिंह को चीनी सेना की कस्टडी में रखा गया, जहां उन्हें काफी यातनाएं दी गई, परन्तु वो तनिक भी नहीं डिगे. रात के समय हर बाधा को पार करते हुए निहाल सिंह चीनी सैनिकों के चंगुल से भाग निकले और वो तब तक नहीं रुके, जब तक वो सकुशल भारत नहीं पहुंच गए. निहाल सिंह को उनकी सेवा के लिए सेना मैडल से सम्मानित किया गया और वो नायब सूबेदार के मानद पद पर सेवानिर्वृत्त हुए. धन्य है ये भूमि, जिसपर ऐसे वीरों ने जन्म लिया!