भारतीय अर्थव्यवस्था स्वतंत्रता के बाद पहली बार अपने विकास के स्वर्ण काल की ओर आगे बढ़ रही है। डिजिटलीकरण व डिजिटल लेनदेन बढ़ रहा है, स्टॉक मार्केट में उछाल जारी है, निर्यात ऐतिहासिक रूप से वृद्धि कर रहा है, विश्व भर के आर्थिक विश्लेषक व संस्थाएं यह अनुमान लगा रही हैं कि भारत अगले एक दशक तक इसी तेजी से आगे बढ़ेगा। ऐसे में यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने का सुनहरा अवसर है। यही कारण है कि भारत ने अपनी इज ऑफ डूइंग बिजनेस को और बेहतर करने के लिए लाइसेंस प्राप्ति एवं रिन्यूअल में होली वाली कठिनाइयों को कम करने का निर्णय किया है। साथ ही कमर्शियल विवादों को कोर्ट के बजाए आपसी बातचीत से सुलझाने के लिए एक मैकेनिज्म तैयार किया जा रहा है।
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पीयूष गोयल का बड़ा ऐलान
हाल ही में वाणिज्य उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि “सरकार कंपनियों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले नवीनीकरण (रिन्यूअल लाइसेंस) और परमिट की आवृत्ति को कम करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। अर्थात् अब एक उद्योग लगाने के लिए लाइसेंसीकरण की प्रक्रिया को छोटा किया जाएगा और उद्योग लगने के बाद लाइसेंस के रिन्यूअल के लिए बार-बार दौड़ना नहीं पड़ेगा। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर काम करेंगी।”
उन्होंने कहा, “हमारा प्रयास राज्यों के साथ मिलकर, बोझिल अनुपालनों (नियम आदि) को समाप्त करना, लाइसेंस की आवश्यकता को कम करना, नियामक बोझ और अनुमतियों को कम करना और नवीनीकरण प्रक्रिया को युक्ति संगत (सरल) बनाना है। लेकिन यह तभी होगा, जब हम साथ काम करें। स्व-नियमन और स्व-प्रमाणन ही आगे का रास्ता होना चाहिए।”
नीति आयोग की अधिकारी ने की सरकार के फैसले की तारीफ
सरकार की रणनीति की सराहना करते हुए नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा, “जब केंद्र ने सुधारों की प्रक्रिया में तेजी लाई है, राज्यों को गति बनाए रखने की आवश्यकता है। राज्यों द्वारा बहुत सारे सुधारों की गुंजाइश है और जो पूर्वी भारत के राज्य हैं, उनमें अपार संभावनाएं हैं।”
गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था के नेहरूवादी मॉडल में लाइसेंस राज का बोलबाला था। किसी वस्तु के उत्पादन के लिए आवश्यक अनुमति के साथ ही, वर्ष में कितनी मात्रा में वस्तु उत्पादित करनी है, ये तक सरकार निर्धारित करती थी। लाइसेंस रिन्युवल व जांच के नाम पर व्यापारियों का शोषण आम था, जबकि सरकारी संस्थाओं द्वारा निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता को लेकर कोई जवाबदेही नहीं थी! इससे निजी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का शोषण होता था। वहीं, इंदिरा सरकार में तो लाइसेंसराज इस तरह हावी हुआ कि भारत का समृद्ध टेक्सटाइल उद्योग चौपट हो गया। मौजूदा समय में पीयूष गोयल की छत्रछाया में टेक्सटाइल उद्योग एक बार फिर सफलता के नए आयाम स्थापित करता दिख रहा है।
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सरकार ने कई कानूनों को किया है निरस्त
बताते चलें कि डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री ने हाल ही में जानकारी देते हुए बताया था कि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में 22000 अनावश्यक नियामकों को समाप्त किया है। 103 ऐसे कानून समाप्त किए गए हैं, जिनमें कंपनी के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया जाता था। इसके अतिरिक्त 327 कानून और रद्द हुए हैं।
शिवाजी द बॉस फिल्म आप सभी ने देखी होगी। उसमें शिवाजी जब शैक्षणिक संस्थान खोलने के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करने का प्रयास करता है, तो अधिकारियों द्वारा उसे एक के बाद एक सैकड़ों नियम गिनाए जाते हैं। ऐसी कठिनाई का सामना लगभग हर भारतीय ने बैंक में कभी न कभी किया होगा। कल्पना करें कि जब बैंक में खाता खोलना इतना कठिन है, तो भ्रष्ट सरकारी तंत्र के जाल में फंसकर कोई व्यापार करना कितना कठिन होगा! घटिया इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा एक यह भी महत्वपूर्ण कारण था, जिसने लंबे समय तक भारत के विकास को बांधे रखा।
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सरकार के इस प्रयास से होंगे क्रांतिकारी सुधार
इसके अतिरिक्त हर छोटे-बड़े कानूनी विवाद को भारत के बोझिल और जटिल न्यायिक व्यवस्था का शिकार होना पड़ता है, न्यायालयों में पहले ही लाखों मामले बिना किसी निर्णय के पढ़े हुए हैं। ऐसे में भारत आने वाली कंपनियों या भारत में ही नया व्यापार शुरू करने की इच्छा रखने वाले भारतीय को इस बात का भय सदैव रहता है कि कहीं कोई कानूनी विवाद न हो। क्योंकि विवाद का अर्थ है एक जटिल न्यायिक प्रक्रिया का शिकार होना, यह सच्चाई है। लेकिन अब सरकार ने इंडस्ट्री, प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच एक ऐसे तंत्र के विकास के लिए प्रयास शुरू किए हैं, जिसमें विवाद आपसी बातचीत और मध्यस्थता से सुलझाया जा सके। यदि ये दोनों सुधार सही तरीके से लागू हुए, तो भारत में व्यापारिक गतिविधियों के लिए क्रांतिकारी सुधार होंगे।