पिछले एक साल से चल रहे किसान आन्दोलन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को किसानों के लाभ के लिए पारित किए गए 3 कृषि कानूनों को निरस्त करने का निर्णय लिया और किसानों से आंदोलन समाप्त कर घर लौटने की अपील की। उनके इस निर्णय के बाद दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर का घेराव कर आंदोलनकारी किसान ख़ुशी मनाने में जुट गए। सरकार के इस फैसले के बाद किसानों को आंदोलन खत्म कर देना चाहिए था, किन्तु इन किसानों ने अब MSP समेत अन्य कई मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। इसी बीच केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने का निर्णय लेने के बाद ऐसी खबरें सामने आ रही है कि खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) 29 नवंबर को प्रस्तावित किसानों के ट्रैक्टर मार्च के जरिए अब एक बार फिर से देेश में उपद्रव फैलाने की कोशिश में है।
किसानों को भ्रमित कर रहे हैं खालिस्तानी
बताया जा रहा है कि देश में प्रतिबंधित हो चुके खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने आगामी 29 नवंबर, 2021 को लोकसभा का सातवां सत्र शुरू होने पर संसद में खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए किसानों को 125,000 अमेरिकी डॉलर की राशि देने की पेशकश की है। Indian Defense News की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिनेवा के एक वीडियो संदेश में SFJ के जनरल काउंसिल गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कहा, “जब भगत सिंह ने भारत की स्वतंत्रता के अभियान के दौरान संसद पर बमबारी की, तो हम किसानों से पंजाब की स्वतंत्रता के लिए खालिस्तान के झंडे उठाने के लिए कह रहे हैं।”
आपको बता दें कि सिख फॉर जस्टिस (SFJ ) साल 2007 में गठित एक यूएस-आधारित समूह है जो पंजाब में सिखों के लिए एक अलग “खालिस्तान” की मांग कर रहा है। गौरतलब है कि पंजाब विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू वर्तमान में अमेरिका में वकील है, साथ ही SFJ और इसके कानूनी सलाहकार का चेहरा भी है। पन्नू ने एक पहल के तौर पर अलगाववादी सिख जनमत संग्रह 2020 अभियान शुरू किया था, जो अब समाप्त हो चुका है। पिछले जुलाई में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा “आतंकवादियों” के रूप में नामित नौ व्यक्तियों में पन्नू का नाम भी शामिल है।
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ये खालिस्तानी जनमत संग्रह करने पर तुले हैं
खालिस्तान के ‘जनमत संग्रह 2020’ में पन्नू ने दावा किया था कि वो “पंजाब को भारतीय कब्जे से मुक्त करना चाहता है”। पन्नू ने कहा था कि “SFJ ने अपनी लंदन घोषणा (अगस्त 2018 में) में भारत से अलग होने और पंजाब को एक स्वतंत्र देश के रूप में फिर से स्थापित करने के सवाल पर वैश्विक सिख समुदाय के बीच पहली बार गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह कराने की घोषणा की थी।”
इस बात की फिर से चर्चा हो रही है कि ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ पर अगले चरण का मतदान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार दिवस यानी 10 दिसंबर को जिनेवा में होने वाला है। जिनेवा में खालिस्तान जनमत संग्रह पंजाब जनमत आयोग (पीआरसी) की देखरेख में होगा। आपको बता दें कि खालिस्तान का नाम किसान आंदोलन में भी खूब सुनने को मिला है। एक रिपोर्ट के अनुसार 12 जनवरी को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उनके पास इंटेलिजेंस ब्यूरो से विश्वसनीय इनपुट है कि किसानों के विरोध में खालिस्तानी समर्थकों की मौजूदगी है।
उपद्रवियों को सबक सिखाने की ताक में है मोदी सरकार
गौरतलब है कि 72वें गणतंत्र दिवस पर तिरंगे की जगह लाल किले पर धार्मिक झंडे फहराने वाली भीड़ के बीच देखे गए उपद्रवी दीप सिद्धू को पुलिस ने हिंसक विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी में नामजद किया था। पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि लाल किले पर हुई हिंसा में कुछ भ्रमित किसानों के साथ-साथ खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस का भी हाथ था।
वहीं, दूसरी ओर किसान आंदोलन में लगातार खालिस्तानियों और देश विरोधी संगठनों के संलिप्तता की खबरें सामने आती रही है। अब सिख फॉर जस्टिस के इस नए हथकंडे को देखकर भारत सरकार ने ख़ुफ़िया विभाग को चौकन्ना रहने को कहा है और खालिस्तानी समूह पर विशेष ध्यान रखने की भी सलाह भी दी है। दरअसल, किसान आंदोलन में आन्दोलनकारी किसानों की आड़ में देशविरोधी संगठन अपना नकारात्मक एजेंडा चलाने की कोशिश कर रहे हैं, पर केंद्र की मोदी सरकार पूरी तैनाती के साथ देश के ऊपर बुरी नज़र रखने वाले इन उपद्रवियों को सबक सिखाने की ताक में है।